बच्चों पर प्रेम बरसाने वाला हरकारा :- पं रामनारायण उपाध्याय
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अभी हम लोग सोकर उठे भी न होते थे कि नीचे से दादा की आवाज आ जाती आओ बच्चों जल्दी से जलेबी गर्म गर्म है।
भरी गर्मी में हम चांदनी (निमाड़ में छत को चांदनी कहते है) पर सुबह की थोड़ी सी ठंडक में गहरी नींद में होते ,और बड़बड़ाते हुए उठते की इस जेठ की गर्मी में गर्म जलेबी कौन खायेगा?पर नीचे आकर जलेबी खाकर आ दादा के लाड़ से सारी गर्मी पिघल जाती ।
दादा हमे भांप जाते , फिर अपनी चिर परिचित हँसी के साथ कहते आज म्हारी वरस गांठ छे (आज मेरा जन्म दिन है) और अपनी खादी की बंडी की जेब में हाथ डाल जितनी चिल्लर होती हमें बाँट देते और इस तरह 20 मई दादा का जन्मदिन मनाया जाता ।
वे मेरे कवि प्रोफेसर पिता पं नारायण उपाध्याय के सगे बड़े काकाजी थे ,
सादगी की इस प्रतिमूर्ति को हम सब दादा ही कहते थे। मेरे पिताजी / बाबूजी की रुचि काव्य में थे , उनकी प्रेरणा से ही उनकी प्रथम कृति "लोग, लोग और लोग" प्रकाशित हुई थी । वे जब भी कोई रचना लिखते बाबूजी को ज़रूर सुनाते थे । बाबूजी भी उनसे अन्तर्मन से जुड़े थे , कोई आवश्यकता होती थी ,या कोई सलाह -मशविरा लेना होता तो दोनों कुवे की जगत पर देर तक चर्चा करते थे । वे पिताजी को अपना मानस पुत्र कहते थे , काका -भतीजे की यह जोड़ी आ माखन दादा (माखनलाल चतुर्वेदी) जी की साहित्यिक गोष्ठियों में साथ -साथ जाते थे ।
जब भी आ दादा की कोई रचना का पारिश्रमिक मिलता वो उसका एक निश्चित हम सब लड़कियों में बांट देते।
मायके से बहुत दूर रहने वाली मैं पहली लड़की थी ।।मेरी राखी मिलने के पहले ही
मुझे मनीआर्डर कर देते ।
उनका लेखन,उनका फक्कड़पन,
उनका सदैव खुशमिजाज रहना, लड़कियों बहुओं से स्नेह उनको आगे बढ़ाना ही उनको सबसे अलग बनाता है।जिसे हम सही अर्थों में "दादा" कहते है।
आ. दादा की 19वीं पुण्यतिथि पर यही कहना चाहती हूँ कि दादा आप पूरे परिवार की छाया थे,छाया है और छाया रहेंगे,,,
-शोभना चौरे उपाध्याय
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