मै नहीं जानती
कैसे ?
मेरा
समूचा वजूद
एकअधूरे
नव निर्मित भवन के
छोटे छोटे से
कमरों में
कैद होकर
रह गया है?
पुराने घर की
छत पर
मिटटी के कोरे दीपक
इंतजार में है
पूजे जाने के लिए
मानो
घुटनों में सर दबाये
मेरा बैठना
तेल और बाती
का अभिमान
मै नहीं जानती
कैसे ?
जला जाता है
मेरा
समूचा वजूद |
कैसे ?
मेरा
समूचा वजूद
एकअधूरे
नव निर्मित भवन के
छोटे छोटे से
कमरों में
कैद होकर
रह गया है?
पुराने घर की
छत पर
मिटटी के कोरे दीपक
इंतजार में है
पूजे जाने के लिए
मानो
घुटनों में सर दबाये
मेरा बैठना
तेल और बाती
का अभिमान
मै नहीं जानती
कैसे ?
जला जाता है
मेरा
समूचा वजूद |
28 टिप्पणियाँ:
Kitna gahan sawal hai! Kaise jalaya jata hai kisee ka samucha wajood?
गहरे भाव ।
तेल और बाती
का अभिमान
मै नहीं जानती
कैसे ?
जला जाता है
मेरा
समूचा वजूद |
इन पंक्तियों को पढ़ कर बस एक गहरी साँस ही ले पायी ...बहुत भावयुक्त रचना ..
बहुत भावपूर्ण रचना । अति सुन्दर ।
मेरा
समूचा वजूद
एकअधूरे
नव निर्मित भवन के
छोटे छोटे से
कमरों में
कैद होकर
रह गया है?
...ये कैसी घुटन!....सुंदर अभिव्यक्ति!
सुन्दर और भावपूर्ण बिम्बो की रचना
तेल और बाती
का अभिमान
मै नहीं जानती
कैसे ?
जला जाता है
मेरा
समूचा वजूद |
कितने गहन भाव ..अतिसुन्दर.
मेरा
समूचा वजूद
एकअधूरे
नव निर्मित भवन के
छोटे छोटे से
कमरों में
कैद होकर
रह गया है?
बहुत ही गहरी अभिव्यक्ति
तेल और बाती
का अभिमान
मै नहीं जानती
कैसे ?
जला जाता है
मेरा
समूचा वजूद |
-बहुत गहन भाव!
दिये सा जलने की पीड़ा, प्रकाश पाने वाला क्या समझेगा। फिर भी जलते रहते हैं हम, दिये सा।
प्रभावी अभिव्यक्ति।
ये भी एक अजब पहेली -सा है ...
तेल जलता है या बाती ...या दोनों ...
या सिर्फ उनका अभिमान ...
आह !
दीपक के वजूद से बहुत सी अनकही कह दी आपने
बेहद भावप्रवण प्रस्तुति।
बेहद खूबसूरत और भावपूर्ण अभिव्यक्ति
बेहद खूबसूरत और भावपूर्ण अभिव्यक्ति
लाजवाब प्रस्तुति...बधाई स्वीकारें...
नीरज
मै नहीं जानती
कैसे ?
जला जाता है
मेरा
समूचा वजूद |
सुन्दर और भावपूर्ण रचना
सोभना जी, स्तब्ध कर दिया आपने... बस निःसब्द हैं हम!!
आप की रचना 24 सितम्बर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका
.
तेल और बाती
का अभिमान
मै नहीं जानती
कैसे ?
जला जाता है
मेरा
समूचा वजूद |
बहुत गहन भाव लिए हुए अतिसुन्दर पंक्तियाँ।
.
गहरे भाव ......बहुत भावयुक्त रचना....
गहन भाव लिए रचना |
बधाई
आशा
a poem with deep concerns!
subhkamnayen....
वजूद की तलाश में गहरे भाव ...विलक्षण .
______________
'शब्द-शिखर'- 21 वीं सदी की बेटी.
मै नहीं जानती
कैसे ?
मेरा
समूचा वजूद
एकअधूरे
नव निर्मित भवन के
छोटे छोटे से
कमरों में
कैद होकर
रह गया है?
क्यूँ न खिलनें दें हम अपने वजूद को , और मदद करें बहुतेरे अधखिले वजूद को, बाहर लाकर , इन चार दीवारों से। जब हम खुद निकल आते हैं माया मोह के जाल से, तब ही हम समझ पाते हैं अपने जैसे हज़ारों मजबूर लोगों के संतप्त जीवन को।
क्यूँ न एक प्रयास करें --बाहर आकर औरों को भी बाहर लायें।
.
gahre bhavo kee sunder abhivykti.........
aaj hee mai loutee hoo...
aap ab kab aa rahee hai ......bataiyega avashy.......
घुटनों में सर दबाये मेरा बैठना ..बहुत सुन्दर बिम्ब है ।
गहन भाव ..अतिसुन्दर.
Post a Comment