बहुत पहले लिखी थी ये पोस्ट आज फिर दे रही हूँ
साथ ही एक दैनिक प्रार्थना जो मुझे हर पल आनन्द से जीने का संबल देती है |
प्रार्थना
सांवरे घन श्याम तुम तो ,प्रेम के अवतार हो ,
फंस रहा हूँ झंझटो में ,तुम ही खेवनहार हो ,
चल रही आँधी भयानक ,भंवर में नैया पड़ी ,
थाम लो पतवार हे ! गिरधर तो बेडा पर हो ,
नगन पद गज के रुदन पर, दौड़ने वाले प्रभु ,
देखना निष्फल न मेरे , आंसुओ की धार हो ,
आपका दर्शन मुझे इस छवि में बारम्बार हो ,
हाथ में मुरली मुकुट सिर पर गले बन माल हो ,
है यही अंतिम विनय तुमसे, मेरी ए नन्दलाल ,
मै तुम्हारा दास हूँ और तुम, मेरे महाराज हो ,
मै तुम्हारा दास हूँ और तुम, मेरे महाराज हो..........................
इसे यहाँ मेरी आवाज में भी सुन सकते है |
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राधा का अर्थ है ...मोक्ष की प्राप्ति
'रा' का अर्थ है 'मोक्ष' और 'ध' का अर्थ है 'प्राप्ति'
कृष्ण जब वृन्दावन से मथुरा गए,तब से उनके जीवन में एक पल भी विश्राम नही था|
उन्होंने आतताइयों से प्रजा की रक्षा की, राजाओं को उनके लुटे हुए राज्य वापिस दिलवाये और सोलह हज़ार स्त्रियों को उनके स्त्रीत्व की गरिमा प्रदान ki
उन्होंने अन्य कईं जन हित कार्यों में अपने जीवन का उत्सर्ग किया उन्होंने कोई चमत्कार करके लड़ाइयाँ नही जीती,अपनी बुद्धि योग और ज्ञान के आधार पर जीवन को सार्थक किया मनुष्य का जन्म लेकर , मानवता की...उसके अधिकारों की सदैव रक्षा की
वे जीवन भर चलते रहे , कभी भी स्थिर नही रहेजहाँ उनकी पुकार हुई,वे सहायता जुटाते रहे|
इधर जब से कृष्ण वृन्दावन से गए, गोपियान्न और राधा तो मानो अपना अस्तित्व ही को चुकी थी
राधा ने कृष्ण के वियोग में अपनी सुधबुध ही खो दी,मानो उनके प्राण ही न हो केवल काया मात्र रह गई थी
राधा को वियोगिनी देख कर ,कितने ही महान कवियों ने ,लेखको ने राधा के पक्ष में कान्हा को निर्मोही आदि संज्ञाओं की उपाधि दी
दे भी क्यूँ न????
राधा का प्रेम ही ऐसा अलौकिक था...उसकी साक्षी थी यमुना जी की लहरें , वृन्दावन की वे कुंजन गलियां , वो कदम्ब का पेड़, वो गोधुली बेला जब श्याम गायें चरा कर वापिस आते थे , वो मुरली की स्वर लहरी जो सदैव वह की हवाओं में विद्यमान रहती हैराधा जो वनों में भटकती ,कृष्ण कृष्ण पुकारती,अपने प्रेम को अमर बनाती,उसकी पुकार सुन कर भी ,कृष्ण ने एक बार भी पलट कर पीछे नही देखा ...तो क्यूँ न वो निर्मोही एवं कठोर हृदय कहलाये ,किन्तु कृष्ण के हृदय का स्पंदन किसी ने नही सुना स्वयं कृष्ण को कहाँ , कभी समय मिला कि वो अपने हृदये की बात..मन की बात सुन सके या फिर यह उनका अभिनय था!
जब अपने ही कुटुंब से व्यथित हो कर प्रभास -क्षेत्र में लेट कर चिंतन कर रहे थे तो 'जरा' के छोडे तीर की चुभन महसूस हुई तभी उन्होंने देहोत्सर्ग करते हुए ,'राधा' शब्द का उच्चारण किया,जिसे 'जरा' ने सुना और 'उद्धव' को जो उसी समय वहां पहुंचे ..उन्हें उनकी आंखों से आंसू लगातार बहते जा रहे हैं ,सभी लोगों ,अर्जुन ,मथुरा आदि लोगो को कृष्ण का संदेश देने के बाद ,जब उद्धव ,राधा के पास पहुंचे ,तो वे केवल इतना कह सके ---
" राधा, कान्हा तो सारे संसार के थे ...
किन्तु राधा तो केवल कृष्ण के हृदय में थी"
'रा' का अर्थ है 'मोक्ष' और 'ध' का अर्थ है 'प्राप्ति'
कृष्ण जब वृन्दावन से मथुरा गए,तब से उनके जीवन में एक पल भी विश्राम नही था|
उन्होंने आतताइयों से प्रजा की रक्षा की, राजाओं को उनके लुटे हुए राज्य वापिस दिलवाये और सोलह हज़ार स्त्रियों को उनके स्त्रीत्व की गरिमा प्रदान ki
उन्होंने अन्य कईं जन हित कार्यों में अपने जीवन का उत्सर्ग किया उन्होंने कोई चमत्कार करके लड़ाइयाँ नही जीती,अपनी बुद्धि योग और ज्ञान के आधार पर जीवन को सार्थक किया मनुष्य का जन्म लेकर , मानवता की...उसके अधिकारों की सदैव रक्षा की
वे जीवन भर चलते रहे , कभी भी स्थिर नही रहेजहाँ उनकी पुकार हुई,वे सहायता जुटाते रहे|
इधर जब से कृष्ण वृन्दावन से गए, गोपियान्न और राधा तो मानो अपना अस्तित्व ही को चुकी थी
राधा ने कृष्ण के वियोग में अपनी सुधबुध ही खो दी,मानो उनके प्राण ही न हो केवल काया मात्र रह गई थी
राधा को वियोगिनी देख कर ,कितने ही महान कवियों ने ,लेखको ने राधा के पक्ष में कान्हा को निर्मोही आदि संज्ञाओं की उपाधि दी
दे भी क्यूँ न????
राधा का प्रेम ही ऐसा अलौकिक था...उसकी साक्षी थी यमुना जी की लहरें , वृन्दावन की वे कुंजन गलियां , वो कदम्ब का पेड़, वो गोधुली बेला जब श्याम गायें चरा कर वापिस आते थे , वो मुरली की स्वर लहरी जो सदैव वह की हवाओं में विद्यमान रहती हैराधा जो वनों में भटकती ,कृष्ण कृष्ण पुकारती,अपने प्रेम को अमर बनाती,उसकी पुकार सुन कर भी ,कृष्ण ने एक बार भी पलट कर पीछे नही देखा ...तो क्यूँ न वो निर्मोही एवं कठोर हृदय कहलाये ,किन्तु कृष्ण के हृदय का स्पंदन किसी ने नही सुना स्वयं कृष्ण को कहाँ , कभी समय मिला कि वो अपने हृदये की बात..मन की बात सुन सके या फिर यह उनका अभिनय था!
जब अपने ही कुटुंब से व्यथित हो कर प्रभास -क्षेत्र में लेट कर चिंतन कर रहे थे तो 'जरा' के छोडे तीर की चुभन महसूस हुई तभी उन्होंने देहोत्सर्ग करते हुए ,'राधा' शब्द का उच्चारण किया,जिसे 'जरा' ने सुना और 'उद्धव' को जो उसी समय वहां पहुंचे ..उन्हें उनकी आंखों से आंसू लगातार बहते जा रहे हैं ,सभी लोगों ,अर्जुन ,मथुरा आदि लोगो को कृष्ण का संदेश देने के बाद ,जब उद्धव ,राधा के पास पहुंचे ,तो वे केवल इतना कह सके ---
" राधा, कान्हा तो सारे संसार के थे ...
किन्तु राधा तो केवल कृष्ण के हृदय में थी"
साथ ही एक दैनिक प्रार्थना जो मुझे हर पल आनन्द से जीने का संबल देती है |
प्रार्थना
सांवरे घन श्याम तुम तो ,प्रेम के अवतार हो ,
फंस रहा हूँ झंझटो में ,तुम ही खेवनहार हो ,
चल रही आँधी भयानक ,भंवर में नैया पड़ी ,
थाम लो पतवार हे ! गिरधर तो बेडा पर हो ,
नगन पद गज के रुदन पर, दौड़ने वाले प्रभु ,
देखना निष्फल न मेरे , आंसुओ की धार हो ,
आपका दर्शन मुझे इस छवि में बारम्बार हो ,
हाथ में मुरली मुकुट सिर पर गले बन माल हो ,
है यही अंतिम विनय तुमसे, मेरी ए नन्दलाल ,
मै तुम्हारा दास हूँ और तुम, मेरे महाराज हो ,
मै तुम्हारा दास हूँ और तुम, मेरे महाराज हो..........................
इसे यहाँ मेरी आवाज में भी सुन सकते है |
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24 टिप्पणियाँ:
बहुत बढ़िया लेख ..और प्रार्थना भी ..
जन्माष्टमी की शुभकामनाएं
.बहुत बढ़िया....आपने तो राधा के नए अर्थ समझा दिए..
आपकी आवाज़ में भजन सुन...मन आनंदित हो गया...
जन्माष्टमी की शुभकामनाएं
बहुत अच्छा भजन है :) शीर्षक देख कर चौंक गई थी :) आवाज भी बहुत अच्छा है.
दी नमस्ते
अरे वाह दी आप गाती भी हैं...????
जन्माष्टमी की शुभकामनाएं...
राधा के प्रेम पक्ष को सही
प्रस्तुत किया है ...आभार
कर्णप्रिय भजन ,आभार
बहुत प्यारा भजन।
अच्छा लगा सुनकर आपकी आवाज में.
आपको श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत शुभकामनाएँ.
भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन पर एक बढ़िया प्रस्तुति..बधाई
कान्हा तो सबके थे मगर राधा तो केवल कृष्ण के ह्रदय में थी ...
कृष्ण राधा के बारे में जो अब ता क पढ़ा है , मुझे ये पंक्तियाँ सर्वश्रेष्ठ लगी ...
बहुत अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट ...!
अच्छी पंक्तिया है ...
...
( क्या चमत्कार के लिए हिन्दुस्तानी होना जरुरी है ? )
http://oshotheone.blogspot.com
आपने राधा और कृष्ण प्रेम को जिस तरह और जिस नज़रिये से प्रस्तुत किया है वो काबिल-ए-तारीफ़ है।
कल मैने भी इसी तरह का कुछ अपने ब्लोग पर लिखा था आप जरूर देखियेगा …………………आपने लेख मे कह दिया और मैने कविता मे ……………उसके साथ जो चित्र लगा है वो देखियेगा काफ़ी दुर्लभ है।
http://redrose-vandana.blogspot.com
शोभना जी . यह रचना हिन्दी साहित्य की निधि के रूप मे जानी जाएगी ।
आपकी आवाज़ बहुत ही मधुर है, यह भजन सुनकर ऐसा लगा मानो भजन संध्या में बैठा हूँ और हज़ारों लोग के बीच मैं इस भजन का आनन्द उठा रहा हूँ. आनन्द आ गया...
कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
मनोज खत्री
शोभना माँ,
जय श्री कृष्ण!
.
शोभना जी,
नयी जानकारी मिली आपके लेख से आज। इसके लिए बहुत धन्यवाद।
आपकी आवाज़ सुनकर बहुत सुकून मिला। शब्दों में बयान नहीं कर सकती की कैसा महसूस हुआ।
आपका निर्मल मन आपकी पहचान हैं।
जन्माष्टमी पर शुभकामनाएं आपको और आपके परिवार को , हमारे परिवार की तरफ से।
आपकी अपनी दिव्या।
.
.
आपने कठिन समय में मेरा साथ देकर नया जीवन दिया है । अपनी नयी पोस्ट पर आपके लिए दो शब्द लिखे हैं....समय निकालकर जरूर पढियेगा , आभारी रहूंगी ।
zealzen.blogspot.com
Divya
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sundar post ke liye badhai
आनंद आ गया ....
बहुत सुंदर प्रस्तुति..कुछ नयी बाते जानने को मिली और आपकी प्रर्थन जो आपकी आवाज़ में सुन कर आनंद आया..बहुत अच्छा लगा...आपकी आवाज़ भी बहुत अच्छी है.
आभार.
राधा के नए अर्थ !!!!बहुत अच्छा भजन है बढ़िया प्रस्तुति
सुन्दर लेख, सुन्दर प्रार्थना और सुंदर कंठ !
hiya
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बाकी तो सब कुछ सुन्दर है ही...
लेकिन आपका गायन बहुत अच्छा लगा, पूरे सुर में हैं आप...
आपका आभार..
shobhanaji ,aapki rachana padhakar man aanad se bhar gaya krishna ki anubhuti ne romanchit kar diya .krishan ke anginat aayamo me se ek hai hamara aour aapka jivan krishan may ho jaye ,enhi shubhkamnao ke sath ......kamana mumbai ......
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