" आत्म संयम "
* यह जान लो की किसी की अनुपस्थिति में निंदा करना पाप है |तुम्हे पूरी तरह इससे बचना चाहिए |मन में सैकड़ो बाते आ सकती है ,पर तुम इन्हें व्यक्त करते रहो ,तो "तिल का ताड़ "बन जाता है |यदि तुम क्षमा कर दो तो और भूल जाओ बात वही पर समाप्त हो जाती है |
* यदि कोई तुमसे व्यर्थ विवाद करने आये तो नम्रता के साथ अपने को अलग कर लेना |तुम्हे सभी
सम्प्रदाय के लोगो के साथ अपनी सहानुभूति प्रकट करना चाहिए |जब तुममे ये प्रधान गुण आ
जावेंगे ,तभी तुम प्रबल उत्साह से काम कर सकोगे |
* निराशा धर्म तो नहीं है - वो और चाहे कुछ हो |सर्वदा प्रसन्न रहना और हंसमुख रहना तुम्हे और ईश्वर के निकट ले जायेगा -किसी प्रार्थना कि भी अपेक्षा अधिक निकट |
* सुख अपने सिर पर दुःख का मुकुट पहने मनुष्य के सम्मुख आता है |जो उसको अपनाएगा ,उसे दुःख को भी अपनाना पड़ेगा |
* मनुष्य भले ही राजनितिक और सामाजिक स्वतन्त्रता हासिल कर ले ,पर यदि वह वासनाओ का दास है
तो वह यथार्थ मुक्ति का आनंद अनुभव नहीं कर सकता |
* यह जान लो की किसी की अनुपस्थिति में निंदा करना पाप है |तुम्हे पूरी तरह इससे बचना चाहिए |मन में सैकड़ो बाते आ सकती है ,पर तुम इन्हें व्यक्त करते रहो ,तो "तिल का ताड़ "बन जाता है |यदि तुम क्षमा कर दो तो और भूल जाओ बात वही पर समाप्त हो जाती है |
* यदि कोई तुमसे व्यर्थ विवाद करने आये तो नम्रता के साथ अपने को अलग कर लेना |तुम्हे सभी
सम्प्रदाय के लोगो के साथ अपनी सहानुभूति प्रकट करना चाहिए |जब तुममे ये प्रधान गुण आ
जावेंगे ,तभी तुम प्रबल उत्साह से काम कर सकोगे |
* निराशा धर्म तो नहीं है - वो और चाहे कुछ हो |सर्वदा प्रसन्न रहना और हंसमुख रहना तुम्हे और ईश्वर के निकट ले जायेगा -किसी प्रार्थना कि भी अपेक्षा अधिक निकट |
* सुख अपने सिर पर दुःख का मुकुट पहने मनुष्य के सम्मुख आता है |जो उसको अपनाएगा ,उसे दुःख को भी अपनाना पड़ेगा |
* मनुष्य भले ही राजनितिक और सामाजिक स्वतन्त्रता हासिल कर ले ,पर यदि वह वासनाओ का दास है
तो वह यथार्थ मुक्ति का आनंद अनुभव नहीं कर सकता |
*सबसे मूर्ख व्यक्ति भी एक कार्य सम्पन्न कर सकता है यदि वो उसके मन का हो |पर बुद्धिमान तो वह है जो प्रत्येक कार्य को अपनी रूचि के अनुरूप बना ले सकता है |
कोई भी कार्य तुच्छ नहीं है |
* जिसने अपने ऊपर संयम कर लिया है वह बाहर की किसी वस्तु द्वारा प्रभावित नहीं किया जा सकता |
उसके लिए गुलामी फिर नहीं रह जाती |उसका मन मुक्त हो गया है |केवल ऐसा व्यक्ति ही संसार में
आदर्श रूप में रहने योग्य है |
* हम जितना ही शांत होंगे ,हमारे स्नायु जितने ही कम उत्तेजित होंगे ,हम उतना ही अधिक प्रेम कर सकेंगे
और हमारा कार्य उतना ही अच्छा होगा ||
* जो कार्य और विचार आत्मा की पवित्रता और शक्ति को संकुचित है वे विचार बुरे है ,बुरे कार्य है ;और जो
कार्य तथा विचार आत्मा की अभिव्यक्ति में सहायक होते है एवम उसकी शक्ति को मानो प्रकाशित कर
देते है वे अच्छे और नीतिपर है |
* धन फलदायक नहीं होता और न नाम ;यश फलदायक नहीं होता और न विद्या |प्रेम ही सर्वत्र फलदायक है |
चरित्र ही कठिनाइयों की संगीन दीवारों को भेदकर अपना रास्ता बना लेता है |
* जीवन -कर्म सहज ही भीषण है |
उसका सब सुख -केवल क्षण है |
यद्यपि लक्ष्य अद्रश्य धूमिल है |
फिर भी वीर- ह्रदय !हलचल है |
अंधकार को चीर अभय हो -
बढ़ो साहसी !जग विजयी हो |
* अपवित्र भावना उतनी ही बुरी है ,जितना अपवित्र कार्य |संयत कामना से उच्चतम फल प्राप्त होता है |
साभार -विवेकानन्द की वाणी
कोई भी कार्य तुच्छ नहीं है |
* जिसने अपने ऊपर संयम कर लिया है वह बाहर की किसी वस्तु द्वारा प्रभावित नहीं किया जा सकता |
उसके लिए गुलामी फिर नहीं रह जाती |उसका मन मुक्त हो गया है |केवल ऐसा व्यक्ति ही संसार में
आदर्श रूप में रहने योग्य है |
* हम जितना ही शांत होंगे ,हमारे स्नायु जितने ही कम उत्तेजित होंगे ,हम उतना ही अधिक प्रेम कर सकेंगे
और हमारा कार्य उतना ही अच्छा होगा ||
* जो कार्य और विचार आत्मा की पवित्रता और शक्ति को संकुचित है वे विचार बुरे है ,बुरे कार्य है ;और जो
कार्य तथा विचार आत्मा की अभिव्यक्ति में सहायक होते है एवम उसकी शक्ति को मानो प्रकाशित कर
देते है वे अच्छे और नीतिपर है |
* धन फलदायक नहीं होता और न नाम ;यश फलदायक नहीं होता और न विद्या |प्रेम ही सर्वत्र फलदायक है |
चरित्र ही कठिनाइयों की संगीन दीवारों को भेदकर अपना रास्ता बना लेता है |
* जीवन -कर्म सहज ही भीषण है |
उसका सब सुख -केवल क्षण है |
यद्यपि लक्ष्य अद्रश्य धूमिल है |
फिर भी वीर- ह्रदय !हलचल है |
अंधकार को चीर अभय हो -
बढ़ो साहसी !जग विजयी हो |
* अपवित्र भावना उतनी ही बुरी है ,जितना अपवित्र कार्य |संयत कामना से उच्चतम फल प्राप्त होता है |
साभार -विवेकानन्द की वाणी
9 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर विचार्……………आभार्।
बहुत ही प्रभावशाली रचना
उत्कृष्ट लेखन का नमूना
लेखन के आकाश में आपकी एक अनोखी पहचान है ..
अनुकरणीय सद्विचार
उत्तम विचार। अनुकरणीय। प्रेरक।
स्वामीजी के सुंदर और सहेजने योग्य विचार .... आभार
प्रेरक और उत्तम विचार ....पर होता क्या है ? पीठ पीछे ही निंदा का बोलबाला होता है ..
उपयोगी सूत्र जीवन के।
स्वामी जी के शदों में जादू है ... बेहतरीन वाणी ..
बहुत ही सुन्दर और प्रेरक वचारों से फिर से एक बार रूबरू करवाया...आभार
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