जब वो रूठा करती
मौन शब्दों से मनाने
की कोशिश में ,
लगी होती मै |
दिल करता उसे
सीने से लगा लू |
मै जानती हु
मेरा अंश
नही है वो,
फिर भी उसके आफिस से ,
देर से लोटने पर
धड़कता है मेरा दिल |
कभी प्यार से
उसके सर पर
हाथ फेरने का सिर्फ
उपक्रम कर
रह जाती मै |
मम्मी से मम्मा
उसकी जुबान पर
आते ही चुक जाता
तब सिर्फ मम्मीजी
कहकर रह जाती वो
मेरे करीब
प्यार का अहसास
करते
रुक जाती वो
न जाने कोनसी
अद्र्शय लकीर
हम दोनों के
बीच खीच जाती
माँ बेटी
बनने की चाह में
सिर्फ साँस बहू
रह जाते हम |
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
11 टिप्पणियाँ:
आपकी हर रचना में एक जीवन होता है
रिश्तों में प्यार का होना जरूरी है..........माँ बेटी या सास बहू.........अच्छी रचना है.........कुछ कहती हुयी
बहुत ख़ूब। काश और सास आपकी इस कविता के सास की जैसी हो और काश, हर बहू उसे समझ पाए।
bahut achhi rachna// shobhnaji, aapki kalam pahle se jyada peni hoti jaa rahi he// yah bahut achha sanket he/ hame ab jyada behtar rachnaye milengi//
:) बहुत सही लिखा है। कुछ दूरी तो शायद कोई भी नहीं मिटा सकता।
घुघूती बासूती
न जाने कोनसी
अद्र्शय लकीर
हम दोनों के
बीच खीच जाती!
बहुत कुछ कहती हुई एक सच्ची और अच्छी रचना शोभना जी..
रिश्तों के बीच कि लकीर को बखूबी
उकेरा है आपने अपनी इस अनुपम रचना
के माध्यम से ....
एक एक शब्द में धड़कन महसूस हो रही है
जिंदगी का फलसफा साफ़ झलकता है
बधाई
---मुफलिस---
जब वो रूठा करती
मौन शब्दों से मनाने
की कोशिश में ,
लगी होती मै |
दिल करता उसे
सीने से लगा लू |
मै जानती हु
मेरा अंश
नही है वो,
फिर भी उसके आफिस से ,
देर से लोटने पर
धड़कता है मेरा दिल |
एक बात कहूँ शोभना जी ...? शायद ही किसी सास ने अपनी बहु के लिए कविता लिखी हो ....बहुत खूब....लाजवाब......!!
सास-बहू के रिश्ते पर अच्छी कविता.......मगर यह लकीर न जाने कब मिटेगी....वैसे कुछ उदाहरण हैं मगर महज़ उँगलियों पर गिनाने जितने....
साभार
हमसफ़र यादों का.......
पहले तो तारीफ़ के लिये शुक्रिया मैम....और आपका दिल से मेहरबान हूँ कि आप आयी वर्ना आपकी इन अद्भुत नायाब रचनाओं से वंचित ही रह जाता मैं...
ये कविता तो विशेष कर बहुत भायी।
वाह वाह! बहुत बढ़िया! आपकी हर एक कविता लाजवाब है!
Post a Comment