Saturday, September 18, 2010

"गप शप "

एक अरसे बाद दोनों सहेलियों ने दोपहर कि चाय पर मिलना तय किया एक अच्छे से रेस्तरां में|
इत्तफाक से दोनों कि सास को कुछ ही समय हुआ था परलोक सिधारे हुए |
समाज को सुधरना चाहिए? इस बात पर थोड़ी चर्चा की फिर एक ने चाय का एक घूंट लेते हुए अपनी सहेली से पूछा ?
और कैसा रहा ?तुम्हारी सास के अंतिम क्रिया का कार्यक्रम ?मै तो ऐसे कार्यक्रमों का बहिष्कार करती हूँ इसलिए नहीं पाई तुम्हारे घर |
अच्छा ही रहा कार्यक्रम !उन्होंने मीठा कई सालो से खाया नहीं था, इसलिए मैंने उनकी तेरहवी में लोगो को खूब तरह तरह की मिठाई खिलाई |
उसने एक पकोड़ी खाई और कहा |
सहेली ने अपनी सहेली से पूछा ?
तुम्हारी सास का कार्यक्रम कैसा रहा ?
तुम्हे तो मालूम ही है २० साल पहले उन्हें हार्ट में थोड़ी तकलीफ हुई थी तबसे मैंने उन्हें घी तेल देना बंद कर दिया था
फिर बिना घी तेल के कैसा खाना बन सकता है ?
इतना कहकर दोनों ने चाय पकोड़ी ख़त्म की और एक दुसरे को शुभकामना देकर अगली बार मिलने का वादा किया|

26 टिप्पणियाँ:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

ई पोस्ट के टिप्पणी पर हमरा मुस्कुराहट क़ुबूल कीजिए...मगर साँस को सास कर लें… मतलब गलत हो रहा हैः
इत्तफाक से दोनों कि साँस को कुछ ही समय हुआ था परलोक सिधारे हुए |

kshama said...

Insaan kabhi,kabhi kisi any ke mamle me kitna nirmam ho jata hai...

M VERMA said...

विसंगतियाँ मुँह बाये खड़ी रहती है .. शायद यही सच है.

Asha Joglekar said...

यही है आज की दुनिया । कभी कभी हम बुजुर्गों के साथ उनके स्वास्थ्य की आड लेकर ज्यादती करते रहते हैं ।

मनोज कुमार said...

हमने इस बदले समय में जिस तरह से अपनी पुरानी समृतियों को पोंछ डाला है। वह आपकी लघुकथा में चिंता का विषय है।

बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

फ़ुरसत में … हिन्दी दिवस कुछ तू-तू मैं-मैं, कुछ मन की बातें और दो क्षणिकाएं, मनोज कुमार, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!

दीपक बाबा said...

आज का दस्तूर है भाई......
आप क्यां कहेंगे.

प्रवीण पाण्डेय said...

इन बहुओं को प्रणाम करने का मन करता है।

वाणी गीत said...

समझ नहीं पा रही हूँ किस बहू ने सही किया ....!

Manoj K said...

होशियार बहुएँ...

Coral said...

aaj ki bahuye....mai bhi shamil hu :)

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

अच्छी रही गप-शप...दोनों का सोचने का नजरिया बिलकुल अलग अलग ...

दीपक 'मशाल' said...

सुन्दर लघुकथा मैम..

वन्दना अवस्थी दुबे said...

सुन्दर लघुकथा. होता है ऐसा भी.

अजय कुमार said...

अच्छी लघु कथा

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

ब्रोड माइंडेड बहुए !! :)

पद्म सिंह said...

सटीक कटाक्ष करती लघुकथा ...

देवेन्द्र पाण्डेय said...

प्रेरक लघुकथा।

Asha Lata Saxena said...

आज के बदलते परिवेश में जो हो रहा है बहुत सही चित्रण किया है |बधाई
आशा

रचना दीक्षित said...

क्या कहूँ ???अब कहने को बचा ही क्या है.
हर बहू भी कभी तो सास बनती ही है!!!!

अनामिका की सदायें ...... said...

कितनी अच्छी बहुए हैं कलयुग का नाम रोशन कर रही हैं.

shikha varshney said...

सही है :)

Aruna Kapoor said...

कैसी बहुएं है ये....करारा व्यंग्य...बधाई!....आप की शुभकामनाएं ही मेरा संबल है शोभनाजी!...बहुत बहुत धन्यवाद!

दिगम्बर नासवा said...

ये गप्प है और गप्प तक ही रहे तो कितना अच्छा हो ....

ज्योति सिंह said...

afsos hota hai rishton ka is kadar anadar hote dekh .badhiya .

कविता रावत said...

इस छोटी सी गप-शप के बहाने आपने पुरातन और आधुनिकता की औपचारिक ओढने की मानसिकता का बहुत सटीक चित्रण किया है ....धन्यवाद

SKT said...

एकदम सही कटाक्ष!