Tuesday, May 19, 2009

श्रद्धा और प्रार्थना

स्वामी विवेकानंद जब विदेश यात्रा से लौटे और उनसे पूछा गया कि अमेरिका के वैभव अवम भोतिक सम्रद्धि को देखने के बाद उन्हें भारत कैसा लगता है ,तो वे तत्काल बोल उठे "पहले मै भारत से प्रेम करता था ,लेकिन वह अब मेरे लिए पुण्यभूमि हो गया है तथा इसका प्रत्येक धूलिकण मेरे लिए तीर्थ बन गया है |"

प्रार्थना के बारे में उनका कहना था -
मनुष्यत्व के लिए प्रार्थना ही भारतवासी की सर्व श्रेष्ठ प्रार्थना है,"हे गौरीनाथ !हे जगदम्बे!मुझे मनुष्यत्व दो !माँ ,मेरी दुर्बलता और कापुरुषता दूर कर दो ,माँ मुझे मनुष्य बना दो |
साभार
मातर दर्शन

2 टिप्पणियाँ:

दिगम्बर नासवा said...

प्रेरक प्रसंग है..............विवेका नन्द जी का

Anonymous said...

वाह! उनका अनुभव एक देशप्रेमी NRI के द्वारा सहज रूप से ही महसूस किया जा सकता है!