रास्ते में निसर्गधाम है, जो अपने नाम के अनुरूप ही अपने नाम को सार्थक करता है |चारो और हरियाली ही हरियाली लम्बे लम्बे बांस के पेड़ |जब हवा चलती तो आपस में वे टकराते तो बडी ही मदमस्त सी आवाज होती |रिमझिम रिमझिम बारिश कि फुहारे कुल मिलकर प्रक्रति का खुबसूरत नजारा|
पर्यटको के लिए इस जगह पर पहुंचने के लिए कावेरी नदी पर एक झूलता सा पुल बनाया है , पूल से नीचे देखने पर ऐसा लगता था मानो यमनोत्री कि सैर कर रहे हो |यमुना कि तरह कावेरी कलकल बह रही थी|
नदी को देखने के लिए थोडा नीचे उतरना पड़ा उबड़ खाबडही रास्ता था फिसलन भी बहुत थी |पर जैसे ही नदी के पास पंहुचे सारा डर छूमंतर हो गया |नदी का अप्रतिम सौन्दर्य सामने था |
जी हाँ !ये चूहे नही ?खरगोश है रंग बिरंगे |जैसे ही वहां के कर्मचारी ने एक टोकनी भरकर बंद गोभी के पत्ते डाले
बड़ी फुर्ती से सारे खरगोश अपने दडबे से बाहर आए और टूट पडे अपने भोजन पर |हम तारो से लगी फेन्सिग के बाहर से उनके ये करतब देख आनन्दित हो देखते रहे |
अपना खाना (ककडी )देखकर एक हिरन चौरे जी के पास आते हुए |
मेरे मन के भावो ने कुछ शब्दों का आकर ले लिया -
चंचल नदी
वो बड़े बड़े और घने पेड़
टहनिया वो डालिया
नदी कि हर लहर को चूमने को व्याकुल
और पेड़ अनायास ही
आनन्दित हो जाता हो
टहनियों को अपनी डालियों को
और झुका देता
चंचल नदी भी कहाँ
मानने वाली थी
वो कभी आलिगन में आती
कभी अपनी कुछ लहरों के साथ
यूँ ही इठलाकर
आगे बढ़ जाती
कभी लहरों पर
चमकते सूरज को ही
पेडो कि डालियाँ
लहर मान लेती
उनकी इन अठखेलियों को देख
सूरज भी अपनी किरने
और तेज कर देता
तब पेड़ भी अपनी
छेड़छाड़ बंद कर देता
और नदी भी अपना शांत और सौम्य
रूप धर लेती ....................
shobhana
7 टिप्पणियाँ:
अप्रतिम सौन्दर्य सामने किसी प्रकार का डर नहीं रहता है
बहुत अच्छी लगी आपकी यात्रा-लेख
http://som-ras.blogspot.com
प्राकृति के सोंदर्य को खूबसूरती से कैद किया है आपने अपनी रचना में भी.......... लहरों को प्यासी डालियों कस समा देखते ही बनता होगा......... अछा प्रसंग है
बहुत भावः पूर्ण कविता .Do comment on my spiritual journey at Samarpan .
शोभना जी,
एक रोचक रिपोर्ताज, पढ़ते हुये यूँ लगा कि मन वहाँ विचरण कर रहा हो।
कविता ने सौन्दर्य में चार चाँद लगा दिये, बानगी देखियेगा :-
और पेड़ अनायास ही
आनन्दित हो जाता हो
टहनियों को अपनी डालियों को
और झुका देता
चंचल नदी भी कहाँ
मानने वाली थी
वो कभी आलिगन में आती
कभी अपनी कुछ लहरों के साथ
यूँ ही इठलाकर
आगे बढ़ जाती
सुन्दर रचना!!!
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
आपकी रचना में निसर्गधाम का सुन्दर वर्णन पढ़ मन आनंदित हो गया.
आपकी कविता पढ़ कर यह विश्वास और गहरा हो गया कि प्रकृति क्यों और कैसे कविता सहज ही रूप से लिखवा लेती है.
हार्दिक आभार.
shobhnaji,,,apratim saundarya chitran kiya hai aapne,bhavnaao me hum bhi bah gaye kuchh der ke liye,,,kamna mumbai,,,
दिलचस्प वर्णन और नयनाभिराम चित्र...आपके साथ हम भी कूर्ग घूम आये...शुक्रिया.
नीरज
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