सुविधाओ के आगोश में पलते हम , सुविधाओ के जंगल में खो गये हम , क्रांति की मशाल जलाते जलाते सुविधाओ की अभिव्यक्ति में सिर्फ वाचाल हो गये हम | बाजार की सुविधा में ,सुविधा के बाजार में तन से धनवान मन से कंगाल हो गये हम ।
वेदना तो हूँ पर संवेदना नहीं,
सह तो हूँ पर अनुभूति नहीं,
मौजूद तो हूँ पर एहसास नहीं,
ज़िन्दगी तो हूँ पर जिंदादिल नहीं,
मनुष्य तो हूँ पर मनुष्यता नहीं ,
विचार तो हूँ पर अभिव्यक्ति नहीं|