Wednesday, April 08, 2009

चुनावो का दर्द

केंसर से भी ज्यादा भयंकर पीडा देने वाला
होता जा रहा चुनावो का दर्द
उद्योग पतियों के लिए
जिनकी जेबे खाली होती जाती है
चुनाव दर चुनाव
प्रसव पीडा सा दर्द भोगती है
वे नेताओ की गृह्स्वामिनिया जब उन्हें अपने पतियो का
आदर्श
नागरिक आचारण सहन करना पड़ता है
चुनाव दर चुनाव
फोडे सा दर्द दे जाता है
एक निशान छोड़ जाता है
उन सरकारी कर्मचरियों के लिए
जिन्हें चुनावो की ड्यूटी एक टीस दे जाता है
चुनाव दर चुनाव |
वो दिन लद गये
जब चुनावो में ड्यूटी lagne को गर्व मानकर
अधिकारी गर्व से सर उठाता था
और आज ड्यूटी न लग जाय
इसीलिए
नजरे चुराता है
और ड्यूटी लग जाए तो
अपने जनक जननी को ऊपर पहुचाने से भी नही
हिचकिचाता
और हा उसे
तब उसे कोई भी दर्द नही सताता |

1 टिप्पणियाँ:

मोहन वशिष्‍ठ said...

वाह जी वाह बिल्‍कुल आज की सच्‍चाई पेश की है आपने आभार