कन्याओ के पांव धोकर उन्हें टीका लगाकर उन्हें उपहार देकर सिंग साहब तैयार होने चले गये क्योकि उन्हें ऑफिस जाना था |अपने गिने चुने बालो को कंघी फेरकर दुरुस्त किया अपनी पुलिस कि वर्दी पहनी |इतने में उनकी श्रीमती जी भी कन्याओ को भोजन परोस कर और बाकि काम अपनी बहू को सोंप कर उनकी सेवा में आ गई उनकी जरुरत का सामान दिया सिंग साहब को |
सिंग साहब ऑफिस जाने के पहले ये कहना नहीं भूले ?अपनी को ?
देखो -आज बहू कि जाँच करवा लेना डाक्टरनी से ?
और लडकी हुई तो तुम जानती ही हो क्या करना है |
आज नवरात्रि समाप्त हो गई है अब कोई दिक्कत नही ?
कल दशहरा है कुछ अच्छी सी मिठाई लेता आऊंगा |
Monday, October 18, 2010
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33 टिप्पणियाँ:
समाज की मार्मिक वेदना है यह।
aisee maansikta peedadayak hai.......
अब शायद यह आदेश कम दिया जाता है...अच्छी लघु कथा..
इस बार मेरे नए ब्लॉग पर हैं सुनहरी यादें...
एक छोटा सा प्रयास है उम्मीद है आप जरूर बढ़ावा देंगे...
कृपया जरूर आएँ...
सुनहरी यादें ....
अच्छा कथानक।
3.5/10
एक आम लघु कथा
कथा-शिल्प और प्रस्तुति प्रभावित नहीं करती.
उफ़ शोभना जी ! क्यों इंसान जानवर से भी बदत्तर बन जाता है.
समाज का दोहरा चरित्र .. उफ!
समाज का घिनौना चेहरा को आप सामने लाए हैं ... ऊपर से सभ्य दिखने वाले जानवर हमारे चारों तरफ कम नहीं है ...
बदसूरत ख्याल वाले लोग---
ऎसी पुजा किसे दिखाने के लिये कि जा रही हे, क्या देवी सिर्फ़ नो दिन ही हमे देखती हे? वाह री दुनिया....
धन्यवाद, लघु लेकिन बहुत सटीक कहानी धन्यवाद
उफ़्फ़! ऐसी मनसिकता वाले लोगों का तो सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए।
यह दोहरी मानसिकता वाले व्यक्ति नहीं, दोगली मानसिकता वाले व्यक्ति हैं!!
नवरात्रि समाप्त तो फिर पाप करने में कैसा डर.... आडम्बर है सब .. :-/
सहज ढंग से भ्रूण हत्या के सच को सच को उजागर करती मार्मिक लघुकथा के लिए बधाई।
सहज ढंग से भ्रूण हत्या के सच को सच को उजागर करती मार्मिक लघुकथा के लिए बधाई।
दोहरी मानसिकता को उजागर करती बहुत ही सुन्दर लघुकथा।
समाज के दोहरे चरित्र पर बढ़िया कटाक्ष ! इन्हें घर में जिमाने के लिए कन्याये भी चाहिए मगर दूसरों की अपने घर में तो सिर्फ लड़का ही देखना चाहते है !
आज के माहौल पर सशक्त प्रहार अच्छा लगा
mem
pranam !
kathani aur karni me kitna fark hota hai .
dil ko choo gayi , badhai
saadar
शोभना जी एक अच्छी लघुकथा कह सकता हूं। क्षमा करें,एक सुझाव भी है। अगर साहब पुलिस वाले न हों तो ज्यादा प्रभाव पड़ेगा। दूसरी बात -और लड़की हुई तो तुम जानती ही हो क्या करना है।- वाक्य में अगर -और अगर लड़की हुई तो- हटा दिए जाएं तो लघुकथा और सशक्त हो जाती है।
ऐसी ही दोहरी मानसिकता ने गहरी जड़ें जमा रखी हैं समाज में.
बहुत ही अच्छे से इस शर्मनाक स्थिति को उजागर किया है, इस लघु कथा ने.
हां, पीडादायी है। मुझे लगता है इस दौर में हल्का सा परिवर्तन होने लगा है..। खासकर शहरों में या एकल परिवारों में। लडकी होना चाहिये.., लडकी ही होना चाहिये...। कुछ इस तरह का। मैं यह नहीं कहता कि ऐसी मानसिकता व्यापक हो चुकी है, मगर बनने लगी है, और जब ऐसा है तो उसे एप्रिशियेट जरूर की जानी चाहिये...। इससे भी बदली मानसिकता को बल मिलता है और सोच व्यापक होकर साकर रूप लेती है।
समाज का दोगला पन ... दोगली मानसिकता ....
करारा कटाक्ष किया है आपने ....
समाज का वीभत्स चेहरा दिखाती अच्छी लघुकथा
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हृदयविदारक आदेश ! शायद कभी समझेंगे ये भी ।
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Laghu katha ke madhayam se aaj ke samaj ka ek peedadayee tasveer ka maarmik chitran... aabhar
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दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ! आप कहाँ हैं आजकल ?
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Itani chotisi kahanee men samaj ka kitana bada dhong ujagar kar diya aapne. Badhaee shobhana jee.
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आपको वापस देखकर बहुत प्रसंनात्ता हुई। ज्यादा दिन हमसे दूर मत रहा कीजिये। शुभ दीपावली !
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शोभना माँ,
नमस्ते!
हा हा हा....
आशीष
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पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!
काश यह आदेश नवरात्रि के हवन् कुंड में जला दिया जाता । तब शायद उनकी बहू को भी दशहरे की मिठाई में स्वाद मिल जाता । और देवी पूजा सार्थक भी हो जाती ।
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