धीर धीर साथ म्हारा गाव ,
असी म्हारी हँसी न उड़ाओ जिजिबाई धीरधीर साथ म्हारा गाओ
पिऊ तो म्हारा परदेस जाइल छे ,सासु बाई देगा मख गाळ
ओ जीजी बाई धीर धीर साथ म्हारा गाओ |
हउ छे खेडा की रीत काई जाणू ,
नन्द बाई ख गावण की हौस ,म्हारी जीजी बाई ,
धीर धीर साथ म्हारा गाओ
Thursday, August 21, 2008
बना /बननी [निमाड़ी लोक गीत ]
मीना जडी बिंदी लेता आवजो जी, बना पैली पेसेंजर सी आवजो जी
आवजो आवजो आवजो जी बना पैली पेसेंजर सी आवजो जी
माथ सारु बीदी लाव्जो माथ सारु टीको ,
माथ सारु झूमर लेता आवजो जी बना पैली पेसेंजर सी आवजो जी
गल सारु हार लाव्जो गल सारु नेकलेस ,
गल सारु पेंडिल लेता आवजो जी ,बना पैली पेसेंजेर सी आवजो जी
हाथ सारु चूड़ी लाव्जो हाथ सारू कंगन ,
हाथ सारु बाजूबंद लेता आवजो जी बना पैली पेसेंजेर सी आवजो जी
पांय सारु चम्पक लाव्जो ,पांय सारु बिछिया ,
पांय सारु मेहँदी लेता आवजो जी बना पैली पेसेंजर सी आवजो जी
अंग सारु साडी लाव्जो ,अंग सारु पैठनी ,
अंग सारु चुनार्ड लेता आवजो जी बना पैली पेसेंजर सी आवजो जी
आवजो आवजो जी बना पैली पेसेंजर सी आवजो जी
आवजो आवजो आवजो जी बना पैली पेसेंजर सी आवजो जी
माथ सारु बीदी लाव्जो माथ सारु टीको ,
माथ सारु झूमर लेता आवजो जी बना पैली पेसेंजर सी आवजो जी
गल सारु हार लाव्जो गल सारु नेकलेस ,
गल सारु पेंडिल लेता आवजो जी ,बना पैली पेसेंजेर सी आवजो जी
हाथ सारु चूड़ी लाव्जो हाथ सारू कंगन ,
हाथ सारु बाजूबंद लेता आवजो जी बना पैली पेसेंजेर सी आवजो जी
पांय सारु चम्पक लाव्जो ,पांय सारु बिछिया ,
पांय सारु मेहँदी लेता आवजो जी बना पैली पेसेंजर सी आवजो जी
अंग सारु साडी लाव्जो ,अंग सारु पैठनी ,
अंग सारु चुनार्ड लेता आवजो जी बना पैली पेसेंजर सी आवजो जी
आवजो आवजो जी बना पैली पेसेंजर सी आवजो जी
Monday, August 18, 2008
वर्तमान
खामोश रास्ता पार करते हुऐ,
टूटन का एहसास न हुआ
पर भीड़ भरी सड़क पर
टूट सा गया मै |
पक्षियों के कलरव ने तो ,
चुप्पी ही तोडी है
मगर तुम्हारी एक साँस ने
राहगीरों की आत्मा झिझोडी है |
सपने यथार्थ नही होते ,
कहते है
पर यथार्थ
सपनों में होता है |
कौआ अपनी आदत से परेशान
न चाहकर भी झपटकर
रोटी ले उड़ना ही अब बन गई ,
उसकी पहचान
बँगलो की समर्धि ,
गलियों की कानाफूसी
नुक्कड़ की बेगारी,
गाँवो की
चोपालो को ,
समरसता के सूत्र में पीरो गई
टेलीविजन की देखने की क्षमता |
टूटन का एहसास न हुआ
पर भीड़ भरी सड़क पर
टूट सा गया मै |
पक्षियों के कलरव ने तो ,
चुप्पी ही तोडी है
मगर तुम्हारी एक साँस ने
राहगीरों की आत्मा झिझोडी है |
सपने यथार्थ नही होते ,
कहते है
पर यथार्थ
सपनों में होता है |
कौआ अपनी आदत से परेशान
न चाहकर भी झपटकर
रोटी ले उड़ना ही अब बन गई ,
उसकी पहचान
बँगलो की समर्धि ,
गलियों की कानाफूसी
नुक्कड़ की बेगारी,
गाँवो की
चोपालो को ,
समरसता के सूत्र में पीरो गई
टेलीविजन की देखने की क्षमता |
Saturday, August 16, 2008
भारत की समर्धि
स्व्तंत्रता दिवस के दुसरे दिन से कुछ सकल्प ऐसे हो..........
नेता लोग भाषण देना छोड़ दे |
कवि लोग ताना देने वाली कविता करना छोड़ दे|
मौसम विभाग मौसम की भविष्य वाणी करना छोड़ दे |
धर्म गुरु उपदेश देना छोड़ दे |
इन्सान सपने देखना छोड़ दे|
टेलीविजन समाचार चैनल सनसनी फैलाना छोड़ दे |
टेलीविजन पर धार्मिक सीरियल दिखाना छोड़ दे |
अखबारों के सपादक सच लिखना छोड़ दे |
भारत के लाखो करोडो श्र्धालू ,
प्रवचनों में जाना छोड़ दे |
गरीबी ,अशिक्षा और बेरोजगारी के नाम पर ,
राजनीती करने वालो,
क्रप्या राजनीती करना छोड़ दे |
माँ बाप अपनी बहूबेटियों को टी वि के ,
रीय्लीटी शो में भेजना छोड़ दे |
अर्थशास्त्री बाजार के उतर चढाव की ,
भ्विशय्वानी करना छोड़ दे |
ज्योतिषी जीवित रहने के उपाय बताना छोड़ दे |
और अगर हो सके तो
शिक्षक कोचिंग क्ल्लास चलाना छोड़ दे |
नेता लोग भाषण देना छोड़ दे |
कवि लोग ताना देने वाली कविता करना छोड़ दे|
मौसम विभाग मौसम की भविष्य वाणी करना छोड़ दे |
धर्म गुरु उपदेश देना छोड़ दे |
इन्सान सपने देखना छोड़ दे|
टेलीविजन समाचार चैनल सनसनी फैलाना छोड़ दे |
टेलीविजन पर धार्मिक सीरियल दिखाना छोड़ दे |
अखबारों के सपादक सच लिखना छोड़ दे |
भारत के लाखो करोडो श्र्धालू ,
प्रवचनों में जाना छोड़ दे |
गरीबी ,अशिक्षा और बेरोजगारी के नाम पर ,
राजनीती करने वालो,
क्रप्या राजनीती करना छोड़ दे |
माँ बाप अपनी बहूबेटियों को टी वि के ,
रीय्लीटी शो में भेजना छोड़ दे |
अर्थशास्त्री बाजार के उतर चढाव की ,
भ्विशय्वानी करना छोड़ दे |
ज्योतिषी जीवित रहने के उपाय बताना छोड़ दे |
और अगर हो सके तो
शिक्षक कोचिंग क्ल्लास चलाना छोड़ दे |
Thursday, August 14, 2008
झंडे की खुशबु
बचपन में जब केले का आधा टुकडा मिलता ,सेब की एक फांक मिलती
तो उसका स्वाद अम्रत था
आज के दर्जनों केलो में ,
किलो से स्टीकर लगे सेबों में
वो मिठास नही
एक फहराते हुऐ झंडे को निहारने में
जो धड़कन थी ,
जो रोम रोम की सिहरन थी
वो गली में बिकते हुऐ
तीन रंग की
प्लास्टिक की पन्नी
चोकोर आकार लेते हुऐ
जो कभी कार में सजते है
जो कभी गमले में खोंस दिए जाते है
जो कभी एक सालके बच्छे के हाथ में दे दिया जाता है
उसका मन बहलाने के लिए ,
वो तीन रंग
तो उसका स्वाद अम्रत था
आज के दर्जनों केलो में ,
किलो से स्टीकर लगे सेबों में
वो मिठास नही
एक फहराते हुऐ झंडे को निहारने में
जो धड़कन थी ,
जो रोम रोम की सिहरन थी
वो गली में बिकते हुऐ
तीन रंग की
प्लास्टिक की पन्नी
चोकोर आकार लेते हुऐ
जो कभी कार में सजते है
जो कभी गमले में खोंस दिए जाते है
जो कभी एक सालके बच्छे के हाथ में दे दिया जाता है
उसका मन बहलाने के लिए ,
वो तीन रंग
क्या
वेसा रोमांच ,वेसी सिहरन दे पायेगे कभी
लोकतंत्र
राजा लोंगो का तो राज पाट चला गया किंतु हमारी मानसिकता आज भी राजा जैसी ही है ,फर्क इतना है पहले एक राजा होता था आज तो हर कोई राजा बननेको बेताब है ,इसका ताजा उदाहारण है ,ओलम्पिक में गोल्ड मैडल जीतने वाले श्री अभिनव बिंद्रा परहर राज्य द्वारा दिए गये इनाम की घोषणा ,बेशक अभिनव बिंद्रा ने गोल्ड मैडल जीतकर भारत का विशव में गोंरव बढाया है, इसमे कोई संदेह नही वे सारे भारतवासियों की बधाई के पात्र है,परन्तु इसमे उनकी अपनी ख़ुद की लग्न ,मेहनत ,उनके पिता द्वारा शूटिंग के प्रशिक्षण के लिए दी गई सुविधा का महत्वपूरण योगदान है ,किनतु हमारे राजाओ को तो बहती गंगा में हाथ धोने का अवसर मिल गया| राजा अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए कभी दाई को कभी नर्तकी को ,कभी कोई चित्रकार को उसी समय अपने गले से मोतियों कीमाला उतारकर दे देते थे , आज के राजा क्यो नही अपनी चेन , अगुठी या महंगी घड़ी उतारकर विजेताओ को दे देते ? वो तो जनता की गाढी कमाईका पैसा ,यु ही लुटा देते है अपनी वाहवाही बटोरने के लिए | जबकि ख़ुद इनाम लेने वालो का मंतव्य है की उस पैसे से और खिलाडियों को अच्छे से अच्छा प्रशिक्षण देकर आने वाले सालों के लिए तैयार किया जा सके लेकिन नही ?हम तो राजा है, लोकतंत्र के| हम अपनी वस्तु केसे दे सकते है हम तो जनता के सेवक है ,हमारा क्या?जो कुछ है जनता का है ,तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा\और हम तुम जनता ,टी वि पर या अख़बार में समाचार पढ़ लेते है आपस में बैठकर मिडिया को कोस लेते है,थोडीदेर अख़बार घडी करके रख देते है या फ़िर टी वि का चैनल बदल देते है ,फ़िर जब कोई विज्ञापन आता
है तो फ़िर से चैनल बदलकर फ़िर से तन्मयता से सनसनी सी खबर देखने बैठ जाते है और कह देते अरे भाई लोकतंत्र है सब कुछ चलता है |
है तो फ़िर से चैनल बदलकर फ़िर से तन्मयता से सनसनी सी खबर देखने बैठ जाते है और कह देते अरे भाई लोकतंत्र है सब कुछ चलता है |
Monday, August 11, 2008
"बिदाई"निमाड़ी लोक गीत
यह गीत लडकी की विदाई के समय यह गीत गया जाता है |
इस गीत का भावार्थ कुछ इस तरह का है ,वधू जब फुल चुनने बाग़ में जाती है व्ही पर उसे वर मिलता है और कहता है मेरे साथ चलो अपने देश में |
तब वधू कहती है जब मेरे दादाजी वर को प्र्खेगे मेरे पिताजी दहेज स्जोयेगे ,मेरा भाई डोली स्जावेगा मेरे जीजाजी
मंडप बनायेगे और मेरी माँ की पूजा करूंगी तब मै तुम्हारे साथ जाउंगी |
फ़िर वधू अपनी माँ से कहती है जब मुझे दुसरे घर ही भेजना था तो मुझे फिर क्यो पाला पोसा और कच्चा दूध पिलाया |
इस गीत का भावार्थ कुछ इस तरह का है ,वधू जब फुल चुनने बाग़ में जाती है व्ही पर उसे वर मिलता है और कहता है मेरे साथ चलो अपने देश में |
तब वधू कहती है जब मेरे दादाजी वर को प्र्खेगे मेरे पिताजी दहेज स्जोयेगे ,मेरा भाई डोली स्जावेगा मेरे जीजाजी
मंडप बनायेगे और मेरी माँ की पूजा करूंगी तब मै तुम्हारे साथ जाउंगी |
फ़िर वधू अपनी माँ से कहती है जब मुझे दुसरे घर ही भेजना था तो मुझे फिर क्यो पाला पोसा और कच्चा दूध पिलाया |
"मंडप"निमाड़ी लोक गीत
म्हारा हरिया मंडप माय ज्डाको लाग्यो रे दुई नैना सी [दो बार ]
म्हारा स्स्राजी गाँव का राजवाई म्हारो बाप दिली केरों राज |ज्डाको लाग्यो रे ...........
म्हारी सासु सरस्वती नदी वय ,महारी माय गंगा केरो नीर ज्डाको लाग्यो रे .............
महारी नन्द कड़कती बिजलई ,महारी बैन सरावन तीज |ज्डाको लाग्यो रे ..............
म्हारो देवर देवुल आग्डो ,म्हारो भाई गोकुल केरो कान्ह|ज्डाको लाग्यो रे .............
म्हारा हरिया मंडप माय ज्डाको लाग्यो रे दुई नैना सी |
म्हारा स्स्राजी गाँव का राजवाई म्हारो बाप दिली केरों राज |ज्डाको लाग्यो रे ...........
म्हारी सासु सरस्वती नदी वय ,महारी माय गंगा केरो नीर ज्डाको लाग्यो रे .............
महारी नन्द कड़कती बिजलई ,महारी बैन सरावन तीज |ज्डाको लाग्यो रे ..............
म्हारो देवर देवुल आग्डो ,म्हारो भाई गोकुल केरो कान्ह|ज्डाको लाग्यो रे .............
म्हारा हरिया मंडप माय ज्डाको लाग्यो रे दुई नैना सी |
Tuesday, August 05, 2008
मौन
जब मौन मुख्रण होता है ,
शब्द चुक जाते है |
तब अहसासों की प्रतीती में ,
पुनः वाणी जन्म लेती है|
और शब्दों की संरचना कर
भावनाओ से परिपूर्ण हो
जीवन को जीवंत करती है |
एक पौधा रोपकर ,
खुशी का अहसास
देती है |
एक पक्षी को दाना चुगाकर ,
सन्तुष्टी का अहसास देती है |
एक दीपक जलाकर
मन के तंम को दूर करती है |
और इसी तरह दिन ,सप्ताह,
महीने और वर्षो की यह यात्रा
जीवन को सत्कर्मो का ,
संदेस दे देती है |
और फ़िर
मौन
शान्ति दे देता है |
शब्द चुक जाते है |
तब अहसासों की प्रतीती में ,
पुनः वाणी जन्म लेती है|
और शब्दों की संरचना कर
भावनाओ से परिपूर्ण हो
जीवन को जीवंत करती है |
एक पौधा रोपकर ,
खुशी का अहसास
देती है |
एक पक्षी को दाना चुगाकर ,
सन्तुष्टी का अहसास देती है |
एक दीपक जलाकर
मन के तंम को दूर करती है |
और इसी तरह दिन ,सप्ताह,
महीने और वर्षो की यह यात्रा
जीवन को सत्कर्मो का ,
संदेस दे देती है |
और फ़िर
मौन
शान्ति दे देता है |
Subscribe to:
Posts (Atom)