स्वामी विवेकानंद जब विदेश यात्रा से लौटे और उनसे पूछा गया कि अमेरिका के वैभव अवम भोतिक सम्रद्धि को देखने के बाद उन्हें भारत कैसा लगता है ,तो वे तत्काल बोल उठे "पहले मै भारत से प्रेम करता था ,लेकिन वह अब मेरे लिए पुण्यभूमि हो गया है तथा इसका प्रत्येक धूलिकण मेरे लिए तीर्थ बन गया है |"
प्रार्थना के बारे में उनका कहना था -
मनुष्यत्व के लिए प्रार्थना ही भारतवासी की सर्व श्रेष्ठ प्रार्थना है,"हे गौरीनाथ !हे जगदम्बे!मुझे मनुष्यत्व दो !माँ ,मेरी दुर्बलता और कापुरुषता दूर कर दो ,माँ मुझे मनुष्य बना दो |
साभार
मातर दर्शन
Tuesday, May 19, 2009
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2 टिप्पणियाँ:
प्रेरक प्रसंग है..............विवेका नन्द जी का
वाह! उनका अनुभव एक देशप्रेमी NRI के द्वारा सहज रूप से ही महसूस किया जा सकता है!
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