मै हारी नही !
बस थकी हू थोडी
शाम के धुधलके में
रिश्तो को तलाशती ,
रात के अंधेरो में, और न गहराए
मेरे अनमोल रिश्ते
इसीलिए फ़िर से
सक्रिय हो जाती हुँ |
पुराने कपडो की तरह
प्रिय लगने वाले रिश्ते |
माँ कहती- कपडो का रंग
न उड़ने दो
और झट से उन्हें
दो रूपये के रंग में रंग देती
कपडे चमक जाते |
पिता कहते -बेटी !
कपडो की इज्जत करोगी
वो तुम्हारी इज्जत करेगे
और महगा कपड़ा
लाकर देते |
मै माँ के रंगों में ,
पिता के स्थायित्व मूल्यों को ,
बरकरार रखने का
प्रयत्न करती हुई
भूल जाती हुँ अपनी थकन को |
प्रभात की बेला में
ताजगी के साथ
प्यार करने लगती हुँ
अनमोल रिश्तो को ---------------
शोभना चौरे
Tuesday, May 26, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
4 टिप्पणियाँ:
रात के अंधेरो में, और न गहराए
मेरे अनमोल रिश्ते
रिश्तों की सार्थकता ........... उनको जीवित रखने की ललक ही तो जीवन है..............अगर रिश्ते न हों तो जीवन खाली पन से भर जाएगा............बहुत ही लाजवाब लिखा है आपने
बहुत अच्छा लिखा आपने,
सब के दिल मे बस,
यही एक बात होती है,
रिश्तों को सहेजते हुए,
सुबह की शुरुआत होती है,
पर आज कल कुछ
अलग ही मौसम चल रहे है,
लोग जिन्हे हम इंसान कहते है,
बड़े ही शौक से,
रिश्तों की अहमियत बदल रहे है.
rishte......./
jab bhi do chije milkar ek hone ka prayaas karti he, darshan me use vibhed to manaa hi jaataa he/ jab bhed he to ek nahi ho pate, yahi karan he rishte dard de jaate he/
bahut achhi rachna
badhaai
मै माँ के रंगों में ,
पिता के स्थायित्व मूल्यों को ,
बरकरार रखने का
प्रयत्न करती हुई
भूल जाती हुँ अपनी थकन को |......निःशब्द हूँ
Post a Comment