Saturday, March 02, 2013

"गरीबी और मै "

गरीब कहाँ है ?
शायद यहाँ है 
कवि  की कविताओ में ,
नेताओं के भाषण में ,
स्वयम सेवी संस्थाओं के कागजो में ,
सरकारी रिपोर्टों में
या कि
आन्दोलन कर्ताओं की प्रसिद्धि में ,
और ऐसे कितने ही आयामों
में  गरीब बसता है ,
या बसाया जाता है
या कि
जैसे
सत्ता उस सर्वशक्तिमान की
तरह
हमने एक काल्पनिक
खांका बनाया है
पूजने के लिए 
गरीबी  का ?

7 टिप्पणियाँ:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

यहीं है गरीब ...तभी तो आज तक गरीबी ही है ....

shikha varshney said...

सच में ..निकलता ही नहीं वहां से .

वन्दना अवस्थी दुबे said...

सही है.

Alpana Verma said...

सच कहती कविता .

रचना दीक्षित said...

हमने एक काल्पनिक
खांका बनाया है
पूजने के लिए
गरीबी का ?

गरीब के बारे में सोचने का समय ही कहाँ है आजके देश के कर्णधारों के पास.

प्रवीण पाण्डेय said...

राजनीति में ग़रीबी बड़ी लाभकारी होती है।

दिगम्बर नासवा said...

जान कर के गरीब का नाम लिया जाता है .. उन पर भी राजनीति करते हैं ये नेता ....