एक अरसे बाद दोनों सहेलियों ने दोपहर कि चाय पर मिलना तय किया एक अच्छे से रेस्तरां में|
इत्तफाक से दोनों कि सास को कुछ ही समय हुआ था परलोक सिधारे हुए |
समाज को सुधरना चाहिए? इस बात पर थोड़ी चर्चा की फिर एक ने चाय का एक घूंट लेते हुए अपनी सहेली से पूछा ?
और कैसा रहा ?तुम्हारी सास के अंतिम क्रिया का कार्यक्रम ?मै तो ऐसे कार्यक्रमों का बहिष्कार करती हूँ इसलिए आ नहीं पाई तुम्हारे घर |
अच्छा ही रहा कार्यक्रम !उन्होंने मीठा कई सालो से खाया नहीं था, इसलिए मैंने उनकी तेरहवी में लोगो को खूब तरह तरह की मिठाई खिलाई |
उसने एक पकोड़ी खाई और कहा |
सहेली ने अपनी सहेली से पूछा ?
तुम्हारी सास का कार्यक्रम कैसा रहा ?
तुम्हे तो मालूम ही है २० साल पहले उन्हें हार्ट में थोड़ी तकलीफ हुई थी तबसे मैंने उन्हें घी तेल देना बंद कर दिया था
फिर बिना घी तेल के कैसा खाना बन सकता है ?
इतना कहकर दोनों ने चाय पकोड़ी ख़त्म की और एक दुसरे को शुभकामना देकर अगली बार मिलने का वादा किया|
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26 टिप्पणियाँ:
ई पोस्ट के टिप्पणी पर हमरा मुस्कुराहट क़ुबूल कीजिए...मगर साँस को सास कर लें… मतलब गलत हो रहा हैः
इत्तफाक से दोनों कि साँस को कुछ ही समय हुआ था परलोक सिधारे हुए |
Insaan kabhi,kabhi kisi any ke mamle me kitna nirmam ho jata hai...
विसंगतियाँ मुँह बाये खड़ी रहती है .. शायद यही सच है.
यही है आज की दुनिया । कभी कभी हम बुजुर्गों के साथ उनके स्वास्थ्य की आड लेकर ज्यादती करते रहते हैं ।
हमने इस बदले समय में जिस तरह से अपनी पुरानी समृतियों को पोंछ डाला है। वह आपकी लघुकथा में चिंता का विषय है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत में … हिन्दी दिवस कुछ तू-तू मैं-मैं, कुछ मन की बातें और दो क्षणिकाएं, मनोज कुमार, द्वारा “मनोज” पर, पढिए!
आज का दस्तूर है भाई......
आप क्यां कहेंगे.
इन बहुओं को प्रणाम करने का मन करता है।
समझ नहीं पा रही हूँ किस बहू ने सही किया ....!
होशियार बहुएँ...
aaj ki bahuye....mai bhi shamil hu :)
अच्छी रही गप-शप...दोनों का सोचने का नजरिया बिलकुल अलग अलग ...
सुन्दर लघुकथा मैम..
सुन्दर लघुकथा. होता है ऐसा भी.
अच्छी लघु कथा
ब्रोड माइंडेड बहुए !! :)
सटीक कटाक्ष करती लघुकथा ...
प्रेरक लघुकथा।
आज के बदलते परिवेश में जो हो रहा है बहुत सही चित्रण किया है |बधाई
आशा
क्या कहूँ ???अब कहने को बचा ही क्या है.
हर बहू भी कभी तो सास बनती ही है!!!!
कितनी अच्छी बहुए हैं कलयुग का नाम रोशन कर रही हैं.
सही है :)
कैसी बहुएं है ये....करारा व्यंग्य...बधाई!....आप की शुभकामनाएं ही मेरा संबल है शोभनाजी!...बहुत बहुत धन्यवाद!
ये गप्प है और गप्प तक ही रहे तो कितना अच्छा हो ....
afsos hota hai rishton ka is kadar anadar hote dekh .badhiya .
इस छोटी सी गप-शप के बहाने आपने पुरातन और आधुनिकता की औपचारिक ओढने की मानसिकता का बहुत सटीक चित्रण किया है ....धन्यवाद
एकदम सही कटाक्ष!
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