Monday, September 13, 2010

"गणपति बप्पा मोरया "


गणेशोत्सव खूब धूमधाम से मनाया जा रहा है हर जगह गणपति जी मेहमान बनकर आये है दस दिन के लिए बड़े बड़े पंडाल ,गणेश मन्दिरों में आकर्षक झांकिया, जगमगाती बेहिसाब बिजली की रौशनी ,अनवरत चलते भंडारे ,तर माल,हलुए का प्रसाद | मंदिरों में सरकारी लोगो का आगमन ,उनके आगे पीछे घूमते माथे पर तिलक लगाये धोती कुरते ( जैसे फेंसी ड्रेस प्रतियोगिता )पहने पुजारी |सरकारी लोगो के सुरक्षा कर्मी पीछे पीछे उनके परिवार (बहती गंगा में हाथ धो ही ले )साथ में सीना ताने कुछ पार्षद |बुद्धि ? नहीं धन की कामना करने वाले |विशुद्ध दर्शन करने लम्बी लगी भक्तो की कतार को बीच में रोककर गणेशजी की कृपा पाने को आतुर इन विशिष्ट भक्तो को देखकर मेरा कुलबुलाता मन |
गणेशजी को प्रणाम भी नहीं कर पाई ,और पिछले साल लिखी गई पोस्ट जस की तस |हालत भी जस के तस |
और इस बीच नई खबर: बाबाओ का स्टिगओपरेशन मिडिया द्वारा |"पिपली लाइव "फिल्म देखकर मिडिया पर कितना विश्वास करेगी जनता ?ये सोच का विषय है कितु इससे भी ज्यादा सोच का विषय है इस फिल्म को देखने वाले कौन लोग है ?समाज पर इसका असर है ?या समाज को देखकर बनाई है जिस समाज को देखकर बनाई है क्या उन्होंने देखा है इसे ?
स्कूल के दिनों में हिन्दी विषय के अंतर्गत बाबा भारती का घोड़ा की कहानी पढाई जाती थी कहानी का शीर्षक था "हारजीत"के लेखक थे सुदर्शन |बाद में टिप्पणी लिखो :में पूछा जाता था इस कहानी से क्या शिक्षा मिली?क्या संदेस देती है ये कहानी ?तब तो रट रट कर बहुत कुछ लिख देते थे और नंबर भी पा लेते थे |कितु न तो कभी बाबा भारती ही बन पाए और न ही कभी ह्रदय परिवर्तन होने वाले डाकू खड्गसिँह को अपने जीवन में उतार पाए |
आज बाबा भारती(नकली ) बहुत है , सुलतान को बेचने वाले ,आलिशान कुटियों में रहने वाले और डाकुओ के साथ रहकर व्यापार करने वाले |
पिछले दिनों से लगातार समाचार आ रहे है नकली खून के बाजार के |
स्तब्ध हूँ, क्षुब्ध हूँ किंतु अब लगता है की सचमुच भारत भगवान के भरोसे ही चल रहा है |


ईमान तो
कब का बेच दिया !
थाली की
दाल रोटी भी चुराकर
बेच दी !
त्यौहार अभी आए नही ?
पकवानों की मिठास ही
बेच दी !

नकली घीं
नकली दूध
नकली मसाले
और अब
नकली खून ?
कौनसी ?
ख्वाहिश मे
तुमने पेट की आग
खरीद ली
तुम भूल रहे हो
आग हमेशा ही जलाती है
तुमने
दाल, चीनी गेहू और
खून
नही जमा किया है ?
तुमने जमा की है
अपने गोदाम मे
इनके बदले
ईमानदार की आहे
मेहनतकश की
बद्ददुआए
प्रक्रति की
समान वितरण प्रणाली को
असमानता मे तब्दील कर
तुमने अपनी भूख
बढ़ा ली है
व्यापार के सिद्धांतो
को तोड़कर
प्रक्रति से
दुश्मनी मोल ले ली है
बेवक्त की भूख
कभी शांत नही होती|

"गणेशोत्सव कि शुभकामनाये"




20 टिप्पणियाँ:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

शोभना जी, देस का वर्त्तमान अवस्था पर आपका यह पोस्ट ब्यंग्य कम ब्यथा जादा है..लेकिन क्या कीजिएगा यही हाल है.. लोग कहते हैं कि हम ही लोगों को कोसिस करना होगा, लेकिन पुराना कहावत है कि पुराना सिक्का नया का चलन बंद कर देता है.. मन को छूने वाला रचना!!

ज्योति सिंह said...

व्यापार के सिद्धांतो
को तोड़कर
प्रक्रति से
दुश्मनी मोल ले ली है
बेवक्त की भूख
कभी शांत नही होती|
wakai chintajanak sthiti hai .pooja karte ,pratima sajate hai sabhi dharmik karyakram me hissa lete hai magar adharm karne se sakuchate nahi ,khair kahne se hoga bhi kya ,aapko ganesh chaturthi ki dhero badhaiya ,bhopal jaa rahi hoon is beech ki post aapki aakar padhungi .

राज भाटिय़ा said...

यह सवाल आज सब लोगो के दिमाग मै है....शरीफ़ एक समय का खाना भी नही जुटा पाता अपनी ईमान दारी के कारण ओर यह लोग हम लोगो की लाशॊ पर बेठ कर पार्टिया करते है...आज बाबा भारती ही लुटने के नये नये तरीके अपनाता है तो डाकू खडग सिः भी शरमा जाता है, आप के लेख ने यह सब लिखने पर मजबुर कर दिया, जिन पर बीत रही हे उन का दर्द कितना होगा

वाणी गीत said...

ये बात सही है कि जो कार्यक्रम /फ़िल्में आदि जिनके लिए बनी हैं , उन तक नहीं पहुंचे तो क्या फायदा ...
व्यवस्था के हाथ के खिलोने बने , धार्मिक कितने धार्मिक हैं , ईश्वर से डरते हैं ...?, कौन नहीं जानता ...
हर संवेदी मन की यही व्यथा है ...!

अजित गुप्ता का कोना said...

शौभना जी, छोटी सी पोस्‍ट ने कई गम्‍भीर विषय उठाए हैं। मुझे लगता है कि कभी हमारा मन बाबा भारती बन जाता है और कभी डोकू खडगसिंह। हम सब एकदूसरे से छीनने में ही लगे हैं लेकिन जब खुद से छिनता है तब स्‍वयं को बाबा भारती मानते हैं। महाराष्‍ट्र में गणेशोत्‍सव सामाजिक एकता के लिए प्रारम्‍भ किया गया था लेकिन अब उसने दिखावे का रूप ले लिया है, सरकार को चाहिए कि उसके स्‍वरूप पर सीमा निर्धारित करे।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

शोभना जी ,

आज की आपकी पोस्ट पढ़ बहुत कुछ मन सोचने पर मजबूर हो गया है ...श्री सुदर्शन की लिखी कहानी हार जीत का एक एक शब्द जैसे आँखों के सामने आ गया है ...

आपकी लिखी यह पंक्तियाँ मन में आग लगा रही हैं ..
तुमने जमा की है
अपने गोदाम मे
इनके बदले
ईमानदार की आहे
मेहनतकश की
बद्ददुआए
प्रक्रति की
समान वितरण प्रणाली को
असमानता मे तब्दील कर
तुमने अपनी भूख
बढ़ा ली है

काश यह जमाखोर कुछ समझ पायें

शोभना चौरे said...

अजीतजी
आज महाराष्ट्र के साथ साथ मध्य प्रदेश में भी खूब दिखावे के साथ गणेशोत्सव की धूम है |हर क्षेत्र में हम सब मूल उद्देश्य से भटक रहे है चाहे वो धार्मिक पर्व हो , राष्ट्रिय पर्व हो ,smaj seva हो और manav jivan से jude kai avshyk phalu हो ?ऐसा लगता है जैसे धर्मिक क्रांति आ गई हो |

दिगम्बर नासवा said...

सटीक व्यंग है ... आज की अर्थव्यवस्था और हालात पर ....

shikha varshney said...

शोभना जी ! आपका आक्रोश समझने लायक है ..कविता की पंक्तियाँ तूफ़ान मचा रही हैं .
वाकई राम भरोसे चल रहा है देश.

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत सपाट सच कहा है आपने। देश भगवान भरोसे चल रहा है।

rashmi ravija said...

हर मन की व्यथा को आपने शब्दों में ढाल दिया....अपना देश तो सचमुच भगवान भरोसे ही चल रहा है....कभी ख़त्म होने वाली हैं ये सारी अनैतिकताएं...दिनों दिन बढती ही जा रही हैं...हमारे जैसे पढने-लिखने वाले लोग तो दो घड़ी रुक कर ये सब सोच भी लेते हैं...वरना लोग लूटने में लगे हैं देश को...

A.K.Purandare said...

Good one.Hope will read more.However i believe that describing the problem is only one part...suggesting most effective solution is equally more important .I have got firm believe that in future creations we will be able to see that also.
So nice of you.Thanks.

रचना दीक्षित said...

व्यापार के सिद्धांतो
को तोड़कर
प्रक्रति से
दुश्मनी मोल ले ली है
बेवक्त की भूख
कभी शांत नही होती|
सटीक व्यंग है .बहुत ही कड़वा सच .

Anonymous said...

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Thanks
-John

वन्दना अवस्थी दुबे said...

सच है शोभना जी, आज पता नही कितने खड्ग सिंह चारों ओर घूम रहे हैं.
गणेशोत्सव की शुभकामनाएं.

कविता रावत said...

सचमुच भारत भगवान के भरोसे ही चल रहा है ..
.aarajkta ka mahual dekha yahi lagta hai....bahut sahi.
...व्यापार के सिद्धांतो
को तोड़कर
प्रक्रति से
दुश्मनी मोल ले ली है
बेवक्त की भूख
कभी शांत नही होती|
.... ... aapne Peepli live par bahut he khari-khari baat kahi hai... aur samaj mein aaj jis trah se babaon ka bolbala hai.. unkee kartooton ko dekne ke baad bhi sabka maun ban baithta sach mein sochniya vishya hai...
..aise aayojano bhi sach mein tathakathit vishishit bhakton ka jaagna sach much aam aadmi ke liye kitna sukhad hai esse aam janta ab halke fulke andaanj mein leti hai...

ZEAL said...

.

शोभना जी,
यही तो दुःख है ! कोई इमानदारी से जीना नहीं चाहता। न ही जीने देना चाहता है। सभी भेड़-चाल की तरह जिए जा रहे हैं। यदि कोई छिटक कर, अपने आप से इमानदार होकर जीना चाहता है , तो लोग उसे भी मजबूर करके अपनी जमात में शामिल कर लेना चाहते हैं।

बचपन में पढ़ी -" हार की जीत " मानस-पटल पर अंकित है। इससे ज्यादा प्रेरणाप्रद कहानी कभी नहीं पढ़ी।

आपकी रचना में स्पष्ट झलकते दुःख को महसूस कर रही हूँ। इश्वर से प्रार्थना रहती है की, की हमारे समाज में लोगों के नैतिक मूल्यों में वृद्धि करें।

इस सुन्दर लेख एवं पंक्तियों के लिए
आपका आभार।

.

neelima garg said...

बेवक्त की भूख
कभी शांत नही होती|
...ati sundar

Aruna Kapoor said...

व्यापार के सिद्धांतो
को तोड़कर
प्रक्रति से
दुश्मनी मोल ले ली है
बेवक्त की भूख
कभी शांत नही होती|
!....बहुत सुंदर रचना!

शोभनाजी! ..मै आप से सहमत हूं!

Asha Joglekar said...

गणेश जी की व्यथा को आपने ही कह दिया । बहुत अच्छी प्रस्तुति ।