मन में कई विचार आते ही ,पर कई बार मै उनको apasमें जोड़ नही पाती , और वे विचार दिमाग से भी हटना ही नही चाहते
न ही कविता बनती ही नही कोई लेख बस दो लाइन पर ही अटक जाती हुँ |
सोचा आप सबसे ये दो लाइने बाँट लू ;
शातिरों की बस्ती में ,बस गये हम|
जैसे मुखोटो के बाज़ार में आ गये हम
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5 टिप्पणियाँ:
सही कहा शोभना इ आपने,कई बार ऐसा होता है,शब्द रूप नहीं ले पाते, भावनाओं की आँधियाँ उन्हें इधर-उधर कर देती है,पर जिन्हें आपने पकड़ लिया,वह बहुत अच्छे हैं.....
जिन्दगी साथ है तो
मौत की तलब है |
मौत की दस्तक है
तो जिन्दगी की तलब है ................................
bahut sahi likha hai . yahi jeevan hai.
बिल्कुल सही फ़रमाया आपने! यही तो ज़िन्दगी का दस्तूर है!
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