Tuesday, June 23, 2009

फूलो ने कहा

अभी परसों सारदा मठ बंगलौर में गये थे नंदिनी दुर्ग रोड पर स्थित ,कोई अंदाज़ भी नही लगा सकता है की अन्दर इतनी शांतता सुन्दरता होगी| बेंगलोर के ट्रेफिक ,कोलाहल को पार करते हुए जब मठ के अन्दर प्रवेश किया तो ऐसा लगा मानो स्वर्ग में ही आ गये हो |गेट के अन्दर घुसते ही हरियाली ही हरियाली बीच में पत्थरों से बना रास्ता दरअसल वो पुरी पथरीली जमीन ही थी जो सारदा मठ को कुछ ३० -३५ साल पहले दान में दे दी गई थी किंतु वहां की अध्यक्ष माताजी के अथक प्रयासों से एक सुंदर ध्यान केन्द्र, मन्दिर जिसमे (ठाकुर)रामक्रष्ण परमहंस माँ शारदा और स्वामीजी (विवेकानंदजी )की आराधना होती और उनके उपदेशो को क्रियान्वित किया जाता है अक्षरश | नियमित संध्या आरती और भजन मन को बहुत शान्ति देते है |
मन्दिर के अन्दर की शान्ति और बाहर प्रक्रति की अनुपम भेट ,एक छोटे से झील नुमा कुंड में तैरती बद्खे खिलते हुए कमल के फूल अनगिनत तरह के पीले , लाल, सफ़ेद, नीले ,नारगी और कई रंग के फूल मुस्कुरा रहे थे |साथ ही आम ,अमरूद ,अनार ,कटहल ,बेल के फल लदे हुए थे |सब कुल मिलाकर वहां का वातावरण एक अलोकिक आनन्द दे रहा था |
उस वातावरण को देखकर मेरे मन में यही भावः आए | जिन्हें मै आप सबके साथ साथ बाँट रही हूँ |

फूलो ने कहा -
सुना तमने ?

फूलो ने कहा -
मुझसे चटक रंग ले लो ?

फूलो ने कहा -
मुझसे थोडी सी मुस्कराहट ले लो ?

फूलो ने कहा -
मुझसे थोडी सी विनम्रता और नाजुकता ले लो ?

फूलो ने कहा -
मुझसे थोडासा जीवन ले लो ?

मेरी चुप्पी और अकड़ देखकर ,
आखिर वो
धीरे से फुसफुसाकर बोले
अगर कुछ भी न लो तो
तो मेरी
थोडी सी खुशबू ही ले लो ..................

20 टिप्पणियाँ:

दिगम्बर नासवा said...

वाह लाजवाब लिखा है आपने............... इतने सुन्दर और शांत वातावरण का ही असर होगा जो हर शै कह रही है.......... जो भी हमारा है ले लो.......... सचमुच ये तो फूल है............ इंसान का क्या है जो वो इतना इतराता है

डॉ .अनुराग said...

dilchasp...!

M VERMA said...

khoosboo bhala khoosboo lekar kya karegi.
bahut khoob

Udan Tashtari said...

बेहतरीन भाव जागृत हुए!

कडुवासच said...

... sundar abhivyakti !!!!

हरकीरत ' हीर' said...

मेरी चुप्पी और अकड़ देखकर ,
आखिर वो
धीरे से फुसफुसाकर बोले
अगर कुछ भी न लो तो
तो मेरी
थोडी सी खुशबू ही ले लो ..................

बहुत खूब ...शोभना जी सुंदर अभिव्यक्ति....!!

राज भाटिय़ा said...

भाई आप की कविता बहुत सुंदर लगी,्वाह वाह
धन्यवाद

Urmi said...

बहुत ही सुंदर भाव के साथ आपकी ये ख़ूबसूरत कविता मुझे बेहद पसंद आया!

नीरज गोस्वामी said...

शोभना जी वाह...क्या खूबसूरत बात कही है आपने अपनी रचना में...आज आपके ब्लॉग पर आ कर बहुत अच्छा लगा...आप बहुत विलक्षण लेखिका हैं...मेरी बधाई स्वीकार करें.
नीरज

mark rai said...

foolon se bahut hi kuchh sikha jaa sakta hai.....dusaro ki khushiyon ko kaise sahej kar rakhe....wakai inhi se to sikha ja sakta hai...

प्रकाश पाखी said...

शोभना जी,
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है..
मुझे अपने ब्लॉग के नाम आपके ब्लॉग के नाम एक समान होने के संयोग पर ख़ुशी है.
आप बहुत सुन्दर लिखती है.

प्रकाश सिंह

रंजू भाटिया said...

अगर कुछ भी न लो तो
तो मेरी
थोडी सी खुशबू ही ले लो ..................

बहुत सुन्दर लगी यह आखिरी पंक्तियाँ

वन्दना अवस्थी दुबे said...

सुन्दर ..अतिसुन्दर..कविता.कुछ ऐसी ही शान्ति इस्कौन मन्दिरों में जा के भी मिलती है, और विवेकानन्द रौक मेमोरियल कन्याकुमारी में भी.

ज्योति सिंह said...

bahut shandar ,sundar prastuti .saralata aur sadagi ka mel .prernadayak .

प्रिया said...

मेरी चुप्पी और अकड़ देखकर ,
आखिर वो
धीरे से फुसफुसाकर बोले
अगर कुछ भी न लो तो
तो मेरी
थोडी सी खुशबू ही ले लो ..



Itni shalinta .... wo bhi data ki.... aapki kavita man ko bha gai

अमिताभ श्रीवास्तव said...

जीवन की सादगी और परम शांति ऐसे ही मठो से प्राप्त होती है. किंतु इसका असल अर्थ तब हो जब हम मठ की अद्भुत शक्ति को मठ से बाहर निकल कर भी महसूस करते रहे, आजन्म./सार्थकता तो तब ही होगी.
आपकी रचना भी खुशबू बिखेरती है.

अमिताभ श्रीवास्तव said...

shobhanaji,
pata nahi kyu aapse kuchh nijee savaal poochh rahaa hoo, gustakhee ke liye shamaa jaroor karna/
aapne bataya 'khandva' me aap apni bahno ke liye kapade bhejati rahi thi, yaani aap khandva-khargone ke aaspaas ki hi he, me isliye yah poochhne ki gustaakhi kar rahaa hoo kyoki saalo baad koi apne ghar ke nazdik kaa lag rahaa he. pls yadi aap apne baare me kuchh batayengi to mujhe achha lagega, ki blog ke madhyam se apana koi kareeb ka aa takarayaa.// anyathaa mat lijiyega//

अमिताभ श्रीवास्तव said...

aapne jaankaari di, achha laga,, bahut dino ke baad koi ekdam paas kaa insaan mila../darasal me khargone ka hu, 20-21 saalo se mumbai me// is bich delhi-kerala-dehradoon-aour kuchh samay london raha..mumbai nivas kar liya thaa so ab yahi jamaa hoo.../
apne bete bahuo ke paas rahne ka bhi alag aanand hota he,, yah hamare jivan ke mooldhan ka byaaj he..// haalaanki mene abhi is umra me pravesh nahi kiya he ki aour vese bhi meri ek bitiya he..//so bahu vala part idhar anubhav nahi hoga../kintu apne mata-pita ke cheahre ki khushi se mahsoos kartaa hoo bete-bahu ke paas rahne ka aanand/ kher..//swasth rahe../aanandmay rahe/ shubhkamnaye/

Mumukshh Ki Rachanain said...

इन्सान के अंहकार को शायद यही
'थोडी सी खुशबू ही ले लो .................. "
सुनना बचा रह गया था..................

सुन्दर रचना, सार्थक प्रयास,

बधाई

चन्द्र मोहन गुप्त

Poonam Misra said...

आपके चिट्ठे पर पहली बार आना हुआ. आपकी कविता ने मोह लिया.