Saturday, June 01, 2013

सुविधा भोगी हम

सुविधा भोगी हम


 
 
 
 
सुविधाओ के आगोश में पलते हम ,
सुविधाओ के जंगल में खो गये हम ,
क्रांति की मशाल जलाते जलाते
सुविधाओ की अभिव्यक्ति में सिर्फ वाचाल हो गये हम |
बाजार की सुविधा में ,सुविधा के बाजार में
तन से धनवान मन से कंगाल हो गये हम ।

7 टिप्पणियाँ:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बाजार की सुविधा में ,सुविधा के बाजार में
तन से धनवान मन से कंगाल हो गये हम ।

बिलकुल सही कहा है ....

प्रवीण पाण्डेय said...

जब सुविधा पर शीश झुकाया, अपना मान छोड़ बैठे हम।

Unknown said...

Suvidha ke gulam ho gaye ham..

रचना दीक्षित said...

सुविधाओ के आगोश में पलते हम ,
सुविधाओ के जंगल में खो गये हम ,

सच कहा.

दिगम्बर नासवा said...

दुरुस्त कहा है ... मन से कंगाल हो गए हैं सब आज ...

अरुन अनन्त said...

आपकी यह रचना कल मंगलवार (बृहस्पतिवार (06-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

Asha Joglekar said...

तन से धनवान मन से कंगाल होगये हम ।

य़ही है हम सुविधा-भोगियों की कहानी ।