Friday, April 24, 2009

विष-वृक्ष

बनावटीपन का
जखीरा खड़ा कर लिया है मैंने
अपने आसपास

मुखोटे पर मुखोटे
लगाकर
जंग जीत ली है मैंने
आज

मैं कोई अशोक नही
जो शान्ति का संदेश दे जाऊँ
मैं तो विष-वृक्ष की बेल हूँ ...
जो लिपट जाऊँ साल दर साल तुम्हारे साथ

3 टिप्पणियाँ:

mark rai said...

बनावटीपन का
जखीरा खड़ा कर लिया है मैंने
अपने आसपास.........
bahut sunder koshish karuga
is banaawatipan ko hataane ke liye...

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

आपकी कविता अच्छी लगी इसी तरह लिखते रहीयेगा
शुभकामना सहीत,
- लावण्या

जयंत - समर शेष said...

Waah... ati sundar.

मेरे ब्लॉग पर पधारने के लिए धन्यवाद...
इससे मुझे ही फायदा हुआ.. आपका ब्लॉग पढ़ने को मिला..
अच्छा लिखते हैं आप..

~जयंत