Monday, March 25, 2013

होली के रंग ,मेरे जीवन के संग

 होली के रंग , मेरे जीवन के संग 



जैसे जैसे होली नजदीक आ रही है मन में उत्साह का संचार होने लगा  है 
,बचपन से लेकर अब तक की कितनी ही होलियाँ चलचित्र की भांति घूमती  जा रही है आँखों के सामने । गाँव की होली ,जिसमे दादाजी का अपना तर्क रहता था यह ब्राह्मणों का त्यौहार नहीं है! और कभी घर के बाहर नहीं निकलने दिया जाता ,बस उपर की  खिड़की में से  लोगों को देखते रहते ।  गुलाल ,रंग और कोई कोई गोबर भी छीट देते शरारत में भरकर, तब  मन को अच्छा ही लगता की दादाजी सच कहते है । थोड़े बड़े  हुए छोटे शहर में  आये तो भी बाहर निकलने   की पिताजी की ओर  से सख्त मनाई लडकियाँ होने की वजह से ।हाँ पिताजी और चाचाजी जरुर पकोड़े खाक र निकल जाते होली खेलने जल्दी ही ,ताकि लोग घर में बुलाने न आजाये । हम भी कहाँ मानने वाले हम सब बहने चचेरी बुआ ये ,फुफेरी बहने तो रात को ही आ जाती क्योकि होली के दिन सबको बहर निकलने की सख्त मनाई होती । बस फिर क्या ?कुए पर बाल्टियो से पानी खीचकर एक दूसरे  पर बेतहाशा डालना और मस्ती करना । कालेज में आये तो कालेज में  बाम की डिब्बियों में गुलाल भरना उसके उपर छेद करना और होली के बाद पाँच दिनों की मस्ती (म. प्र. में रंग पंचमी तक होली मानते है  ।  )शादी के बाद मुंबई में होली आई तो बस सब पूरनपोली खाकर बिना गुलाल ,रंग के होली मनाते|  अगली होली पर हमने ठान लिया था  , सबको बाहर निकालकर रहेँगे  कालोनी में सब मुझसे उम्र बे बड़े थे, और बच्चे थे सब ७ या ८  साल के| 
 उनको इकठा किया , गुलाल हाथ में लिया और सबके घरो में  जाकर सबको गुलाल लगाया प्रणाम किया ।सब इस डर  में की कही शोभा भाभी घर में ही रंग न बिखेर  दे  इस डर से, या उन्हें अच्छा लगा इस तरह होली मनाना? सब बाहर निकल आये । फिर   तो कई सालो तक यह सिलसिला चलता रहा उसमे नये लोग जुड़ते गये | नये रंग, नये पकवान, नए खेलो के साथ होली मनती रही ।उसमे गुब्ब्बरो की होली सबको ज्यादा भाने लगी ।  

फिर जब राजस्थान और  मध्य प्रदेश की  बार्डर पर रहने आये तो फिर क्या था होली बहुत रंगमय हो गई | सीमेंट फेक्ट्री की टाउनशिप की होली जिसमे सभी रंग होते स्नेह  मिलन   ,
दही बड़े ,कांजी बड़े , ठंडाई के साथ  ही रंग गुलाल और हाँ अब तक" रंग बरसे भीगे चुनर वाली "यह गाना भी होली पर गाना अनिवार्य सा हो गया था  । इन रंगों में कोई वार्निश ,मिला देता या बहुत ही काले रंग लगा देता तो दादाजी की कही बात फिर से याद आ जाती ।हाँ राजस्थान में रंग तेरस को भी खूब होली मनती और सखियो. के संग खूब  बासोड़ा खाते। 
 फिर इंदौर की होली असल होली, भयंकर होली रंगों की, पानी की,  गेर की गेर निकलती गाने गाते बजाते ,बहु बेटे के साथ और कालोनी के सभी लोगो के साथ खूब जमकर होली खेली जाती ,होली खेलने के पहले ही हम सब अड़ोसी पड़ोसी एक एक खाने की चीजे बना लेते और होली खेलने ,अन्ताक्षरी खेलने के बाद नहाने धोने के बाद दोपहर में सहभोज होता । बहुत ही संक्षिप्त में होली को समेट  लिया है | 
होली हो और राधा  किशन का नाम न हो ?होली का त्यौहार और राधाकिशन एक  दुसरे के पर्याय हो गये है मथुरा व्रन्दावन में तो एक माह पहले से ही फाग शुरू होजाता है संयोग से कुछ साल पहले माघ की पूर्णिमा को द्वारकाधीश मंदिर में होली शुरुआत देखने का अवसर मिला था ,मन प्रफ्फुलित हो गया था वह की शोभा देखकर | हमेशा मन में प्रश्न उठता है सीता राम की होली का कही कोई वर्णन नहीं है ?
शिवजी की होली ,भंग घोटा अबीर  गुलाल से हमेशा शिवजी प्रसन्न रहते है । 
ओंकारेश्वर में नर्मदा नदी केतट  पर एक निमाड़ी होली लोक गीत प्रसिद्द है "निमाड़ी होली लोक गीत "
'


निमाड़ी-     नर्बदा रंग सी भरी होळ इ खेलो श्री ओंकार 
हिंदी -नर्मदा रंग से भरी है होली खेल लो श्री ओंकार 
निमाड़ी -काय का तो रंग  बनाया तो काय न की  पिचकारी नर्बदा ........
हिंदी -किस चीज से  रंग बनाये है और किससे पिचकारी 
निमाड़ी -अर्ण बरन का रंग बनाया न कंचन की पिचकारी नर्बदा ........
हिंदी -(अर्ण ,बर्न एक जंगली जड़ी )का  रंग बनाया  और सोने  की पिचकारी
निमाड़ी -भरी पिचकारी अंग पर डारी ,तो भींज गई पारबती नर्बदा .........
 हिंदी -पिचकारी भरकर पारबती जी के अंग पर शिवजी ने डाली तो पार्वतीजी पूरी तरह से भीग गई |

बंसी वाले की जय 
मुरली वाले की जय  राधे रानी की जय महारानी की जय 


बोलो कीर्ति कुमारी की जय जय 




                                           
ओंकारेश्वर   का विहंगम द्रश्य


                                   


पूजन सामग्री से सजी दुकाने 
ममलेश्वर में पूजा 
श्वेता क्षितिज  बहू  बेटा 
इतना गुलाल लगाओ की कभी न छूटे
विक्रम सीमेंट परिवार के साथ होली  
इंदौर की मदमस्त होली 
होली के बाद बाल  गोपाल का भोजन 
मुंबई की सखियों के साथ होली (अब क्या करे )

                 




  होली सबके जीवन में खूब खूब रंग भर दे ।






9 टिप्पणियाँ:

सदा said...

होली सबके जीवन में खूब खूब रंग भर दे ।
... बिल्‍कुल सच कहा आपने
होलिकोत्‍सव की अनंत शुभकामनाएं

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

होली पर शानदार पोस्ट ॥टाउनशिप में हर त्योहार का रंग निराला होता है ... होली की शुभकामनायें

प्रवीण पाण्डेय said...

रंगबिरंगी यादें जुड़ी हैं होली में।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

वाह...शानदार यादों में शामिल करने के लिये शुक्रिया शोभना जी. शुभकामनाएं.

Archana Chaoji said...

रंग-बिरंगी होली की बधाई और शुभकामनाएँ आपको व आपके पूरे परिवार को ...

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सुंदर स्मृतियाँ...रंग पर्व की शुभकामनायें

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

होली की इतनी यादें और इतने सारे प्रदेशों की स्मृतियाँ.. शोभना दी, बस मज़ा आ गया होली का.. हमारे मन में चलचित्र सा घूम गया अतीत का हर दृश्य..
बस इस होली पर आपके चरण स्पर्श की कामना है और आशीर्वाद की दरकार, जिसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है!! प्रणाम!!

Smart Indian said...

रंगों के पर्व की रंग-बिरंगी यादें! शुभकामनायें!

अजित गुप्ता का कोना said...

होली खेलने का अपना ही मजा है, जिस वर्ष भी नहीं खेलते हैं, खालीपन सा लगता है।