Tuesday, September 29, 2009

"सुख की पाती "

कहानी भाग


केशव
को जैसे ही बिस्तर पर सुलाया ,शालिनी ने तुंरत कहा मांजी आप नाश्ता कर लीजिये!
वो
जबसे इंतजार में थी की मै केशव को गोदी से उठाकर कब बिस्तर पर सुलाऊ ताकि वो मुझे नाश्ता दे ;और आगे का काम निबटाये |वैसे तो शालिनी की नियुक्ति केशव को सभालने की ही थी ,हर्ष और अचला ने घरमे सारी सुविधा के सामान जुटा लिए थे |अलग अलग काम के लिए अलग अलग नौकर थे |मुझे कुछ भी काम करना नही होता था ,किंतु दोनों की हार्दिक इच्छा यही थी की केशव दादी की छत्रछाया में पले ,मै जैसी बच्चे को जैसी शिक्षा दू उन्हें मान्य था |आज सुबह ही केशव के स्कूल एडमिशन को लेकर भयंकर बहस छिड गयी थीऔर दोनों तय नही कर पा रहे थे की केशव को कौनसी स्कूल में डाले ,दोनों को आफिस में उनके सहयोगी राय देते की" फ़ला स्कूल अच्छा है 'वहा टिफिन भी नही देना पड़ता ,खाने से लेकर खेलने ,घुमाने फिरने की सुविधा ,बस सुविधा (सिर्फ़ पढाई को छोड़कर )सारी व्यवस्था स्कूल वाले ही कर देते है |अपने को तो बच्चे को सुबह तैयार करके भेजना है ,बस यही सुझाव दोनों को भी अच्छा लगा था फ़िर मेरा निर्णय जानने के लिए बारी बारी से मेरी और देखने लगे |हलाकि मै इस विषय में उचित निर्णय देने की स्थिति में नही थी ,क्योकि ये शहर मेरे लिए सर्वथा नया था बहस के दोरान मैंने सुना कि इंग्लिश मीडियम तो सभी स्कूलों में है ,किंतु विनय मन्दिर में अंग्रजी के साथ साथ मात्रभाषा को भी उतनी ही प्राथमिकता से पढाया जाता है |
मुझे
ये बात बहुत अच्छी लगी और फ़िर टिफिन भी घर से ले जाना होता है ये तो अति उत्तम |मुझे खुशी थी कि इस बहाने केशव घर कि बनी ताजी और पोष्टिक चीजे भी खाना सीख लेगा ,वरना मुझे याद है,कि पिछली बार ट्रेन में यात्रा कर रही थी तब कुछ कान्वेंट स्कूल के बच्चे और उनकी शिक्षिकाए एजुकेशनल टूर पर मुंबई से बाहर जा रहेथे उसमे उनके भोजन का भी ठेका दिया गया था जिसमे उन बच्चो को रात के खाने में एक - एक बर्गर दिया गया था |कुछ बच्चो ने सोचा ये नाश्ता है? ,खाना तो बाद में आएगा मगर वो इंतजार ही करते रह गये |
शिक्षिकाओ
ने अपने घर से लाया टिफिन खोला और फटाफट खाने लगी|
ओपचारिकता के नाते शिक्षिका ने बच्चो को पूछा ?
बच्चो ने थेंक्यु मैम कहा ;और अपने पास में रखी हुई चोकलेट खाई और सो रहे |
सुबह जब नाश्ता मिला -पोहा जलेबी ?तो सारे बच्चे एक दुसरे का मुह देखने लगे ?पोहा जलेबी कभी भी उन्होंने नही खाया था |सेंडविच भी था पर वो एक ही था और उन्हें वही खाने की आदत थी |
आख़िर एक बच्चे ने अपनी मैम से कह ही दिया -मैम हमसे १००० रु और ज्यादा ले लेते कितु हम खाना तो अच्छी तरह से खा लेते |
न ही? मैम के पास इसका उत्तर था ?और ही उन्हें समझने की जरुरत थी |
हाँ मुझे प्रेरणा मिल गई की आगे कही केशव भी ऐसा प्रश्न कर दे ?
मैंने हर्ष से कहा -बेटा पैसा है तो इसका ये मतलब नही की हम अपने प्राथमिक कर्तव्यो से पीछा छुडा ले |
उन्होंने विनय मन्दिर में केशव के एडमीशन की सहमती दे दी |
अभी तो केशव ढाई साल का है , माह के बाद वो स्कूल जाएगा मै सोचती और तरह तरह की योजनाये बनाती \
की स्कूल जाने के पहले मुझे उसे काफी तैयार करना पडेगा ?
अचला ने कहा था - माँ जब आप यह है तो इसे प्ले स्कूल नही भेजेगे |
आप तो पुरी पाठशाला है पुरे ३५ साल स्कूल में अध्यापिका रही है वो भी आदर्श शिक्षिका ?
मै उसे समझती बेटी -तब के माहौल और आज के माहौल में बहुत अन्तर है |
अचला कहती -दो और दो चार तब भी होते थे और अब भी |
मै निरुत्तर हो जाती |
मै नित नये प्लान बनाती जो बचपन अपने बच्चो के साथ नही जी पाई उसे अब भरपूर जीना चाहती हुँ |
बस एक कसक बाकि है अगर केशव के दादाजी होते तो कितने आनन्दित होते |क्योकि वे भी कभी अपनी नौकरी और घर की जिम्मेवरियो के बीच कभी अपने बच्चो को वो लाड प्यार नही दे पाए जिनकी हमेशा उन्हें तडप रहती |कुछ समय का अभाव कुछ आँखों की शर्म कुछ आर्थिक हालात ?
आज सब कुछ है पर मेरे साथ मेरे सुख बाँटने वाले नही है |
मैंने नौकरी कोई शौक के लिए नही की थी ,मेरी पढाई ने मुझे नौकरी के लिए विवश किया |जब शादी होकर इस घर में आई छोटा शहर था ,ग्रेजुएट थी मै उस जमाने में ग्रेजुएट होना बहुत बड़ी बात थी |घर में ननद देवर थे साँस ससुर गाँव में रहते थे देवर ननदों ने प्राथमिक शिक्षा पुरी की थी आगे की पढाई के लिए उन्हें शहर में आना था सब जैसे मेरा ही इंतजार कर रहे थे ,अभी तक कमाने वाले सिर्फ़ हर्ष के पापा ही थे गाँव में खेती बाडी भी थी, पर पिताजी ने लगकर कोई काम नही किया \खाना पीना हो जाता था बस पर शहर में तो रहने के लिए नगद पैसा चाहिए जीवन बसर के लिए, पढाई के लिए |
भला हो पूर्वजो का उनकी दूरंदेशी सोच का जिन्होंने शहर में भी घर खरीद रखा था अपने वंशजो के लिए |

क्रमशः

12 टिप्पणियाँ:

ज्योति सिंह said...

bahut sundar lekh .happy dashhara .jeevan ki chhoti chhoti baate zindagi me kitni ahmiyat rakhti hai .

Udan Tashtari said...

आभार इस बेहतरीन आलेख के लिए.

विजयादशमी की हार्दिक बधाई.

दिगम्बर नासवा said...

अच्छी है कहानी आपकी ..... आपकी शैली भी कमाल ........विजयादशमी की हार्दिक बधाई.

k.p.pande. said...

kahani pariwarik hai keshav ke dadaji li wisam isthiyo ke liye dukh anubhav a hota hai k. p. pande halwani nainital uttarakhand

वन्दना अवस्थी दुबे said...

कहानी की बहुत शानदार शुरुआत. अगले भाग का इन्तज़ार रहेगा.

रश्मि प्रभा... said...

bahut badhiyaa........kahani ke agle bhag ki pratiksha hai....

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर कहानी, जेसे हम सब की जिन्दगी की ही झलक हो.
धन्यवाद

Mumukshh Ki Rachanain said...

कहानी की प्रथम किश्त का आगाज़ शानदार रहा, अगली कड़ी की प्रतीक्षा.

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

अजित गुप्ता का कोना said...

यह कहानी है तो सच में सुखद है, सत्‍य तो ऐसा नहीं है। हम अक्‍सर देखते हैं कि परिवार में कभी भी बच्‍चे ऐसा नहीं कहते कि जैसा दादी कहेगी, वो ही ठीक होगा। काश ऐसा परिवर्तन चन्‍द घरों में भी आ जाए तो बहुत ही सुखद होगा, भारत के वृद्धों के लिए। लिखा आपने बेदह सलीके से हैं, तो बहुत ही अच्‍छा लगा। कहानी में ही सही कहीं दादी है, बस इसी से मन को संतोष हो गया।

अमिताभ श्रीवास्तव said...

aadarniya,
kahani ka maza use ant tak padhhne me aataa he, lihaza abhi intjaar he/ vese aap kahaani bhi bahut achhe dhhng se likhati he/ saral bhasha aour bhavnaye bhi bahti hui hoti he/ padhhkar achha lagta he/ filhaal dusare bhaag ka intjaar he/

Asha Joglekar said...

Bahut rochak kahanee aakhir tak bandh rakhtee hai.
Vijaya dashmee ki shubh kamnaen.

P.N. Subramanian said...

जीवन की एक झलक मिल रही है. देखें आप कैसे आगे बढाती हैं. आभार.