आज स्वामी विवेकानंद जी कि जयंती है जिसे" राष्ट्रीय युवा दिवस" के रूप में मनाया जाता है |आज के संचार माध्यमो में स्वामीजी के विचारो को लेकर जागरूकता नहीं है ,और नहीं उनका ध्यान इस और है, पर स्वामीजी के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक है |स्वामी विवेकांनद ने देश विदेशो में जो व्याख्यान दिए थे उन्ही में से उनके कुछ उदगार है ---
हम प्रत्येक आत्मा को आव्हान करें -"उत्तिष्ठत ,जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ,-उठो जागो और जब तक लक्ष्य प्राप्त न कर लो कहीं मत ठहरो |"
उठो!जागो !दौर्बल्य के मोहजाल से निकलो ,कोई वास्तव में दुर्बल नहीं है |आत्मा अनंत ,सर्वशक्तिमान एवं सर्वव्यापी है खड़े हो स्वयम को झकझोरो ,अपने अन्दर व्याप्त ईश्वर का आव्हान करो |
उसकी सत्ता को अस्वीकार मत करो|हमारी जाति पर बहुत अधिक निष्क्रियता ,बहुत अधिक दुर्बलता और बहुत अधिक मोहजाल छाया रहा है और अब भी है |
सच्चा मनुष्य वह है ,जो मूर्तिमंत पौरुष के समान सामर्थ्यशाली हो किन्तु साथ ही नारी के जैसे कोमल अंत करण से युक्त हो तुममे अपने चारों ओर रहने वाले लक्षावधि प्राणियों के प्रति सहानुभूति तो हो किन्तु उनके साथ ही तुम दृढ एवं कर्तव्य- कठोर भी बनो |तुममे आज्ञाकारिता भी अवश्य रहे |भले ही ये बाते तुम्हे परस्पर विरोधी लगे -किन्तु ऊपर से दिखने वाले इन गुणों को अपनाना ही होगा |
स्वामी विवेकानंद जी के भाषण तो जग प्रसिद्द है उनके द्वारा रचित कुछ अंग्रेजी कविताओ का अनुवाद कवितावली पुस्तक में है इसमें सन १८९९ में न्यूयार्क के रिजले मनर में लिखित "peace "नमक कविता का अनुवाद निम्नलिखित है |
" शांति "
देखो ,जो बलात आती है ,
वह शक्ति ,शक्ति नहीं है !
वह प्रकाश ,प्रकाश नहीं है
जो अधेरे के भीतर है ,
और न वह छाया ,छाया ही है
जो चकाचोंध करने वाले
प्रकाश के साथ है |
वह आनन्द है ,
जो कभी व्यक्त नहीं हुआ ,
और अन्भोगा ,गहन दुःख है
अमर जीवन जो जिया नहीं गया
और अनन्त मृत्यु ,जिस पर
किसी को शोक नहीं हुआ |
न दुःख है न सुख ,
सत्य वह है
जो इन्हें मिलाता है |
न रात है ,न प्रात ,
सत्य वह है
जो इन्हें जोड़ता है |
वह संगीत में मधुर विराम ,
पावन छंद के मध्य यति है ,
मुखरता के मध्य मौन ,
वासनाओ के विस्फोट के बीच
वह ह्रदय कि शांति है |
सुन्दरता वह है ,जो देखि न जा सके
प्रेम वह है ,जो अकेला रहे
गीत वह है जो ,जिए ,बिना गाये,
ज्ञान वह है जो कभी जाना न जाय |
जो दो प्राणियों के बीच मृत्यु है ,
और दो तूफानों के बीच एक स्तब्धता है ,
वह शून्य ,जहाँ से स्रष्टि आती है
और जहाँ वह लौट जाती है |
वहीं अश्रुबिंदु का अवसान होता है ,
प्रसन्न रूप को प्रस्फुटित करने को
वही जीवन का चरम लक्ष्य है ,
और शांति ही एकमात्र शरण है |
ॐ शांति शांति शांतिः |
Tuesday, January 12, 2010
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17 टिप्पणियाँ:
आप से इतनी सुन्दर जानकारी मिली ..
कविता बहुत सुन्दर है ..
..... आभार ,,,
स्वामी विवेकानंद जी को नमन, बहुत अच्छी जानकारी दी आप ने, ओर बहुत सुंदर कविता के लिये आप का धन्यवाद
शांति ही एकमात्र शरण है .. अविस्मरनीय विभूति की अनंत प्रकाश पुंज से पूरित कविता प्रस्तुत करने के लिए बहुत आभार ...!!
स्वामी विवेकानंद जी के ओजपूर्ण व्याख्यान को आज फिर से पढ़ कर बहुत अच्छा लगा.
उन के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक है .
स्वामी जी ki जयंती पर यह लेख सामयिक है और कविता की तो हर पंक्ति एक संदेश है.
स्वामी विवेकानंद जी के उदगारों को पढ़ और कविता का अनुवाद पढ़ मन आनंद से अभिभूत हुआ.... इस रचना के लिए धन्यवाद
बहुत ही सुंदर कविता है ........... विवेकानंद जी की जीवनी को नरेंद्र कोहली जी की पुस्तक श्रंखला तोडो कारा तोडो में पढ़ें ........ मेरा मानना है आप अपने निजी संकलन में ज़रूर रखेंगी इस पुस्तक को ........
Naswaji
धन्यवाद ,मै तोरो कारा तोड़ो के तीन भाग तो पढ़ चुकी हूँ आपका कथन बिलकुल सही है |मै रामक्रिशन मिशन और मठ से जुडी हूँ वहां मैंने स्वामीजी के परिव्राजक समय कि किताबो को पढ़ा है ,मेरे पास शब्द नहीं है वर्णन करने को कि उन्होंने भारत को और भारतीयों के मानस को कितने नजदीक से देखा और उनके दुखो को शिद्दत से महसूस किया था और फिर उन पर गुरू परमहंस कि अपार कृपा हुई |
शोभना जी,
बहुत बहुत धन्यवाद...विवेकानंद का व्याख्यान और उनकी कविता के अनुवाद पढने का अवसर प्रदान करने के लिए...आज की युवा पीढ़ी भुला चुकी है उन्हें...और उनकी बातों को......जबकि उन्हें युवाओं का हीरो होना चाहिए था...बहुत दुःख होता है
कविता पढ़कर शांति की अनुभूति हुई
बहुत अच्छी जानकारी।
shobhanaji, abhi kuchh free hu to blog chhaan rahaa thaa, magar ekmaatra aapke blog par dekha swamiji ke baare me padhh kar. achha lagaa../ tasalli hui./ vivekanandji ke sandarbh me kaafi saahity padhhaa he, khoob padhhne ki ichchhaa aaj bhi hoti he..pichhale dino raamkrshna param hans ji ke baare me unki samgra jeevani va unke vichaar aadi padhhne ko mile the..tab lagaa thaa ki, vivekanandji par unkaa haath thaa to kyo tha? waah dono mahaan vibhuti...esi vibhootiyo ke kaaran hi hamara jeevan he.
आप जैसे लोगों की जरूरत है जो हम युवाओं को अपने देश के आदर्श पात्रों से परिचित करवा सकें.
एक ज्ञानवर्धक कविता के लिए
आभार ......................
- ज्ञान स्वयमेव वर्तमान है, मनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है।
aap bhut achcha likhtin hain....
meine bhi kuch likhne ki koshish ki hai...prars.blogspot.com
I'M BIGGEST FAN OF SWAMI VIVEKANAND:
वह थे-एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति न भूतो न भविष्यति
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