Tuesday, September 21, 2010

"कोरे दीपक "

मै नहीं जानती
कैसे ?
मेरा
समूचा वजूद
एकअधूरे
नव निर्मित भवन के
छोटे छोटे से
कमरों में
कैद होकर
रह गया है?


पुराने घर की
छत पर
मिटटी के कोरे दीपक
इंतजार में है
पूजे जाने के लिए
मानो
घुटनों में सर दबाये
मेरा बैठना

तेल और बाती
का अभिमान
मै नहीं जानती
कैसे ?
जला जाता है
मेरा
समूचा वजूद |



28 टिप्पणियाँ:

kshama said...

Kitna gahan sawal hai! Kaise jalaya jata hai kisee ka samucha wajood?

अजय कुमार said...

गहरे भाव ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

तेल और बाती
का अभिमान
मै नहीं जानती
कैसे ?
जला जाता है
मेरा
समूचा वजूद |

इन पंक्तियों को पढ़ कर बस एक गहरी साँस ही ले पायी ...बहुत भावयुक्त रचना ..

डॉ टी एस दराल said...

बहुत भावपूर्ण रचना । अति सुन्दर ।

Aruna Kapoor said...

मेरा
समूचा वजूद
एकअधूरे
नव निर्मित भवन के
छोटे छोटे से
कमरों में
कैद होकर
रह गया है?
...ये कैसी घुटन!....सुंदर अभिव्यक्ति!

M VERMA said...

सुन्दर और भावपूर्ण बिम्बो की रचना

shikha varshney said...

तेल और बाती
का अभिमान
मै नहीं जानती
कैसे ?
जला जाता है
मेरा
समूचा वजूद |
कितने गहन भाव ..अतिसुन्दर.

rashmi ravija said...

मेरा
समूचा वजूद
एकअधूरे
नव निर्मित भवन के
छोटे छोटे से
कमरों में
कैद होकर
रह गया है?

बहुत ही गहरी अभिव्यक्ति

Udan Tashtari said...

तेल और बाती
का अभिमान
मै नहीं जानती
कैसे ?
जला जाता है
मेरा
समूचा वजूद |


-बहुत गहन भाव!

प्रवीण पाण्डेय said...

दिये सा जलने की पीड़ा, प्रकाश पाने वाला क्या समझेगा। फिर भी जलते रहते हैं हम, दिये सा।
प्रभावी अभिव्यक्ति।

वाणी गीत said...

ये भी एक अजब पहेली -सा है ...
तेल जलता है या बाती ...या दोनों ...
या सिर्फ उनका अभिमान ...
आह !

Manoj K said...

दीपक के वजूद से बहुत सी अनकही कह दी आपने

vandana gupta said...

बेहद भावप्रवण प्रस्तुति।

वीना श्रीवास्तव said...

बेहद खूबसूरत और भावपूर्ण अभिव्यक्ति

वीना श्रीवास्तव said...

बेहद खूबसूरत और भावपूर्ण अभिव्यक्ति

नीरज गोस्वामी said...

लाजवाब प्रस्तुति...बधाई स्वीकारें...

नीरज

रचना दीक्षित said...

मै नहीं जानती
कैसे ?
जला जाता है
मेरा
समूचा वजूद |
सुन्दर और भावपूर्ण रचना

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

सोभना जी, स्तब्ध कर दिया आपने... बस निःसब्द हैं हम!!

अनामिका की सदायें ...... said...

आप की रचना 24 सितम्बर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
http://charchamanch.blogspot.com


आभार

अनामिका

ZEAL said...

.

तेल और बाती
का अभिमान
मै नहीं जानती
कैसे ?
जला जाता है
मेरा
समूचा वजूद |


बहुत गहन भाव लिए हुए अतिसुन्दर पंक्तियाँ।

.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

गहरे भाव ......बहुत भावयुक्त रचना....

Asha Lata Saxena said...

गहन भाव लिए रचना |
बधाई
आशा

अनुपमा पाठक said...

a poem with deep concerns!
subhkamnayen....

Akanksha Yadav said...

वजूद की तलाश में गहरे भाव ...विलक्षण .
______________
'शब्द-शिखर'- 21 वीं सदी की बेटी.

ZEAL said...

मै नहीं जानती
कैसे ?
मेरा
समूचा वजूद
एकअधूरे
नव निर्मित भवन के
छोटे छोटे से
कमरों में
कैद होकर
रह गया है?

क्यूँ न खिलनें दें हम अपने वजूद को , और मदद करें बहुतेरे अधखिले वजूद को, बाहर लाकर , इन चार दीवारों से। जब हम खुद निकल आते हैं माया मोह के जाल से, तब ही हम समझ पाते हैं अपने जैसे हज़ारों मजबूर लोगों के संतप्त जीवन को।

क्यूँ न एक प्रयास करें --बाहर आकर औरों को भी बाहर लायें।

.

Apanatva said...

gahre bhavo kee sunder abhivykti.........

aaj hee mai loutee hoo...
aap ab kab aa rahee hai ......bataiyega avashy.......

शरद कोकास said...

घुटनों में सर दबाये मेरा बैठना ..बहुत सुन्दर बिम्ब है ।

संजय भास्‍कर said...

गहन भाव ..अतिसुन्दर.