Monday, October 18, 2010

"आदेश "लघुकथा

कन्याओ के पांव धोकर उन्हें टीका लगाकर उन्हें उपहार देकर सिंग साहब तैयार होने चले गये क्योकि उन्हें ऑफिस जाना था |अपने गिने चुने बालो को कंघी फेरकर दुरुस्त किया अपनी पुलिस कि वर्दी पहनी |इतने में उनकी श्रीमती जी भी कन्याओ को भोजन परोस कर और बाकि काम अपनी बहू को सोंप कर उनकी सेवा में आ गई उनकी जरुरत का सामान दिया सिंग साहब को |
सिंग साहब ऑफिस जाने के पहले ये कहना नहीं भूले ?अपनी को ?
देखो -आज बहू कि जाँच करवा लेना डाक्टरनी से ?
और लडकी हुई तो तुम जानती ही हो क्या करना है |
आज नवरात्रि समाप्त हो गई है अब कोई दिक्कत नही ?
कल दशहरा है कुछ अच्छी सी मिठाई लेता आऊंगा |

33 टिप्पणियाँ:

प्रवीण पाण्डेय said...

समाज की मार्मिक वेदना है यह।

Apanatva said...

aisee maansikta peedadayak hai.......

Anonymous said...

अब शायद यह आदेश कम दिया जाता है...अच्छी लघु कथा..

इस बार मेरे नए ब्लॉग पर हैं सुनहरी यादें...
एक छोटा सा प्रयास है उम्मीद है आप जरूर बढ़ावा देंगे...
कृपया जरूर आएँ...

सुनहरी यादें ....

अजित गुप्ता का कोना said...

अच्‍छा कथानक।

उस्ताद जी said...

3.5/10


एक आम लघु कथा
कथा-शिल्प और प्रस्तुति प्रभावित नहीं करती.

shikha varshney said...

उफ़ शोभना जी ! क्यों इंसान जानवर से भी बदत्तर बन जाता है.

M VERMA said...

समाज का दोहरा चरित्र .. उफ!

Coral said...

समाज का घिनौना चेहरा को आप सामने लाए हैं ... ऊपर से सभ्य दिखने वाले जानवर हमारे चारों तरफ कम नहीं है ...

अजय कुमार said...

बदसूरत ख्याल वाले लोग---

राज भाटिय़ा said...

ऎसी पुजा किसे दिखाने के लिये कि जा रही हे, क्या देवी सिर्फ़ नो दिन ही हमे देखती हे? वाह री दुनिया....
धन्यवाद, लघु लेकिन बहुत सटीक कहानी धन्यवाद

मनोज कुमार said...

उफ़्फ़! ऐसी मनसिकता वाले लोगों का तो सामाजिक बहिष्कार होना चाहिए।

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

यह दोहरी मानसिकता वाले व्यक्ति नहीं, दोगली मानसिकता वाले व्यक्ति हैं!!

Manoj K said...

नवरात्रि समाप्त तो फिर पाप करने में कैसा डर.... आडम्बर है सब .. :-/

देवेन्द्र पाण्डेय said...

सहज ढंग से भ्रूण हत्या के सच को सच को उजागर करती मार्मिक लघुकथा के लिए बधाई।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

सहज ढंग से भ्रूण हत्या के सच को सच को उजागर करती मार्मिक लघुकथा के लिए बधाई।

vandana gupta said...

दोहरी मानसिकता को उजागर करती बहुत ही सुन्दर लघुकथा।

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

समाज के दोहरे चरित्र पर बढ़िया कटाक्ष ! इन्हें घर में जिमाने के लिए कन्याये भी चाहिए मगर दूसरों की अपने घर में तो सिर्फ लड़का ही देखना चाहते है !

रचना दीक्षित said...

आज के माहौल पर सशक्त प्रहार अच्छा लगा

सुनील गज्जाणी said...

mem
pranam !
kathani aur karni me kitna fark hota hai .
dil ko choo gayi , badhai
saadar

राजेश उत्‍साही said...

शोभना जी एक अच्‍छी लघुकथा कह सकता हूं। क्षमा करें,एक सुझाव भी है। अगर साहब पुलिस वाले न हों तो ज्‍यादा प्रभाव पड़ेगा। दूसरी बात -और लड़की हुई तो तुम जानती ही हो क्‍या करना है।- वाक्‍य में अगर -और अगर लड़की हुई तो- हटा दिए जाएं तो लघुकथा और सशक्‍त हो जाती है।

rashmi ravija said...

ऐसी ही दोहरी मानसिकता ने गहरी जड़ें जमा रखी हैं समाज में.
बहुत ही अच्छे से इस शर्मनाक स्थिति को उजागर किया है, इस लघु कथा ने.

अमिताभ श्रीवास्तव said...

हां, पीडादायी है। मुझे लगता है इस दौर में हल्का सा परिवर्तन होने लगा है..। खासकर शहरों में या एकल परिवारों में। लडकी होना चाहिये.., लडकी ही होना चाहिये...। कुछ इस तरह का। मैं यह नहीं कहता कि ऐसी मानसिकता व्यापक हो चुकी है, मगर बनने लगी है, और जब ऐसा है तो उसे एप्रिशियेट जरूर की जानी चाहिये...। इससे भी बदली मानसिकता को बल मिलता है और सोच व्यापक होकर साकर रूप लेती है।

दिगम्बर नासवा said...

समाज का दोगला पन ... दोगली मानसिकता ....
करारा कटाक्ष किया है आपने ....

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

समाज का वीभत्स चेहरा दिखाती अच्छी लघुकथा

ZEAL said...

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हृदयविदारक आदेश ! शायद कभी समझेंगे ये भी ।

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Anonymous said...
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कविता रावत said...

Laghu katha ke madhayam se aaj ke samaj ka ek peedadayee tasveer ka maarmik chitran... aabhar

ZEAL said...

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दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ! आप कहाँ हैं आजकल ?

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Asha Joglekar said...

Itani chotisi kahanee men samaj ka kitana bada dhong ujagar kar diya aapne. Badhaee shobhana jee.

Anonymous said...
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ZEAL said...

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आपको वापस देखकर बहुत प्रसंनात्ता हुई। ज्यादा दिन हमसे दूर मत रहा कीजिये। शुभ दीपावली !

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सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

शोभना माँ,
नमस्ते!
हा हा हा....
आशीष
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पहला ख़ुमार और फिर उतरा बुखार!!!

palash said...

काश यह आदेश नवरात्रि के हवन् कुंड में जला दिया जाता । तब शायद उनकी बहू को भी दशहरे की मिठाई में स्वाद मिल जाता । और देवी पूजा सार्थक भी हो जाती ।