Sunday, July 20, 2008

स्पंदन


राधा का अर्थ है ...मोक्ष की प्राप्ति
'रा' का अर्थ है 'मोक्ष' और 'ध' का अर्थ है 'प्राप्ति'
कृष्ण जब वृन्दावन से मथुरा गए,तब से उनके जीवन में एक पल भी विश्राम नही था|
उन्होंने आतताइयों से प्रजा की रक्षा की, राजाओं को उनके लुटे हुए राज्य वापिस दिलवाये और सोलह हज़ार स्त्रियों को उनके स्त्रीत्व की गरिमा प्रदान ki
उन्होंने अन्य कईं जन हित कार्यों में अपने जीवन का उत्सर्ग किया उन्होंने कोई चमत्कार करके लड़ाइयाँ नही जीती,अपनी बुद्धि योग और ज्ञान के आधार पर जीवन को सार्थक किया मनुष्य का जन्म लेकर , मानवता की...उसके अधिकारों की सदैव रक्षा की
वे जीवन भर चलते रहे , कभी भी स्थिर नही रहेजहाँ उनकी पुकार हुई,वे सहायता जुटाते रहे|

इधर जब से कृष्ण वृन्दावन से गए, गोपियान्न और राधा तो मानो अपना अस्तित्व ही को चुकी थी
राधा ने कृष्ण के वियोग में अपनी सुधबुध ही खो दी,मानो उनके प्राण ही न हो केवल काया मात्र रह गई थी
राधा को वियोगिनी देख कर ,कितने ही महान कवियों ने ,लेखको ने राधा के पक्ष में कान्हा को निर्मोही आदि संज्ञाओं की उपाधि दी
दे भी क्यूँ न????
राधा का प्रेम ही ऐसा अलौकिक था...उसकी साक्षी थी यमुना जी की लहरें , वृन्दावन की वे कुंजन गलियां , वो कदम्ब का पेड़, वो गोधुली बेला जब श्याम गायें चरा कर वापिस आते थे , वो मुरली की स्वर लहरी जो सदैव वह की हवाओं में विद्यमान रहती हैराधा जो वनों में भटकती ,कृष्ण कृष्ण पुकारती,अपने प्रेम को अमर बनाती,उसकी पुकार सुन कर भी ,कृष्ण ने एक बार भी पलट कर पीछे नही देखा ...तो क्यूँ न वो निर्मोही एवं कठोर हृदय कहलाये ,किन्तु कृष्ण के हृदय का स्पंदन किसी ने नही सुना स्वयं कृष्ण को कहा कभी समय मिला की वो अपने हृदये की बात..मन की बात सुन सकेंया फिर यह उनका अभिनय था!


जब अपने ही कुटुंब से व्यथित हो कर प्रभास -क्षत्र में लेट कर चिंतन कर रहे थे तो 'जरा' के छोडे तीर की चुभन महसूस हुई तभी उन्होंने देहोत्सर्ग करते हुए ,'राधा' शब्द का उछारण किया,जिसे 'जरा' ने सुना और 'उद्धव' को जो उसी समय वह पहुंचे..उन्हें सुनायाउद्धव की आंखों से आंसू लगता बहते जा रहे हैं ,सभी लोगों ,अर्जुन ,मथुरा आदि लोगो को कृष्ण का संदेश देने के बाद ,जब उद्धव ,राधा के पास पहुंचे ,तो वे केवल इतना कह सके ---
" राधा, कान्हा तो सारे संसार के थे ...
किन्तु राधा तो केवल कृष्ण के हृदय में थी"

2 टिप्पणियाँ:

स्वप्न मञ्जूषा said...

शोभना जी,
आपके इस लेख ने हम जैसों को सोचने के लिए एक नयी दृष्टि दी, बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने, बहुत बहुत धन्यवाद
मैंने अपनी कविता में राधा का पक्ष ही दीखाया है, उसकी व्यथा को महसूस कैसे करुँगी, लेकिन सोचती हूँ, कैसे झेला होगा उसने जिसके लिए सिर्फ एक कृष्ण थे....

स्वप्ना मंजूषा 'अदा'
http://swapnamanjusha.blogspot.com/

स्वप्न मञ्जूषा said...

नहीं शोभना जी, ऐसा प्रेम और कहीं नहीं है और यह कल्पनातीत भी है, मैं तो बस कभी-कभी भगवान् को उलाहना देने चली आती हूँ, जब अपने छोटे से ह्रदय में किसी भी नारी पात्र की नारीगत व्यथा महसूस करती हूँ बस .....