वो मोर मुकुट वाला
आँखों में शरारत लिए
मेरे सम्मुख खड़ा है
मै उसे निहारती |
उसके होठो से लगी
मुरली की तान सुनकर
जीवंत होती
या कि अपनी
सुध बुध खो देती |
मेरी कल्पना है
या ,आभास
उसमे डूबती उतरती
परमानन्द को पाती |
मेरी कामना हो पूरी
ये आकांक्षा नहीं
सदा मै
तुम्हे पुकारू
ये आकांक्षा
रहे मेरी |
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18 टिप्पणियाँ:
मेरी कल्पना है
या ,आभास
वो मोर मुकुट बंसी वाला ...सामने खड़ा उसे निहारती ...
गदगद हुए ...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ...
मुरलीधारी मधुर मनोहर।
बहुत पावन सुन्दर सी रचना.
सदा मै
तुम्हे पुकारू
ये आकांक्षा
रहे मेरी |
बस यही आकांक्षा बनी रहनी चाहिये…………भक्ति रस से ओत-प्रोत रचना।
ईश्वर आपकी आकांक्षाओ और कामनाओ दोनो को पूरा करे।
सच्ची भक्ति पूर्ण रचना
बहुत सुन्दर ..
behad sundar kavita badhai shobhnaji
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (2/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
मुरली वाले की बात ही कुछ और है ...
निराला है कृष्ण
मनोज खत्री
---
यूनिवर्सिटी का टीचर'स हॉस्टल - अंतिम भाग
मेरी कल्पना है
या ,आभास
उसमे डूबती उतरती
परमानन्द को पाती |
बिलकुल भाव-विभोर कर देने वाली रचना
बहुत सुन्दर भक्ति रस से ओत-प्रोत रचना।
उसके होठो से लगी
मुरली की तान सुनकर
जीवंत होती
या कि अपनी
सुध बुध खो देती |
बहुत ही सुंदर स्तुति..... मनोहारी रचना
.
श्रीकृष्ण चिंतन और मुरली की धुन में ही जगत की समस्त समस्यायों का हल है। इश्वर आपको खुशियाँ और मन का सुकून दे। इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपका आभार।
.
आदरणीया शोभना चौरे जी
प्रणाम !
कृष्ण-भक्ति और प्रेम की बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आपने अपनी रचना के माध्यम से पहुंचाई है … आभार !
मेरी कामना हो पूरी
ये आकांक्षा नहीं
सदा मै
तुम्हे पुकारू
ये आकांक्षा
रहे मेरी
सच है , प्रेम प्रत्युत्तर में कुछ मांगता नहीं … प्रेम करते रहना ही चाहता है सच्चा प्रेमी !
कृष्ण-प्रेम में लिखी मेरी एक ग़ज़ल का एक शे'र और फिर मतला आपको सादर समर्पित कर रहा हूं -
वो तब भी सबसे दूर था , वो अब भी पास है
काइम जहां में उसकी ही ज़ादूगरी रही
उस मोरपांख वाले से दीवानगी रही
उसकी ही बंदगी में ज़िंदगी मेरी रही
सादर शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार
मेरी कामना हो पूरी
ये आकांक्षा नहीं
सदा मै
तुम्हे पुकारू
ये आकांक्षा
रहे मेरी ...
यह आकांक्षा पूरी होना ही जीवन की उपलब्धि है..बहुत सुन्दर भक्तिपूर्ण रचना...आभार
शोभना माँ,
सुन्दर चित्रण,
जय श्री कृष्ण.
आशीष
---
नौकरी इज़ नौकरी!
मेरी कामना हो पूरी
ये आकांक्षा नहीं
सदा मै
तुम्हे पुकारू
ये आकांक्षा
रहे मेरी |
....man ke sachhe udgaar...
saparpit bhakti ka sundar roop... man ko bahut achha laga..
मेरी कल्पना है
या ,आभास
उसमे डूबती उतरती
परमानन्द को पाती |
Kaisi awastha hogi ye bhee!
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