गाँव में बेटों के के खेती सम्भालने के बाद कुछ लोग आराम से संतोष से चौपालों पर अपनी बाकी की जिंदगी गुजारते है।
पर हमारे रामेसर भाई को चैन नहीं कुछ न कुछ काम करते रहना है उन्हें चाहे वो काश्तकारी हो समाज सेवा हो या परोपकार।
बाड़ी में फूल ,फलऔर सब्जियां लगा रखी है माली बनकर जाते है फल सब्जियों को बाड़ी में उगाने से लेकर विक्रय करने का काम खुद ही कर लेते है।साथ मे उनकी सहधर्मिणी भी बराबर साथ देती है।
और हाँ वो ग्वाले भी है साथ में मिस्त्री भी याने की ऑल राउंडर😊
ये तो खूबियां मुझे मालूम है न जाने और कितनी ही कलाएं होगी जो उन्हें विशेष बनाती है।
हाँ तो कल सुबह बरबटी की सब्जी लेकर आये हम सब आँगन में ही बैठे थे कोने में
मोगरा महक रहा था।
बरबटी देने के बाद बोले -मख या खोश बु अच्छी नई लगती तेका लेन ह ऊ नई लगावतो। (मुझे इसकी खुशबू पसन्द नही इसलिए मोगरा नही लगाता)
मेरे मुंह से अचानक निकल गया गुलाब तो पसन्द छे (है)
और सुनते ही अपने 70 वे वर्ष में भी शर्माकर चले गए ।दरअसल भाभी का नाम गुलाब है ।
और सुबह सुबह मोगरे के साथ गुलाब भी महक उठे।
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