बहुत चला चुके कलम हम नेताओ पर ,राजनीतिज्ञों पर लेकिन उन पर खच असर नही हुआ यह तक की उन पर जूते चप्पल भी पडे किंतु सब बेअसर ,और इसी बीच चुनाव भी शुरू हो गये और सम्पन्न भी हो जावेगे सरकार भी बन जावेगी चाहे कोई भी प्रधान मंत्री बने चाहे वो कोई भी मंत्री बने ,चाहे कोई भी राजनितिक पार्टी का हो बनेगा वो हमारे इसी समाज से जिसके हम भी बाशिंदे है ,हम इसी समाज में रहते ही, इसी में मजदूर इसी में सभी नेता तथाकथित हर वर्ग का इन्सान और इसी में से चुने जाते है नेता वो कोई अलग दुनिया से नही आते हम जो खाते है ,पीते है ,पहनते है ,पढ़ते है वो भी वही खाते पीते पहनते है ,पढ़ते है ?हा लेकिन ये और बात है की संसद या विधान सभा में जाने के बाद उनकी दुनिया और रंग ढंग बदल जाते है (जनता के पैसो के बल पर )
अपने चुनावी घोषणा पत्र में सबसे पहला उनका एजेंडा गरीबी हटाने का होता हैचाहे कोई भी पार्टी का मंत्री हो और ये गरीबी हटाना कैसे शुरू करते है अपने घर की इस्तेमाल की हुई की चीजे जो purani हो चुकी है उसे अपने घर मेंkam करने वालेको दान दे देते है dya krke bcha हुआ खाना (पहले तीन दिन तक फ्रीज में रखते है)देते है और कुछ समाज सेवा करने की लालसा होती है तो एक सगठन बनाकर, घर घर जाकर पुराने कपड़े, पुराने बर्तन पुराने बिस्तर ,पुराने खिलोने अदि एकत्र कर बाढ़ पीडितो ,भूकम्प पीडितो या फ़िर गरीबो की बस्तियों में बांटकर अख़बार में फोटो छपवा देते है
हमारी सेवा का utkrisht नमूना देखिये , हमारे घर का म करने वाली सहयोगी अगर अच्छे कपड़े पहन कर ,साफ सुथरे द्गंग से आती है (वो शक्ल सूरत में हमसे बीस ही दिखती हो )तो मन ही मन उसे कोसना शुरू कर देते है देखो झूठे बर्तन साफ करती है पर कितनी बन ठन कर आई है यही से शुरू हो जाती है हमारी दोहरी मानसिकता
हम कभी गरीबो को इन्सान समझते ही नही हम नही चाहते की कोई हमारी बराबरी करे, यही सब कुछ समाज के हर क्षेत्र में लागु हो जाता है और हमारी नेता बनने की प्रक्रिया घर से ही शुरू हो जाती है
हमारी इस चालाकी से गरीब और और गरीब बन जाता है और अमीर और अमीर
अपने चुनावी घोषणा पत्र में सबसे पहला उनका एजेंडा गरीबी हटाने का होता हैचाहे कोई भी पार्टी का मंत्री हो और ये गरीबी हटाना कैसे शुरू करते है अपने घर की इस्तेमाल की हुई की चीजे जो purani हो चुकी है उसे अपने घर मेंkam करने वालेको दान दे देते है dya krke bcha हुआ खाना (पहले तीन दिन तक फ्रीज में रखते है)देते है और कुछ समाज सेवा करने की लालसा होती है तो एक सगठन बनाकर, घर घर जाकर पुराने कपड़े, पुराने बर्तन पुराने बिस्तर ,पुराने खिलोने अदि एकत्र कर बाढ़ पीडितो ,भूकम्प पीडितो या फ़िर गरीबो की बस्तियों में बांटकर अख़बार में फोटो छपवा देते है
हमारी सेवा का utkrisht नमूना देखिये , हमारे घर का म करने वाली सहयोगी अगर अच्छे कपड़े पहन कर ,साफ सुथरे द्गंग से आती है (वो शक्ल सूरत में हमसे बीस ही दिखती हो )तो मन ही मन उसे कोसना शुरू कर देते है देखो झूठे बर्तन साफ करती है पर कितनी बन ठन कर आई है यही से शुरू हो जाती है हमारी दोहरी मानसिकता
हम कभी गरीबो को इन्सान समझते ही नही हम नही चाहते की कोई हमारी बराबरी करे, यही सब कुछ समाज के हर क्षेत्र में लागु हो जाता है और हमारी नेता बनने की प्रक्रिया घर से ही शुरू हो जाती है
हमारी इस चालाकी से गरीब और और गरीब बन जाता है और अमीर और अमीर
1 टिप्पणियाँ:
आपने बहुत सही लिखा है .
Post a Comment