Monday, August 24, 2009

गणपति बप्पा मोरया

स्कूल के दिनों में हिन्दी विषय के अंतर्गत बाबा भारती का घोड़ा की कहानी पढाई जाती थी कहानी का शीर्षक था हार जीत
के लेखक थे सुदर्शन |बाद में टिप्पणी लिखो :में पूछा जाता था इस कहानी से क्या शिक्षा मिली?क्या संदेस देती है ये कहानी ?तब तो रट रट कर बहुत कुछ लिख देते थे और नंबर भी पा लेते थे |कितु न तो कभी बाबा भारती ही बन पाए और न ही कभी ह्रदय परिवर्तन होने वाले डाकू खड्गसिँह को अपने जीवन में उतार पाए |
आज बाबा भारती(नकली ) बहुत है , सुलतान को बेचने वाले ,आलिशान कुटियों में रहने वाले और डाकुओ के साथ रहकर व्यापार करने वाले |
पिछले दिनों से लगातार समाचार आ रहे है नकली खून के बाजार के |
स्तब्ध हूँ, क्षुब्ध हूँ किंतु अब लगता है की सचमुच भारत भगवान के भरोसे ही चल रहा है |


ईमान तो
कब का बेच दिया !
थाली की
दाल रोटी भी चुराकर
बेच दी !
त्यौहार अभी आए नही ?
पकवानों की मिठास ही
बेच दी !

नकली घीं
नकली दूध
नकली मसाले
और अब
नकली खून ?
कौनसी ?
ख्वाहिश मे
तुमने पेट की आग
खरीद ली
तुम भूल रहे हो
आग हमेशा ही जलाती है
तुमने
दाल, चीनी गेहू और
खून
नही जमा किया है ?
तुमने जमा की है
अपने गोदाम मे
इनके बदले
ईमानदार की आहे
मेहनतकश की
बद्ददुआए
प्रक्रति की
समान वितरण प्रणाली को
असमानता मे तब्दील कर
तुमने अपनी भूख
बढ़ा ली है
व्यापार के सिद्धांतो
को तोड़कर
प्रक्रति से
दुश्मनी मोल ले ली है
बेवक्त की भूख
कभी शांत नही होती

18 टिप्पणियाँ:

मुकेश कुमार तिवारी said...

शोभना जी,

बाबा भारती को याद कराते हुये आपने हममें ही छिपे खड्गसिँह को बाहर निकाल हमारे ही सामने खड़ा कर दिया है।

कौनसी ?
ख्वाहिश मे
तुमने पेट की आग
खरीद ली
तुम भूल रहे हो
आग हमेशा ही जलाती है


बहुत अच्छी रचना।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

Mumukshh Ki Rachanain said...

प्रक्रति की
समान वितरण प्रणाली को
असमानता मे तब्दील कर
तुमने अपनी भूख
बढ़ा ली है
व्यापार के सिद्धांतो
को तोड़कर
प्रक्रति से
दुश्मनी मोल ले ली है
बेवक्त की भूख
कभी शांत नही होती

किब शब्दों में तारीफ करुँ आप की उपरोक्त बेहतरीन पंक्तियों का.
बधाई, बधाई, बधाई

Asha Joglekar said...

ली है
व्यापार के सिद्धांतो
को तोड़कर
प्रक्रति से
दुश्मनी मोल ले ली है
बेवक्त की भूख
कभी शांत नही होती

sahee kaha.

RADHIKA said...

भगवान भरोसे ही चल रही हैं ये दुनिया और क्यों चल रही हैं इसे समझ ही नहीं पा रही हूँ आपकी पोस्ट सटीक लगी ,और बाबा भारती के घोडे वाली कहानी भी कुछ कुछ यद् हो आई .

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

"वेदना तो हूँ पर संवेदना नहीं, सह तो हूँ पर अनुभूति नहीं, मौजूद तो हूँ पर एहसास नहीं, ज़िन्दगी तो हूँ पर जिंदादिल नहीं, मनुष्य तो हूँ पर मनुष्यता नहीं , विचार तो हूँ पर अभिव्यक्ति नहीं|"

कभी-कभार अपने आप में गुम इंसान कितनी गहरी और मार्मिक बाते कह डालता है !!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

"त्यौहार अभी आए नही ?
पकवानों की मिठास ही
बेच दी !"

सुन्दर अभिव्यक्ति।
बधाई!

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत सहज और सुन्दर अभिव्यक्ति. बधाई.

daanish said...

तुमने जमा की है
अपने गोदाम मे
इनके बदले
ईमानदार की आहे
मेहनतकश की
बद्ददुआए

aapne bilkul sach kahaa hai
lekin aajkal log laalach aur be-imaani meiN andhe ho kar ye sb kahaan sochte haiN...
aur....aapki chintaa vyarth nahi hai...aapka sandes jan-maanas tk pahunche...inhi duaaoN ke sath

---MUFLIS---

hem pandey said...

'प्रक्रति से
दुश्मनी मोल ले ली है
बेवक्त की भूख
कभी शांत नही होती'

- कड़वा सच.

गौतम राजऋषि said...

सच कहा आपने मैम...डाकू खड़ग सिंह के हृगय परिवर्तन की बात बस किस्से में रह गयी है।...और इस नकली खून के बाजार की खबर तो वाकई हौलनाक है।

"कौनसी / ख्वाहिश मे / तुमने पेट की आग
खरीद ली / तुम भूल रहे हो / आग हमेशा ही जलाती है"

उद्वेलित करती रचना!

अमिताभ श्रीवास्तव said...

sabse jyada utkrashth rachna...
samvedana aour behichak sach..marm ko chhuti hui si, use bedhati hui jaati he/
gaye vo khadgsingh..kitabo me ked rah gaye he.., aapki yah rachna udvelit karaati he/

प्रकाश पाखी said...

आपकी रचना आज के हालत की सचाई बयां करती है...बहुत सटीक और प्रभावी लिखा है..

हरकीरत ' हीर' said...

तुमने जमा की है
अपने गोदाम मे
इनके बदले
ईमानदार की आहे
मेहनतकश की
बद्ददुआए

अच्छा सबक दिया है आपने ईमान बेचने वालों को .....!!

Alpana Verma said...

गहन भाव हैं कविता में.
बहुत सटीक चित्रण है आज की स्थिति का.
आप की चिंता सही है ,आज सभी यही सोच रहे हैं की यह देश चल रहा है तो सिर्फ और सिर्फ भगवान् भरोसे..

k.r. billore said...

shobhnaji,,,bahut sunder abhivyakti hai savednaao ki ..satik aur samyik hai ,,kamna mumbai,,,

k.r. billore said...

shobhnaji,,,bahut sunder abhivyakti hai savednaao ki ..satik aur samyik hai ,,kamna mumbai,,,

रचना त्रिपाठी said...

आपकी इस रचना की जितनी तारीफ़ की जाय कम होगी बहुत सटीक लगा।
आभार।

राज भाटिय़ा said...

मेने बरसो पहले यह कहानी पढी थी, जो दिमाग के संग संग मेरे खुन मै भी बस गई, आप ने सच कहा है अपनी कहानी मै आज का सच.
आज लोग डाकू से भी गये गुजरे हो गये है.
आप का धन्यवाद,