कुर्सी के हकदारो
वोट के खरीदारों बहुत उंडेला है विष तुमने
अब तो अम्रत की एक बूंद छलकाओ
कुर्सी की लडाई में घर फूंके कितने ही
राम के नाम पर गंगा में ,
मासूम बहाए कितने ही
विदेशियों ने तो सिर्फ़ सोना लुटा था
तुमने तो नोटों की आंच देकर
अपनों का ईमान जलाया है
धर्म और ईमान के ठेकेदारों
बहुत उंडेला है विष तुमने
अब तो अमृत की एक बूंद छलकाओ
मत इतराओ इस कुर्सी पर बैठकर
अच्छे अच्छे को धराशायी कर देती है ,
चार पहिये, दो हत्ते और एक पीठ वाली
कुर्सी पर शिव सा कंठ और
राम की प्रतिमूर्ति लेकर इस कुर्सी की गरिमा बढाओ
बहुत उंडेला है विष तुमने अब तो अम्रत की एक बूंद छलकाओ
Wednesday, April 15, 2009
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