बहुत सारे आहार है
फिर भी
निराहार
महसूस होती
जिन्दगी|
बहुत सारे आधार है
फिर भी
निराधार
महसूस होती
जिन्दगी |
फिर भी
निराधार
महसूस होती
जिन्दगी |
जब अटे पड़े है
बाजार
कपड़ो से
फिर भी
जार जार
महसूस होती
जिन्दगी |
समुन्दर के किनारे
शिद्दत से
प्यास को
महसूस
करती है ज़िदगी |
शिद्दत से
प्यास को
महसूस
करती है ज़िदगी |
19 टिप्पणियाँ:
kYa kamaal kaa likha hai....sach,zindagee bhee ek pahelee hee hai....
बहुत गज़ब की बातें लिखी है
समुन्दर के किनारे
शिद्दत से
प्यास को
महसूस
करती है ज़िदगी |
बहुत सुन्दर ..
बहुत सारे आधार है
फिर भी
निराधार
महसूस होती
जिन्दगी ...
सच में......
जिंदगी पर सुंदर पंक्तियां
आज इस पावन पर्व के अवसर पर बधाई देता हूं और कामना करता हूं कि आपकी कलाई पर बंधा रक्षा सूत्र हर समय आपकी रक्षा करें।
समुन्दर के किनारे
शिद्दत से
प्यास को
महसूस
करती है ज़िदगी |
bahut hi achchha likha hai ,rakhi parv ki badhai aapko
अजब सी प्यास है जिन्दगी।
कमाल लिखा है शोभना जी, बहुत सुंदर.
स्वतंत्रता दिवस और रक्षाबंधन की आपको बहुत बहुत शुभकामनायें.
बहुत सारे आधार है
फिर भी
निराधार
महसूस होती
जिन्दगी |
शोभना जी, बहुत सुंदर.
Sadhuvad ,,,bharpur jindagi me bhi dhundti hai thodisi sachmuch ki jindagi ,,,lamhe lamhe me ho jindadil jindagi-----bhulo kuch pal kabhi ho gai ho udaas zindgi,,,,,,Kamna Billore
बहुत सुन्दर
जन्माष्टमी की शुभकामनायें स्वीकार करें !
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समुन्दर के किनारे
शिद्दत से
प्यास को
महसूस
करती है ज़िदगी |....
Great expression Shobhna ji!
.
कमाल की कविता ।
Sahi kaha "adhoorapan" to hamesha hi rahta hai..
Kavita Ka Vishay
I could not see the poet within you.It is spring up surorisingly like FLOWERS OF ASHOKA TREE.I am amazed with its smell. arun puranik.
मन के शान्त निनाद को शब्दों में उतार दिया आपने, अद्भुत पंक्तियाँ..
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