Sunday, October 01, 2017

yado ki potli

बैल गाड़ियाँ सजा दी गई है ,सारे दरवाज़ों पर नींबू काटकर देहलियों पर रख दिये है ।
आज सुखलाल मामा ( जो घर के सारे काम देखता था )को दम मारने की फुर्सत नही रहती थी।
कंदील चिमनी साफ करने है उनमें घासलेट भरना है
फिर बैलों को चारा पानी, गाय का दूध निकालना है ।
रोज तो ये सब दिया बत्ती के बाद हो जाता है ,पर आज गाड़ी बैल से दशहरा जो जीतने जाना है वहां से आने पर अंधेरा हो जाएगा तो सारे काम जल्दी जल्दी निपटाने है !
उधर दादी कह रही थी सुखलाल थोड़ी सी गिलकी तोड़ दे मैं शक्कर मिलाकर रख दू तेरे मालिक और ये छोरियां दशहरा जीतने जाएगी तो मुंह मीठा करके जाएंगे ।
भले ही सुबह पूर्ण पोली खाई हो पर दशहरा तो गिलकी शक्कर खा कर ही जाना है।
गिलकी जैसा नरम स्वभाव इसके प्रारूप में मान्यता रही होगी।
और हम बच्चियां तीन बहने क्रमशः 7 ,5,4 साल की कबसे दादा के सिलवाये पेट शर्ट पहने बैल गाड़ी में बैठ दादा का इंतजार कर रही थी।
नियत समय पर सारे काम निबटाकर सुखलाल मामा आया बैलों को गाड़ी में जोता हम बहनो का खुशी का कोई ठिकाना नही!
अब मालिक याने दादाजी का इंतजार सफेद धोती कुर्ता काली बंडी, (जैकेट)हाथ मे लकड़ी सर पर काली टोपी पांव में नए जूते पहनकर जब मुख्य दरवाजे से निकले तो हमारी जान में जान आई कि अब चलेंगे
पर अभी कहाँ ?
गांव के लोगो ने टीका लगाया पांव
पड़ने देर में देरी !
आखिर गाड़ी चली बैलों के गले की घण्टियाँ बजनी शुरू गांव से निकलकर गाड़ी मुख्य सड़क पर आई सड़क क्या?पगडंडी पर आई मामा गाड़ी दौड़ाओ
न?,दादा ने आंखे दिखाई हम चुपचाप बैठ गए ।
नियत स्थान पर पहुंचे सब लोग याने की 9 दिन से चल रही रामलीला के सभी कलाकार राम ,लक्ष्मण, हनुमान
बाली ,सुग्रीव सभी दादा गांव के मुखिया का इंतजार कर रहे थे।
और गांव के लोग भी उत्सुकता से रावण दहन का इंतजार कर रहे थे
सामने घास फूस का रावण तैयार था
रामजी ने धनुष चढ़ा लिया था और रावण के पीछे ही एक तुवर की लकड़ी पर कपड़ा चढ़कर उसे घासलेट में डुबोकर तैयार बैठा था
दूसरे रामलीला के गायकों द्वारा राम की स्तुति हुई
राम जी ने धनुष मस्तक को लगाया और बाण छोड़ा उधर कपड़े में माचिस लगाई और रावण के पुतले में आग लगाई पुतला धु धु जलने लगा।
सियावर रामचन्द्र की जय से खाली खेत गूंजने लगा
और हम रामजी को बड़ी ही श्रद्धा से निहारते रहे।
और यूँ असत्य पर सत्य की विजय हुई।
दादा को ऐसा कहते सुना।
शमी की पत्तियों का आदान प्रदान हुआ
और बहुत सारी पत्तियां घर पर लाये क्योकि हमे भी सबको देनी थी और आशीर्वाद लेना था ।
खूब खुशी घर आये आँगन में परदादी बैठी थी
सबसे पहले दादा ने उनके पांव छुए फिर वो पड़ोस में अपने काका काकी से आशीर्वाद लेने पहुंचे।
हमने भी सब बड़ो को प्रणाम किया
हमे 1,1 रुपया मिला माँ ने गिलकी के भजिये बनाये थे वो खाये ।
उन रुपयों को लेकर आधी रात तक क्या लेना है मनसूबे किये ,कल सारी दूसरी बहनो को, गांव की सहेलियों को रुपये दिखाना है इसी में कब सो गए मालूम नही।
सुबह उठते ही दादाजी के पास ओटले पर बैठ गए
वहां से जो भी गुजरता दादाजी को पायँ लागू कहकर सर झुकाकर आगे बढ़ता ।
उन्ही में से जो रामजी बने वो भी
पाय लागू कहकर दादा को प्रणाम कहते हुए निकले
कल दादाजी ने उन्हें प्रणाम किया।
,आज उन्होंने दादा को प्रणाम किया।
क्यो किया ?कभी समझ न आया
आया पर वो दशहरा आज भी भुलाए नही भूलता
वो मेरे
" गाँव का दशहरा"
बरबस ये गजल याद आ जाती है
राजेन्द्र नीना गुप्ता की गाई हुई
एक प्यारा सा गांव
जिसमे पीपल की छाँव,
छाँव में आशियाना था
एक छोटा मकान था
छोड़ कर गाँव को हम
उस घनी छाँव को हम
शहर के हो गए है,
भीड़ में खो गए है !
वो नदी का किनारा, जिसमे बचपन गुज़ारा,
वो लड़कपन दीवाना, रोज पनघट पै जाना
फिर जब आई जवानी बन गए हम कहानी
छोड़ कर गाँव को उस घनी छाव को शहर के हो गए
भीड़ में खो गए है.
एक प्यारा सा गांव
जिसमे पीपल की छाँव,
कितने गहरे थे रिश्ते. लोग थे या फ़रिश्ते,
एक टुकडा ज़मी थी, अपनी जन्नत वही थी,
हाय ये बदनसीबी, नाम जिसका गरीबी
छोड़ कर गाँव को उस घनी छाव को शहर के हो गए
भीड़ में खो गए है.
एक प्यारा सा गांव
जिसमे पीपल की छाँव,
ये तो परदेश ठहरा
देश फिर देश ठहरा
हादसों की ये बस्ती
कोई मेला न मस्ती
क्या यहाँ ज़िन्दगी है
हर कोई अजनबी
छोड़ कर गाँव को
उस घनी छाव को शहर के हो गए
भीड़ में खो गए है.
एक प्यारा सा गांव
जिसमे पीपल की छाँव,
स्वर - राजेंदर मेहता व नीना मेहता

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3 टिप्पणियाँ:

anshumala said...

पिछले दो सालो से मुंबई में भी हम दसहरा मेला देखने जा रहे है |

शोभना चौरे said...

वाह
कहाँ पर जाती है
खार में भी लगता है मेला?

वन्दना अवस्थी दुबे said...

क्या गज़ब वर्णन!! मज़ा आ गया दीदी.