Tuesday, November 10, 2009

तो मै क्या करू?

मेरे पति देव कहते है की तुम्हारे सोचने से दुनिया थोडी न बदल जावेगी ?
पर क्या करू ?जब उनके साथ स्कूटर पर बैठ कर जाती हूँ ब्रेक ठीक करवाने रुकते है और एक सात या आठ साल का बच्चा आकर खुशी खुशी आकर ब्रेक ठीक कर देता है और हथेली पर रखे सिक्के को देखकर खुश होता है और में सोचने लगती हूँ ये बच्चा स्कूल जाता है कि नही?
मेरे पडोस में एक आठ साल की बच्ची दो साल के बच्चे को सुबह आठ बजे से लेकर पॉँच बजे तक बच्चे को खुशी खुशी सभालती है और खुशी खुशी ५०० का नोट महीने के आखिर में घर ले जाती है तो मै उसकी पढ़ाई के बारे में सोचने लगती हूँ |
पंकज सुबीर जी कि " बेजोड़ " कहानी" ईस्ट इंडिया" की तर्ज पर चायनीज सामान के बल पर चीन हमारे घर में पाव पसार रहा है और हम खुशी खुशी हमारे घर, त्योहारों पर रोशन कर रहे है तो मै सिर्फ़ सोचती हूँ कि ये रौशनी क्या हमारी सच्ची खुशी है?
अपनी छटवीसंतान को अपने गर्भ में (पॉँच बेटियों के बाद बेटा ही होगा इसी आस में )लिए मेरी (घमंड )कामवाली बाई महीने भर बर्तन मांजने के बाद २०० रूपये खुशी खुशी ले जाती है तब मै सोचती हूँ परिवार नियोजन कहाँ तक सफल हुआ है ?
नित नये नेताओ के द्वारा किए गये घोटाले ,विधान सभा में शपथ लेते और उनके माइक हटाते विधायको कि खबरों को दिखाने वाले टी .वि .चैनल शाम को मौज मस्ती करने वाले खोजी पत्रकार खुशी खुशी ऐशो आराम पा जाए ?तो मै सोचती हूँ क्या ?भागवत गीता सिर्फ़ उपहार देने के लिए ही छपती है |
८२ डिब्बो कि रेलगाडी वाला केक जब अडवानी जी के लिए बनाया जाता है , और अपने जन्मदिन पर जब ख़ुशी ख़ुशी केक काटते है और अपने संघ कि विचारधारा वाले लोगो को खिलाते है तो मै सोचने लगती हूँ कि घर घर हिदू धर्म का प्रचार करने वाली विचारधारा विदेशी परम्परा का मोह क्यो ? छोड़ नही पाती |
मुझे सोचता देखकर शायद आप भी कह सकते है !बहुत हो गया अब सोचना! कुछ करो भी ? अब आप ही बताये मै क्या करू?

18 टिप्पणियाँ:

मनोज कुमार said...

एक सही लेखक का काम यथास्थितिवादी शक्तियों के जाल में जकड़े समाज में छटपटाने की भावना और उस जाल को तोड़ने की शक्ति जागृत करना है। आपका यह आलेख आग्रहों से दूर वास्तविक जमीन और अंतर्विरोधों के कई नमूने प्रस्तुत करता है। यथार्थबोध के साथ कलात्मक जागरूकता भी स्पष्ट है।

वाणी गीत said...

सोचते रहें ...और भी सोचेंगे ....सोचते सोचते कारवां बन जायेगा ...शायद कभी कोई राह निकल आये ..!!

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत सही. यही तो विडम्बना है, हमारे देश की.

नीरज गोस्वामी said...

शोभना जी आपकी इस छटपटाहट में मैं आपके साथ हूँ...ये सोच कई बार इतना परेशान कर देती है की जी करता है किसी का सर फोड़ दूं...या फिर एक एक को कस कस के लात लगाऊँ...लेकिन कुछ नहीं होता... मन मसोस के रह जाता हूँ...

नीरज

Asha Joglekar said...

सोचिये और लिखते रहिये यही सोच हिंदुस्तान की सोच बदलने की राह बन सकती है ।

प्रिया said...

isi chatpatahat ke saath jeete hai roz.....kuch na kar paane ka malaal kar so jaate hai....din guzar jaata hai....jab dimaag had se jyada pareshaa ho jata hai to likh baithe hai kuch .....Likh kar achcha kiya aapne man to halka ho jata hai :-)

Alpana Verma said...

aap ke sabhi sawaal sateek hain.

lekin in ke sahi uttar shayad ham kabhi talaash nahin kar payenge.
yah is desh ka durbhagay nahi hai to kay hai?

देवेन्द्र पाण्डेय said...

इसी को संवेदना कहते हैं
हर संवेदनशील नागरिक अपने राष्ट्र के प्रति ऐसी ही संवेदना रखता है
ईश्वर ने आपको लेखन की शक्ति दी है
तो ऐसे ही हम सब को
समय-समय पर
नींद से जगाते रहिए
...धन्यवाद।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

शोभना जी,
आपका ये लेख आँख खोलने का काम कर रहा है...
बहुत गहन समस्याएं उठायीं हैं इस लेख के माध्यम से..
ऐसे लेख सोचने पर मजबूर करते हैं कि कथनी और करनी में कितना अन्त्तर है...

दिगम्बर नासवा said...

BAHOOT HI SAMVEDANSHEEL LIKHA HAI ...AAJ HAMAARE DESH KI HAALAT JO HAI AISE MEIN IS SOCH KI SHURUAAT TO KARNI HI PADHEGI AUR BHI VYPAK PAIMAANE PAR ... BADLAAV TABHI SAMBHAV HAI .... AAP KA DARD, AAPKI CHATPATAHAT NAZAR AATI HAI ...

हरकीरत ' हीर' said...

मेरी भी नीरज जी वाली हालत जोड़ lein ......!!

कविता रावत said...

Aaki Kuch kar gujarne ki chhatpatahat swabhawik hai. Yahi hum sab ke saath hota hai liken hamein peeche nahi hatna hoga. Ek bhi sahi aadmi tak yadi hamari aawaj pahunchti hai to apne aap vishtar hota chala jayega, hame hayi sochana hoga.

ज्योति सिंह said...

bahut umda prashn shayad bahuto ke dimaag me chakkar lagate mil jaaye .magar hum bandhe hai .ek ke vash ki baat nahi .hum aap chah kar bhi kuchh nahi kar sakte bina sangthan ke .par yahan to par updesh kushal bahutere wala masala hai .bahut bahut achchha laga aapka yah aalekh padhkar .

स्वप्न मञ्जूषा said...

har soch amulya hai...
kya pata kaun si soch kab dunia mein tahalka le aaye..
isliye sochiye zaroor...kyunki sochne ka kaam bhi har kisi ke vash ka nahi hota...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

is lekh ne bahut kuch sochne ko majboor kar diya....

Anonymous said...

bahut acchae shobhanaji .. kya likhti hein aap ..

Anonymous said...
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Anonymous said...
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