मैं कोई हस्ती नही
कि प्रणाम लूँ सबसे
अमावास कि घोर रात्रि को
उज्जवल करने मेंभी ,
मैं असमर्थ
तब तुम ही , अपनी कपकपाती लो से
अंधेरे को दूर करते हो
और इसी लिए सदैव
पूजनीय बन जाते हो तुम
लाख बिजली कि लडिया जगमगाए
पर सुदूर एक गाँव में ,
ज़िन्दगी का आभास कराते हो तुम
और उसी दीप को प्रणाम करते हुए ,
दीपावली के इस पर्व पर ,
अनेक शुभकामनाएं और बधाई
Tuesday, October 20, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
16 टिप्पणियाँ:
कविता मे गहरी संवेदना है, उपमान बहुत सटीक ! परिणाम - पाठक आपकी संवेदना से सम्बद्ध हो सकता है.
उस दीप को हमारा भी प्रणाम ...!!
दीपक पूर्ण प्रकाश नहीं कर पाता लेकिन वह अंधेरे को तो भेद ही देता है। जब दीपक जलता है तब अंधेरा स्वत: भाग जाता है। इसलिए हमारा नन्हा सा प्रयास भी अंधकार को दूर करने में सक्षम है। अच्छी अभिव्यक्ति के लिए बधाई।
सुंदर अभिव्यक्ति।
दीपक फिर भी दीपक है ......... आशा का संचार करता है ........... सुन्दर अभिव्यक्ति है ...........
samvedansheel rachana
आपके विचार प्यारे-प्यारे हैं और आनंद कहानी का तो जवाब नहीं ,ये कलम ही है जो हमारे मन की भडास निकाल देती है
yahee deep ishavriya ban jaataa he aour hame roshni dikhane lagtaa he..tab hame apni hasti ka aabhaas bhi hota he/
deep parv par itani sundar rachna.../ bahut khoob.
------------
aapki tippani mujhe hosala deti he/
is ujale ko shat shat naman
कहानी देर से पढ़ पाया मैम....बहुत ही सुंदर शिल्प था। कथ्य ने बाँध कर रखा।
और दीपोत्सव की ये अनूठी बधाई लाजवाब बनी है।
bahut hi sundar kavita ,shabd nahi mil paa rahe 5 minute sochi kuchh kah nahi pai ,kuchh shabd kabhi kabhi man ko chhoo kar maun ki sthiti me khada kar dete hai,kuchh aesa hi haal padhne ke baad ho pada .umda
वह दीप पूजनीय है..
उसका उजाला वो आशाएं हैं ,वो संबल है..जो जीवन के मार्ग को रोशन करता रहता है.
बहुत ही सुन्दर भाव अभिव्यक्ति..
man ko likhna, jitna saral lagta hai utna hai nahin. Isase bhi jyada mushkil hai man ka dikhna.badhai
bahut hi gahri samvedna hai kavita mein.........
bahut achchi lagi yeh kavita.......
सुंदर अभिव्यक्ति। जब दीपक जलता है.आशा का संचार करता है .
Post a Comment