होली का उत्साह चारो और दिखाई देने लगा है भारतीय त्योहारों का
आकर्षण ही तन मन को विभोर कर देता फ़िर होली तो है ही रंगीला उमंगो से भरा
त्यौहार ,किंतु आजकल पानी की कमी के कारण पानी को बचाने के उदेश्य से
सिर्फ़ गुलाल से होली खेलने की जरुरत महसूस की जा रही है और हम सब का
कर्तव्य है की होली भी खेले और और इस त्यौहार की गरिमा को भी बनाये रखे |
तो आओ कुछ इस तरह होली खेले |
"शब्दों की होली"
महुआ
'महुआ 'नही है तो क्या ?
मै हूँ ,हम है ,आप है |
पलाश
'पलाश नही है तो क्या ?
पिचकारी है, लड़कपन है ,शरारत है|
रंग ,रंग रंग
रंग नही है तो क्या ?रंग ,रंग रंग
रात की रानी है ,
गुलाब की बहार है |
पानी
"पानी" नही है तो क्या?
पास है अपने सभी तो
निराशा की क्या बात है ?
तो आओ
निराशा की क्या बात है ?
तो आओ
लड़कपन की, पिचकारी की शरारत को
याद करके ,
रात की रानी ,गुलाब की महक से
,सारा जहा अपना बना ले |
आप हम और मैयाद करके ,
रात की रानी ,गुलाब की महक से
,सारा जहा अपना बना ले |
अबके बरस इस होली में |
7 टिप्पणियाँ:
बहुत ही सुंदर
्बहुत सुन्दर ख्यालात
शब्दों से भी कहाँ किसी को छोड़ा जाता है?
होली की शुभकामनाएं। सभी व्यक्ति आसाराम बापू की तरह होली नहीं खेलता जो पानी की कमी का रोना रोया जा रहा है।
होली के मधुर भाव प्रेम के होते हैं ... किसी दूसरे भाव की क्या जरूरत ...
होली की बधाई ...
सुन्दर, हमेशा की तरह !!
होली के रंग खूब खिले..सुन्दर
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