दुकानों की,
लम्बी कतार के बीच
मेरा मकान
कहीं खो गया है |
जाना पहचाना था
सबका
आज अजनबी हो गया है |
गगन चुम्बी इमारतों
की नीरवता
के समक्ष
खंडहर भी वाचाल
हो गया है |
सुना है ?
आलीशान फ़्लैट के
मालिक होकर भी
दो गज
"ज़मीन" की
तमन्ना रखते हो ?
Wednesday, July 06, 2011
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17 टिप्पणियाँ:
शोभना दी!
बहुत ही गहरी बात कही है आपने.. आज तो संस्मरण से दर्शन की बातें कह दीं आपने!!बहुत अच्छी!!
बहुत कुछ कह गईं आपकी पंक्तियाँ.
आज की फ़्लैट संस्कृति पर कहती आपकी रचना अच्छी लगी
गगन चुम्बी इमारतों
की नीरवता
के समक्ष
खंडहर भी वाचाल
हो गया है |
--कविता में यह नया ख्याल अच्छा लगा .
सुना है ?
आलीशान फ़्लैट के
मालिक होकर भी
दो गज
"ज़मीन" की
तमन्ना रखते हो ?
Yahee to vidambana hai! Baat to bahut gahari hai!
सुना है ?
आलीशान फ़्लैट के
मालिक होकर भी
दो गज
"ज़मीन" की
तमन्ना रखते हो ?
Behtreen .... Gahan Abhivykti
अधिकार जताती दुनिया में, सबको मिलना आकार वही।
एक ही सीढ़ी चढ़ चले राजा रंक फ़कीर ....
सबकी गति एक समान ही है , वही दो गज जमीन ...
मगर फिर भी ??
बेहद गहन और सटीक अभिव्यक्ति।
वाह...यथार्थ के करीब इस रचना के लिए बधाई...
नीरज
जब जमीन ही नहीं होगी तो,दो गज जमीन कैसे मिलेगा ?
बहुत गहरी बात कही अपने....
सच है दो गज ज़मीन तो सभी को चाहिए ... पर जब सब सब इच्छाएं खत्म हो जाएँ तब ..
सुना है ?
आलीशान फ़्लैट के
मालिक होकर भी
दो गज
"ज़मीन" की
तमन्ना रखते हो ?
..sab kuch yahi to dhra rah jaata hai...
bahut hi gahan arthpurn prastuti hetu aabhar!
नए-नए मकान और उसमें रहती मशीनीकृत मानवों के लिए अपने ही घर अनजान होते जा रहे हैं !
pehli baar aapke blog mei ayi hoon... mere blog ka naam "ABHIVYAKTI' hai..to bus ye dekh ke achambhit reh gayi ki 4-6 logon ke blog ka title bhi yahi hai... yahan aa ker apki rachna padhne ko mili, bahut achha laga khas kerke ye panktiyan....
गगन चुम्बी इमारतों
की नीरवता
के समक्ष
खंडहर भी वाचाल
हो गया है |
kabhi hame bhi aa ker darshan dein..
बेहद गहन अभिव्यक्ति।
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