Saturday, August 06, 2011

"सोच और सपने "

सपनो के आकाश में
चिर परिचित
मेहमान
आशाओ के ,
आकाक्षाओ के |

मन के समुंदर में
ढेर सारे मोती
खुशियों के ,
आंसुओ के |

तन के ठिकाने में
एक नई सुबह ,
एक उनींदी शाम
जागती हुई रात |

सपने
मन
तन
जिन्दगी से जुड़े
या कि ?
जिन्दगी
सपनों से
मन से
तन से
जुडी ?

13 टिप्पणियाँ:

संजय भास्‍कर said...

आदरणीय शोभना जी
नमस्कार !
बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना...... आभार

संजय भास्‍कर said...

अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार

प्रवीण पाण्डेय said...

सपनों का ताना-बाना,
अपनों का आना-जाना।

vandana gupta said...

गहन अर्थो को समेटती सुन्दर रचना।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सपने
मन
तन
जिन्दगी से जुड़े
या कि ?
जिन्दगी
सपनों से
मन से
तन से
जुडी ?

गूढ़ प्रश्न करती अच्छी रचना

मनोज कुमार said...

विचारोत्तेजक कविता।

वाणी गीत said...

सपने जिंदगी से या जिंदगी सपनो से ...
दोनों का अन्योनाश्रित सम्बन्ध है ... जिंदगी है तो सपने हैं ...और देखे हुए सपने पूरा करने के प्रयास जिंदगी !

रचना दीक्षित said...

अद्भुत संसार है सपनों का और सपनो से जिंदगी से गहरा रिश्ता है. बहुत सुंदर लगी यह प्रस्तुति.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

शोभना दी!
एक प्रश्न जो हमेशा व्यक्ति स्वयं से पूछता है और उसका उत्तर खोजने की चेष्टा करता है.. लेकिन यह प्रश्न हल नहीं होता!! अद्भुत जीवन दर्शन!!

Vivek Jain said...

बढ़िया रचना के लिए शुभकामनायें

विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

ज्योति सिंह said...

सपने
मन
तन
जिन्दगी से जुड़े
या कि ?
जिन्दगी
सपनों से
मन से
तन से
जुडी ?
bahut hi sundar rachna hai ,ek geet dhyaan aa raha -jindagi khwab hai khwab me jhoot kya sach kya ...........

Anonymous said...
This comment has been removed by a blog administrator.
ZEAL said...

सपनों की दुनिया है . उसी से जीवन चल रहा है ! सपनों की पूर्ती में हज़ारों अपेक्षाएं भी जुडी हुयी हैं ! एक बेहतरीन यथार्थपरक रचना !