विवेकानंदजी के विचारो को कार्यो में परिणित करना ही रामकृष्ण मिशन ,शारदा मठ का मुख्य उद्देश्य है जिसमे वे बिना प्रचार के अपने कार्यो में निरंतर आगे बढ़ रहे है |
बेलूर मठ ,(कोलकाता ) मुंबई का खार का मिशन ,चेन्नई ,बेंगलोर ,बड़ोदा ,लखनऊ ,नागपुर , इंदौर ,अल्मोड़ा ,मायावती (advait ashram )shyamlatal (utrakhand )इन जगहों पर मैंने स्वामीजी द्वारा जगाये अलख को प्रत्यक्ष देखा है |इसके आलावा पूरे देश विदेश के केन्द्रों द्वारा आध्यात्मिकता के साथ ही आत्मनो मोक्षार्थऔर समाज को दिशा देने का कार्य मनोयोग से किया जा रहा है |बहुत सी जगह मै भी इन कार्यक्रमों का एक चुटकी हिस्सा बनी हूँ |
स्वामीजी की तारीख और तिथि के जन्मोत्सव के बीच के दिनों में उनके विचारो को आप सब के साथ बाँटने का प्रयास करना चाहती हूँ |
आज का विचार
"बल "
*मेरे साहसी युवको ,ये विश्वास रखो की की तुम्ही सब कुछ हो -
महान कार्य करने के लिए इस धरती पर आये हो |गीदड़ -घुड़कियो से भयभीत न हो जाना -
नहीं ,चाहे वज्र भी गिरे ,तो निडर हो खड़े हो जाना |
और कार्य में लग जाना |
* तुम्हारे देश को वीरो की आवश्यकता है ;अत : वीर बनो |
पर्वत की भांति अडिग रहो |'सत्यमेव जयते '-सत्य की ही सदा विजय होती है |
भारत चाहता है एक नयी विद्युत शक्ति ,जों राष्ट्र की नस नस में नया जीवन संचार कर दे |
साहसी बनी ,साहसी बनो ;मनुष्य तो एक बार ही मरता है |मुझे कायरता से घृणा है |मेरे शिष्य कायर न हो |
गंभीर से गंभीर कठिनाइयों में भी अपना मानसिक संतुलन बनाये रखो |
क्षुद्र अबोध जीव तुम्हारे लिए क्या कहते है ,इसकी तनिक भी परवाह न करो |
उपेक्षा उपेक्षा !उपेक्षा !ध्यान रखो ,आंखे दो है ,कान भी दो है ,पर मुंह केवल एक है |
पर्वत के विध्न बाधाओं में से होते हुए ही सारे कार्य महान कार्य संपन्न होते है |
अपना पुरुषार्थ प्रकट करो |
काम और कांचन में जकड़े हुए मोहान्ध व्यक्ति उपेक्षा की ही द्रष्टि से देखे जाते है |
*प्राचीन धर्मो ने कहा ,वह नास्तिक है ,जों ईश्वर में विश्वास नहीं करता |"नया धर्म कहता है
"नास्तिक वो है जों स्वयम में विश्वास नहीं करता "|
* बल ही जीवन है और दुर्बलता म्रत्यु |बल ही परम आनन्द है , शाश्वत जीवन है |
* बल ही एक मात्र आवश्यक वस्तु है |बल ही भवरोग की एक मात्र दवा है |धनिकों द्वारा रोंदे जाने वाले निर्धनों के लिए बल ही एक मात्र दवा है |विद्वानों द्वारा दबाये जाने वाले अग्यजनो के लिए बल ही एक मात्र दवा है ,और अन्य पापियों द्वारा सताए जाने वाले पापियों के लिए भी वही एक मात्र दवा है |
* मनुष्य सारे प्राणियों में श्रेष्ठ है , सारे देवताओ से श्रेष्ठ है ;उससे श्रेष्ठ और कोई नहीं |देवताओ को फिर से धरती पर नीचे आना पड़ेगा मनुष्य शारीर धारण कर मुक्ति प्राप्त करनी पड़ेगी |केवल मनुष्य ही पूर्णता प्राप्त करता है देवताओ के भाग्यतक में यः नहीं |
* उदार बनो |ध्यान रखो ,जीवन का एक मात्र चिन्ह है ,गति और विकास |
* वत्स ,मै चाहता हूँ लोहे की मांसपेशिया और फौलाद के स्नायु ,जिनके अन्दर ऐसे मन का वास हो ,जों वज्र के उपादानो से गठित हो |
* सत्य असत्य से अन्नतगुना प्रभाव शाली है ;और ऐसे ही भलाई बुराई से |
यदि ये बाते तुममे है तो ,वे अपने प्रभाव से ही अपना स्थान बना लेगी |
* सत्य का अनुसरण करो ,फिर वो तुन्हें जहाँ ले जाये ;प्रतेक भाव को उसके चरम सिधांत तक लिए जाओ |
कायर और कपटी मत होना |
* पहले हम स्वयम देवता बने और दुसरो को देवता बन्ने में सहायता दे |
"बनो और बनाओ "-बस यही हमारा मंत्र हो |
साभार -विवेकानन्द की वाणी
"बल "
*मेरे साहसी युवको ,ये विश्वास रखो की की तुम्ही सब कुछ हो -
महान कार्य करने के लिए इस धरती पर आये हो |गीदड़ -घुड़कियो से भयभीत न हो जाना -
नहीं ,चाहे वज्र भी गिरे ,तो निडर हो खड़े हो जाना |
और कार्य में लग जाना |
* तुम्हारे देश को वीरो की आवश्यकता है ;अत : वीर बनो |
पर्वत की भांति अडिग रहो |'सत्यमेव जयते '-सत्य की ही सदा विजय होती है |
भारत चाहता है एक नयी विद्युत शक्ति ,जों राष्ट्र की नस नस में नया जीवन संचार कर दे |
साहसी बनी ,साहसी बनो ;मनुष्य तो एक बार ही मरता है |मुझे कायरता से घृणा है |मेरे शिष्य कायर न हो |
गंभीर से गंभीर कठिनाइयों में भी अपना मानसिक संतुलन बनाये रखो |
क्षुद्र अबोध जीव तुम्हारे लिए क्या कहते है ,इसकी तनिक भी परवाह न करो |
उपेक्षा उपेक्षा !उपेक्षा !ध्यान रखो ,आंखे दो है ,कान भी दो है ,पर मुंह केवल एक है |
पर्वत के विध्न बाधाओं में से होते हुए ही सारे कार्य महान कार्य संपन्न होते है |
अपना पुरुषार्थ प्रकट करो |
काम और कांचन में जकड़े हुए मोहान्ध व्यक्ति उपेक्षा की ही द्रष्टि से देखे जाते है |
*प्राचीन धर्मो ने कहा ,वह नास्तिक है ,जों ईश्वर में विश्वास नहीं करता |"नया धर्म कहता है
"नास्तिक वो है जों स्वयम में विश्वास नहीं करता "|
* बल ही जीवन है और दुर्बलता म्रत्यु |बल ही परम आनन्द है , शाश्वत जीवन है |
* बल ही एक मात्र आवश्यक वस्तु है |बल ही भवरोग की एक मात्र दवा है |धनिकों द्वारा रोंदे जाने वाले निर्धनों के लिए बल ही एक मात्र दवा है |विद्वानों द्वारा दबाये जाने वाले अग्यजनो के लिए बल ही एक मात्र दवा है ,और अन्य पापियों द्वारा सताए जाने वाले पापियों के लिए भी वही एक मात्र दवा है |
* मनुष्य सारे प्राणियों में श्रेष्ठ है , सारे देवताओ से श्रेष्ठ है ;उससे श्रेष्ठ और कोई नहीं |देवताओ को फिर से धरती पर नीचे आना पड़ेगा मनुष्य शारीर धारण कर मुक्ति प्राप्त करनी पड़ेगी |केवल मनुष्य ही पूर्णता प्राप्त करता है देवताओ के भाग्यतक में यः नहीं |
* उदार बनो |ध्यान रखो ,जीवन का एक मात्र चिन्ह है ,गति और विकास |
* वत्स ,मै चाहता हूँ लोहे की मांसपेशिया और फौलाद के स्नायु ,जिनके अन्दर ऐसे मन का वास हो ,जों वज्र के उपादानो से गठित हो |
* सत्य असत्य से अन्नतगुना प्रभाव शाली है ;और ऐसे ही भलाई बुराई से |
यदि ये बाते तुममे है तो ,वे अपने प्रभाव से ही अपना स्थान बना लेगी |
* सत्य का अनुसरण करो ,फिर वो तुन्हें जहाँ ले जाये ;प्रतेक भाव को उसके चरम सिधांत तक लिए जाओ |
कायर और कपटी मत होना |
* पहले हम स्वयम देवता बने और दुसरो को देवता बन्ने में सहायता दे |
"बनो और बनाओ "-बस यही हमारा मंत्र हो |
साभार -विवेकानन्द की वाणी
8 टिप्पणियाँ:
प्रवीर हो, जयी बनो, बढ़े चलो, बढ़े चलो।
शोभना जी, विवेकानन्द को पढ़ना एक आनन्द का विषय है। बहुत अच्छे प्रेरक वाक्यों का संकलन दिया है आपने। नस-नस में चपलता आ गयी। आभार।
.
शोभना जी ,
आपने विवेकानंद जी के प्रेरक विचारों को सामने रखा । मन अति प्रसन्न हो गया। स्वामी जी के कहे हुए एक एक शब्द आदर्श हैं। यदि कोई एक प्रतिशत भी इनका पालन कर पाए तो जीवन सफल है समझिये।
देश की इस महान हस्ती को शत-शत नमन।
.
swamee ji ke khubsurat aur prerak vichar rakhne ka bahut bahut abhaar.
शोभना जी, एक एक लाईन अमूल्य हे, काश हम इन मे से आधी बातो पर भी अमल कर ले कितने सुखी बन जाये. धन्यवाद
बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक प्रस्तुति ।
bahut achha kiya in prawahmayi vichaaron ke sang hamen jodker
प्रेरक विचार ...... स्वामीजी के विचारों की प्रासंगिकता सदैव बनी रहेगी......
Post a Comment