मेरा अहं
ये अहं न चाहते हुए भी
कब उग जाता है ?
मेरे अन्दर
गाजर घास की भांति
बहुत पहले, ज्ञान न था
गाजर घास का ?
जब उगते देखा तो
खुश हुई
चलो घर कि गाजर
खाने को मिलेगी
किन्तु
वो तो फैलती गई
और पूरे बगीचे
को लील गई
खुश्की दे
सो अलग |
हर हरी चीज,
सुकून
नहीं देती ?
ये जाना
तब से !
मेरे अहं का
विरोध करती हूँ
तो अलग
बैठा दी जाती हूँ
और
मेरे अहं का
समर्थन
करती हूँ
तो
गाजर घास
बन जाती हूँ |
Friday, April 30, 2010
Tuesday, April 27, 2010
"अयोध्या "
अयोध्या के बारे में" रामचरित मानस" के आलावा बहुत कुछ लिखा जा चुकाहै |
अपनी अल्प बुद्धि से जो कुछ समझ आया आप सबसे बाँट रही हूँ |
देखने गये थे
रामलला
दर्शन हुए
कुछ इन अहसासों के
उजाड़ नगरी ,सूनी अयोध्या
सूनी रसोई ,उजाड़ सीता महल
पवन पुत्र
पवन कि अपेक्षा
धरती पर
आसरा लिए
तुलसी कि अयोध्या
क्या सिर्फ रामचरित मानस में ही है ?
अयोध्या में दर्शन हुए तो सिर्फ बाजार
और
बाजार
नाव
कभी चलती थी
सरयू नदी में?
Saturday, April 03, 2010
बंधन

भीगी आँखों को,
सुबह कि
नमी ने सुखा दिया
रात के गहरे ताप को
सुबह की पहली किरण
मिटा गई
क्षण में सपने बुनती हुई
दूसरे ही क्षण में
सपनों को
टूटते देखना
नियति हो गई
उसकी
मुखोटो की दुनिया में
वो अकेली
खडी रही

मै सारे
पिंजरों को
खोल दू
जिसमे कैद है
मासूम पंछी
मै तमाम
दरवाजे खोल दूं
भीतर है,
बिखरे सपने
मै सारे मुखोटे
खीच लू
जिनके पीछे
छिपे है
शातिर बन्दे
ये पिजरे
ये दरवाजे
ये मुखोटे
तोड़ने लगे है
अब विश्वासों को |
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