Friday, February 14, 2014

स्नेह का कोई मापदंड नहीं .......

खून के रिश्ते तो अपने ही होते है जिनके लिए पारिवारिक सामाजिक कार्यक्रम होते ही है  और जो इस बहाने से निभाए ही जाते है कितु कोई सिर्फ पाँच या छ्ह मुलाकातो में   इतनी आत्मीयता भर देता है कि मेरा अपना ये  मिथक भी टूट जाता है कि सहेलियाँ ,दोस्त सिर्फ स्कूल कालेज में ही बन पाते है। मेरी उससे सिर्फ पाँच साल पहले एक अध्यात्मिक शिविर में मुलाकात हुई   जहाँ हम दोनों को साथ में रहना था   बस फिर क्या था हमनेअपनी सारी   रात बातो में बाँट ली और सुबह के चार बज गये आश्रम में मंगला आरती का समय हो गया फिर पूरा दिन सारे  सत्रों में हिस्सा लिया और साँझ को विदा हो लिए। उसके कई महीनो तक मिलना नहीं हुआ फिर एक बार फोन पर बात हुई उसको अपने घर कि नपती करवानी थी हमारे कोई परिचित थे उन्होंने उनकी मदद कर दी. अपने पति  कि असामयिक  म्रत्यु   के बाद अपनी दो लड़कियो के साथ वो इंदौर में रह रही थी क्योकि आखिरी में यही पदस्थ हुए थे जिला  चिकित्सालय में वरिष्ठ चिकित्सक के पद पर। अपनी ईमानदारी के कारण उनकी मौत संदिग्ध ही रही जिसके लिए उसने बहुत कोशिश कि बहुत दौड़ धुप कि सच सामने लाने  ले लिए किन्तु दोनों बेटियो कि परवरिश और अपनी नौकरी उसकी व्यस्तता के चलते ज्यादा जानकारी जुटा  नहीं पाई ,इस बीच बड़ी बेटी कि शादी की  वो विदेश में बस  गई छोटी बेटी कि नौकरि मुम्बई में लग गई वो खुद भी अपने स्त्री रोग विशेषज्ञ चिकित्सक के पद से रिटायर्ड हो गई। इस बीच  मेरा रहना भी ज्यादातर बेंगलुरु में  ही रहा मिलना भी नहीं हुआ और न ही कोई बातचीत। अभी पिछले साल अचानक आश्रम में मिलना हुआ न ही कोई शिकवा शिकायत बस स्नेह से मिले और विदा ले ली। एक दिन फोन पर बात कि दीदी!( हम उम्र होने के बाद भी मुझे वो दीदी ही कहती ) आपकी सिस्टर मुम्बई में है मई भी बेटी के साथ वाही रहूंगी मैंने उससे सम्पर्क करवा दिया दोनों भी अच्छी मित्र बन गई पिछले साल अगस्त में इंदौर आई थी बहन भी मैं  भी तब उसने आग्रह कर हमे बुलाया और नाश्ते  के साथ  आलू के परांठे भी पैक कर दिए।
उसके बाद फोन पर ही बात हुई। निशुल्क सबका उपचार और स्नेह के बोल उसके मरीजो के लिए वरदान था।
इसी के तहत ,बहन ने उसके फोन पर बात करनी चाही तब दो दिन बाद उसकी बेटी ने फोन उठाया और कहा -
आंटी आपको मालूम नहीं ?मां तो नहीं रही। बहन ने फोन रख दिया तुरंत मुझे फोन किया अलका दीदी  नहीं रही मैं  भी कुछ बोल ही नहीं सकी । इतनी दूर यह खबर हम दोनों बहनो के लिए स्तब्ध करने वाली थी.
अपनी बेटी के साथ वो अपने पति के केस कि पेशी के लिए ४ तारीख को इंदौर आई और ५ तारीख को ह्रदयगति रुकने के कारण अपनी देह का त्याग कर दिया अपने उस घर में, जिसके लिए उन्होंने करीब १५ दिन पहलेमुझे   फोन किया था ;दीदी आपकी पहचान का कोई वकील हो तो बताइयेगा मैं  अपने दोनों फ्लैट अपनी बेटियो के नाम करवाना चाहती हूँ ,दीदी मैं  आपसे बात करती हूँ तो मुझे लगता है आप मेरे अपने हो। और वही  अपनी, जिसका कि हमारे साथ जयपुर के  रामकृष्ण मंदिर उद्घाटन में जाने  का  टिकिट था हमे बीच में  ही छोड़कर अपना टिकिट लेके   चली गई।
 मेरे पास उसका कोई छाया चित्र नहीं है कितु वो मेरे दिल दिमाग पर ऐसी छाई है कि मैं बार बार अपने  आंसू नहीं रोक पा  रही हूँ .....

7 टिप्पणियाँ:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

क्या कहूँ दीदी! किसी का पल भर का साथ सारी ज़िन्दगी के लिए अपना होकर रह जाता है और कोई ज़िन्दगी भार साथ होकर भी अपना नहीं बन पाता... कोई साथ-साथ रहते हुए बस पास-पास रह जाता है और कोई दूर रहकर भी दिल के करीब होता है...
बहुत दुख हुआ अलका जी के विषय में सुनकर!! ख़ासकर तब जब वो आपकी आत्मीय थीं! परमात्मा उनकी आत्मा को शांति दे!

प्रवीण पाण्डेय said...

दुखद, श्रद्धांजलि।

k.r. billore said...

Haradaya katha shabdo me piroi, ashru ruk na paye, aap to kahkar thodisi hulki hui ho shayad, humko dil bhar ke yaad dila gai vo bichuddi pavitra Aatma, ,,,,,,,

rashmi ravija said...

ओह !बिलकुल समझ सकती हूँ आपकी वेदना...जिनसे मन मिल जाए वे फिर कहाँ अजनबी लगते हैं. मेरे भी एक मित्र अचानक चले गए ,जिनसे मैं कभी मिली भी नहीं थी पर आज भी उनकी याद आँखें नम कर जाती हैं.

विनम्र श्रद्धांजलि !!

दिगम्बर नासवा said...

कभी कभी अनजाने भी इतने करीब हो जाते हैं की हमेशा याद आते हैं ... मेरी श्रधांजलि है ...

डॉ. मोनिका शर्मा said...

विनम्र नमन ...

SKT said...

उनके अंदर जरूर कोई अजस्त्र स्रोत था स्नेह का जिसकी फुहार से जो कोई भी उनके पास आये, भीग जाता होगा