Monday, January 10, 2011

"विवेक सूत्र "



वीर हनुमान जी का विचार किये बिना हम श्रीरामचंद्र जी का विचार नहीं कर सकते ,अर्जुन के स्मरण किये बिना हम भगवान श्रीकृष्ण का विचार नहीं कर सकते |बुद्धदेव के साथ आनंद अवम इसा मसीह के साथ सेंत पोल का भी विचार हमे करना पड़ता है | श्रीरामकृष्ण तथा स्वामी विवेकानन्द का सम्बन्ध भी इसी प्रकार का है |श्रीरामकृष्ण मानो मूल स्त्रोत है तथा स्वामी विवेकानन्द उस जल को बहा ले जाना वाला प्रवाह |



१२ जनवरी १८६३ को कलकते में प्रसिद्द वकील विश्वनाथ दत्त और देवी भुवनेश्वरी की चौथी नरेन् के रूप में जन्म लिया था स्वामी विवेकानन्द ने |माता पिता ने "नरेन्द्रनाथ "नाम दिया अपनी इस तेजस्वी संतान को|




प्यार से उन्हें घर में "नरेन "कहकर बुलाया जाता |ठाकुर (रामकृष्ण परमहंस )उन्हें हमेशा ही नरेन कहकर ही पुकारते थे |

बालक नरेनने बचपन से ही बहुत चंचल .साहसी और प्रखर बुद्धि पाई थी |

शिकागो की धर्म सभा में जाने के पूर्व राजस्थान के खेतड़ी के राजा ने" स्वामी विवेकानंद "के नाम से विभूषित किया था |

स्वामीजी युवाओ के प्रेरणा स्त्रोत रहे है |

स्वामी जी के बारे में कुछ कहना मानो सूरज को चिराग दिखाना है |

उनके १४९ वे जन्मदिवस पर शत शत नमन |

आज स्वामी विवेकानंद जयंती है जो कि सर्व विदित है कि" राष्ट्रीय युवा दिवस" के रूप में मनाई जाती है |

इसी अवसर पर उनको नमन ...और स्वामी जी द्वारा दिये गये उद्गार के रूप में प्रतिष्ठित" विवेकसूत्र "|


नमन


भुक्तिमुक्तिकृपाकटाक्षप्रेक्षणमघदलविदलनदक्षम |
बालचंद्रधरमिंदूवन्ध्यमिह नौमि गुरु विवेकानंदम||


-जिनकी कृपा दृष्टी से भोग और मोक्ष दोनो प्राप्त होते है ,जो पापसमूह का विनाश करने में निपुण है ,मस्तक पर चंद्र कला धारण करने वाले शिव हि है एवम जो" इन्दु "(कवि )के वंदनीय है ,
उन गुरु विवेकानंद को मै प्रणाम करता हूँ |

"विवेक सूत्र "
* प्रत्यक जीव अव्यक्त ब्रह्म है |

*बाह्य एवम आन्तर प्रकृती को वशीभूत करके
इस अंत :स्थ के बह्म भाव को व्यक्त करना हि जीवन का चरम लक्ष्य है |

* कर्म ,उपासना ,मन :संयम अथवा ज्ञान -इनमे से ऐक से अधिक या सभी उपयो का
सहारा लेकर अपना ब्रम्ह भाव
व्यक्त करो और मुक्त हो जाओ |

* बस यही धर्म का सर्वस्व है |
मत, अनुष्ठान पद्धती ,शास्त्र ,मंदिर अथवा
अन्य बाह्य क्रिया कलाप उसके गौण अंग -प्रत्यंग मात्र है |

साभार -विवेकानंद की वाणी


































7 टिप्पणियाँ:

वाणी गीत said...

इस युगपुरुष को शत -शत नमन !

प्रवीण पाण्डेय said...

संस्कृति के वाहक को प्रणाम।

अजित गुप्ता का कोना said...

विवेकानन्‍द के योगदान को भारतीय समाज कभी विस्‍मृत नहीं कर सकता। उन्‍होंने ही भारतीयों में स्‍वाभिमान जागृत किया। शत शत अभिनन्‍दन।

anshumala said...

विवेका नन्द जी के बारे में मेरा थोडा बहुत ही ज्ञान था जो ब्लॉग जगत में आ कर थोडा बढ़ गया किन्तु यहाँ पर ये पढ़ कर भी दुःख हुआ की कुछ ना समझ युवा (?) उनके लिए खुले आम ये लिखने से नहीं चुकते है की उनकी मौत जल्दी इसलिए हो गई क्योकि उन्होंने ब्रह्मचर्य का पालन किया था ऐसा कहने वाला आज का युवा क्या उनके दिखाए रास्ते पर चल सकता है उनकी बातो को समझ सकता है | ऐसे युवाओ के देश में उनके जन्म दिवस को "युवा दिवस " के रूप में मानने से क्या फायदा | मेरी तरफ से उनको नमन |

शोभना चौरे said...

@अन्शुमालाजी
क्या कुछ लोगो के कहने से इस महान विभूति स्वामीजीके विचारो को फैलाना छोड़ देंगे ?कृष्ण भगवान की रासलीला को कितने गलत ढंग दैन्दिन प्रयोग में (बोलचाल )लाया जाता है तो क्या हम कृष्ण की महिमा ,कृष्ण की पूजा करना छोड़ दे |सच तो ये है की कृष्ण को भी हम कहाँ पूर्ण समझ पाए है ?बस माखन चुराना ,गोपियों के साथ रास रचाना ,
या सुदामा की मित्रता तक ही जान पाते है ?
आप मुंबई में रहती है रामकृष्ण मिशन खार में स्थित है बस से जाये तो सभी बस रामकृष्ण मिशन जो बस स्टॉप का नाम ही है वहा रूकती है |वहां स्वामीजी का सारा साहित्य और सम्पूरण कार्य जानने को मिलेगा |मै इसलिए ये जानकारी दे रही हूँ की आपने कहा है की आपने विवेकानंदजी के बारे में ज्यादा पढ़ा नहीं है ?
अग्र ज्यादा जानकारी की आवश्यकता हो तो कृपया मेल करे |

Kailash Sharma said...

भारतीय संस्कृति का सम्पूर्ण विश्वव से परिचय करानेवाले युग पुरुष को शत शत प्रणाम !

shikha varshney said...

इस महापुरुष को शत शत नमन.