Wednesday, January 21, 2009

विनती










लताओं में ,कुंजो में .गलियों में ,
फूलो में ,झूलो में .यमुना की लहरों में
मुरली की मोहक तान छोड़ गये तुम
राधा को गोपियों को ,ग्वालो को
नन्द बाबा ,माता यशोदा को
कैसी टीस दे गये तुम
संहारक .रक्षक राजा ओर गीता के उपदेशक बनकर
संसार में महान बन गये तुम
माखन की स्निग्धता ,कोमलता तुम बिन नही
मिश्री की मिठास तुम बिन नही
आओ कृष्ण एक बार फ़िर आओ
पुनः स्रष्टि को जीवंत बना जाओ
प्रीत की पुकार सुन लो ,
कठोर न बनो श्याम ,ये तुम्हारा स्वभाव नही ,
तुम पर कोई आक्षेप करे
ये मुझे मंजूर नही
आओ कान्हा पुनः
इस जग को सुंदर बना जाओ

(इमेज सोर्स - कृष्ण.कॉम)

5 टिप्पणियाँ:

BrijmohanShrivastava said...

अति सुंदर प्रार्थना /लेकिन ये क्या कह दिया कि ""तुम पर कोई आक्षेप करे "प्रश्न ही नहीं है -लोग अज्ञानी है मूर्ख है /संरक्षक ,राजा ,उपदेशक पर कैसा आक्षेप /हाँ आपने संहारक बताया है ,परन्तु ये पालक है ,(जग करता जग भरता )फिर आओ वाली तो बात ही नहीं है वे गए ही कब है ,कण कण तो व्याप्त हैं बिल्कुल मिश्री जैसे मधुर (मधुराधि पति रखिलं मधुरं ) आज के समय में ऐसी रचना के लिए आपको बधाईदेता हूँ

विजय तिवारी " किसलय " said...
This comment has been removed by the author.
विजय तिवारी " किसलय " said...

शोभना जी
अभिवंदन
विरह का मीठा दर्द प्रस्फुटित हुआ है आपकी रचना में.
सुंदर अभिव्यक्ति है .
मैंने भी कभी लिखा था >>
कुञ्ज गलिन में राधा तेरे, आओ कुञ्ज बिहारी..
तुम बिन सारी गोकुल सूनी सूनी रहस हमारी..

- विजय

Anonymous said...

shrivastvji
dhanywad
aapne apne bhut hi sundar tippni di hai.krpya ase hi marg drshan dete rhiyega.
Apka blog bhi pdha.daughters fobiya man ko chu gya.mai smghti hu lene vale se jyada denevala jyda jimmevar hai.
dhnywad.
shobhana

Anonymous said...

vijayji
dhanywad.