ब्लॉग पढ़ते ,अख़बार पढ़ते हुए ,टी .वि .देखते हुए एक ही समाचार या एक ही विषय आजकल कॉमन है बेटियों या महिलाओ पर अत्याचार टी वि देखकर तो ऐसा लगता है मानो लडकी न हुई कोई कीडा हो गया बस मसल दोहो सकता है कुछ प्रदेशो में अज भी ये सब चला अ रहा हो पर उनको बढा चढा कर दिखाना क्या उसे और प्रोत्साहन देना नही है क्या ?और वो भी एक महिला के माध्यम से
एक तरफ तो लडकिया सिविल सर्विसेस में अव्वल अपना मुकाम हासिल कर रही है ,दूसरी तरफ कई कन्याये धरती पर आने के लिए सघर्ष कर रही है लेकिन आज भी बहुत से घरो में बेटियों को लाढ प्यार से पालकर उनको उच् शिक्षा देने के लिए माँ बाप प्रयत्नरत है और तो और सुदूर विदेशो में पढ़ने और नोकरी करे को भेज रहे है ओर उससे प्रेरणा लेकर कई परिवार अपनी लड़कियों के बारे में सोचने लगे है
मेरा khneका आशय है सभी घरो में एक सा नही होता बाबा दादी अपने पोते पोते के साथ ही उतना ही प्यार अपनी पोती से भी करते है अज जब सबके ब्लॉग पढ़ने लगती हुँ तो मन की स्म्रतियों से धूल हटने लगती है मुझे अपनी विदाई का समय याद आता है आज के ३५ साल पहले का उस साल रेलवे और ट्रांसपोर्ट और बस की राष्ट्र व्यापी हडताल थी ,उस समय मधयम वर्गीय परिवारों के पास कोई कार नही हुआ करती थी तो मेरी बारात बैल गाड़ी से आई थी चूँकि गाँव से बारात आई थी .इसलिए बैलगाडी का अच्छे से प्रबंध हो गया था बढिया पर्दा लगी गाडियों सादे ढग से शादी हुई थी तब के जमाने में इतना ताम झाम नही हुआ करता था, मेरे पिता प्रोफेसर थे ओर हम चार बहने ओर एक भाई मै उनमे सबसे बड़ी थी
जब मेरी विदाई हुई सब लोग बहुत रोये थे दादा दादी,छोटे दादा दादी चाचा चाची पूरा परिवार मै विदा हो चार दिन बाद जब पग फेरे के लिए मै आई तो देखा दादी बीमार है ,सबने बताया मेरे जाने के बाद दादी को अपनी पोती के जाने का इतना दुःख हुआ की वे तुंरत ही बेहोश हो गई उनको अस्पताल ले जाना पडा तब गाँव में कोई फोन तो नही होते थे जिससे ख़बर दी जाती मेरे वापस आने पर दादी फ़िर ठीक हो गई उनको मुझसे बहुत लगाव था कई बार वो मेरे साथ मुंबई में भी रही
ऐसी पोतियों को चाहने वाली भी दादिया होती है न की पोती के पैदा होने पर मातम मनाने वाली दादी
औरमेरा विश्वास है की लड़कियों को प्यार करने वाली तोदादी होती है पर हम उनके निगेटिव चरित्र को ज्यादा महत्व देकर अपने समाज में हमारे द्वारा ही गढ़ी हुई कमियों को ज्यादा उजागर करने में लगे है
एक तरफ तो लडकिया सिविल सर्विसेस में अव्वल अपना मुकाम हासिल कर रही है ,दूसरी तरफ कई कन्याये धरती पर आने के लिए सघर्ष कर रही है लेकिन आज भी बहुत से घरो में बेटियों को लाढ प्यार से पालकर उनको उच् शिक्षा देने के लिए माँ बाप प्रयत्नरत है और तो और सुदूर विदेशो में पढ़ने और नोकरी करे को भेज रहे है ओर उससे प्रेरणा लेकर कई परिवार अपनी लड़कियों के बारे में सोचने लगे है
मेरा khneका आशय है सभी घरो में एक सा नही होता बाबा दादी अपने पोते पोते के साथ ही उतना ही प्यार अपनी पोती से भी करते है अज जब सबके ब्लॉग पढ़ने लगती हुँ तो मन की स्म्रतियों से धूल हटने लगती है मुझे अपनी विदाई का समय याद आता है आज के ३५ साल पहले का उस साल रेलवे और ट्रांसपोर्ट और बस की राष्ट्र व्यापी हडताल थी ,उस समय मधयम वर्गीय परिवारों के पास कोई कार नही हुआ करती थी तो मेरी बारात बैल गाड़ी से आई थी चूँकि गाँव से बारात आई थी .इसलिए बैलगाडी का अच्छे से प्रबंध हो गया था बढिया पर्दा लगी गाडियों सादे ढग से शादी हुई थी तब के जमाने में इतना ताम झाम नही हुआ करता था, मेरे पिता प्रोफेसर थे ओर हम चार बहने ओर एक भाई मै उनमे सबसे बड़ी थी
जब मेरी विदाई हुई सब लोग बहुत रोये थे दादा दादी,छोटे दादा दादी चाचा चाची पूरा परिवार मै विदा हो चार दिन बाद जब पग फेरे के लिए मै आई तो देखा दादी बीमार है ,सबने बताया मेरे जाने के बाद दादी को अपनी पोती के जाने का इतना दुःख हुआ की वे तुंरत ही बेहोश हो गई उनको अस्पताल ले जाना पडा तब गाँव में कोई फोन तो नही होते थे जिससे ख़बर दी जाती मेरे वापस आने पर दादी फ़िर ठीक हो गई उनको मुझसे बहुत लगाव था कई बार वो मेरे साथ मुंबई में भी रही
ऐसी पोतियों को चाहने वाली भी दादिया होती है न की पोती के पैदा होने पर मातम मनाने वाली दादी
औरमेरा विश्वास है की लड़कियों को प्यार करने वाली तोदादी होती है पर हम उनके निगेटिव चरित्र को ज्यादा महत्व देकर अपने समाज में हमारे द्वारा ही गढ़ी हुई कमियों को ज्यादा उजागर करने में लगे है
7 टिप्पणियाँ:
शोभना जी
पोस्ट पढ़कर आनन्द आया, अपने से विचार लगे। आज लेखन का अर्थ हो गया है कि समाज की छोटी से छोटी बुराई को भी बढ़ा चढा के लिखो। अच्छाइयों पर पर्दा डाल दो। परिणा आया है कि समाज विकृत होता जा रहा है। टी.वी. धारावाहिकों में तो हर चीज की अति होती है, ले देकर बेचारी दादी को ही बुरा बनाना। मानो पुरूष तो बहुत संजीदा है बस खराब है तो महिला ही। फिर कहते फिरेंगे कि देखो महिला ही महिला की दुश्मन होती है। जबकि सच्चाई एकदम अलग है। चलिए बढिया पोस्ट के लिए बधाई।
दरअसल हम जो जीते हैं और जैसा देखते हैं उसका प्रभाव ही लेखन पर होता है,
आपने जो कहा ... वह भी सत्य है.
लड़कियों को प्यार करने वाली तोदादी होती है पर हम उनके निगेटिव चरित्र को ज्यादा महत्व देकर अपने समाज में हमारे द्वारा ही गढ़ी हुई कमियों को ज्यादा उजागर करने में लगे है......
बढिया पोस्ट के लिए बधाई.......
बिलकुल एक सच्चे दिल से निकली..मासूम सी पोस्ट...सच कहा आपने....
सच्चे दिल का महसूस किया अहसास.........
बढ़िया पोस्ट के लिए बधाई
चन्द्र मोहन गुप्त
main aapki post padhne bade man se aai thi lekin aapka "thisaway"layout me sabd mujhe nahi dikh rahe . ummeeed hai ki agali baar padh paaungi
सही कहा आपने कि नकारात्मक विषयों को ही ज्यादा प्रचारित किया जाता है.
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