मै तो हूँ तुम्हारी
मै ,
में मुझे
ऐसे खोजते हो
जैसे
रात में धूप खोजते हो ?
समुंदर के टुकड़े को
सूखते हुए
देखा है
मैंने
तुम कहते हो,
तुम
तैर कर आये हो
उसी
तुम्हारे ,मेरे में
फिर भी !
मै तुम्हे सूरज
की तरह मानती हूँ
तुम हो की
सूरज की ओट
में छिपे चाँद की तरह
ही चमकना
चाहते हो
कभी कभी !
Saturday, January 22, 2011
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22 टिप्पणियाँ:
मैं जो तुम्हे जानती हूँ, मानती हूँ... और तुम्हें मेरी तलाश है....! सुंदर
बहुत सुंदर! मैं और तुम का भेद मिटाती और प्रेम में एकाकार होने की शिक्षा देती सच्ची कविता!
बहुत सुंदर बात कही अप ने इस कविता मे धन्यवाद
मैं और तुम अलग कहाँ ...
एक सन्देश सा है इस कविता में ...
आभार !
main aur tum ...
pahchan hamari hi to hai
baaten ansuljhi hamare bich hi to hain ...
जिनसे उत्तर की अभिलाषा,
पूँछ रहे हैं प्रश्न वही दृग।
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ....मैं और तुम के बीच हम की भावना ...
मैं और तुम, बहुत ही बढ़िया कविता. आपकी लेखनी का यह रूप भाता है.
सादर
मनोज
मैं और तुम के बीच का सफ़र अच्छा लगा
waah! bahut sundar!
मैं और तुम ..एक ही तो हैं..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
liked it!!
अच्छी कविता |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
मै तो हूँ तुम्हारी
मै ,
में मुझे
ऐसे खोजते हो
जैसे
रात में धूप खोजते हो ?
बहुत अच्छी रचना -
सुंदर अभिव्यक्ति
मैं और तुम को आपने बहुत ही सुन्दर शब्द दिये हैं ...।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..
बहुत ही सुंदर व मार्मिक रचना। "मै" और "तुम" का परिवर्तन "हम" के रूप मे होना चाहिये जहां "अहम" के लिये कोई स्थान न हो…………बहुत बहुत बधाई।
तभी तो
मैं मैं नहीं
तुम तुम नहीं
ये तो सिर्फ हम हैं...
बहुत सुन्दर रचना है.
मै तुम्हे सूरज
की तरह मानती हूँ
तुम हो की
सूरज की ओट
में छिपे चाँद की तरह
ही चमकना
चाहते हो
कभी कभी !
बहुत अच्छी रचना
bahut achchi lagi.
समुंदर के टुकड़े को
सूखते हुए
देखा है
मैंने
तुम कहते हो,
तुम
तैर कर आये हो......
हृदयस्पर्शी पंक्तियां हैं। अच्छी कविता के लिये बधाई स्वीकारें।
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