कर्मठ महिलाओं की श्रंखला में आज आई है मौसी
वैसे तो ये मेरी दादी लगती है पर माँ के मायके के गांव के पास ही इनका मायका भी है तो बचपन से हम इनको मौसी ही कहते है ,
कितने ही लोगो के जीवन में संघर्ष आये और उन्होंने अपनी जीवन यात्रा पूरी की पर मौसी ने अपने अपने जीवन के ५५ वर्ष बाद अपनी संघर्ष यात्रा शुरू की ,वैसे उसके पहले भी उनका जीवन कोई आसान नहीं था।
गांव में ब्याही फिर पति की नौकरी शहर में कचहरी में लगी तो परिवार के सरे बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी उनपर थी अपनी सिमित आय में अपनी कार्य कुशलता और मेहनत से सब कुछ निभाया सब बच्चे पढ़े और अच्छे पदों तक पहुंचे उनकी शादिया न हुई उनके होने दो बेटे दूसरे शहर में और इस इस मकान में मंझला बेटा बहू ,कुछ दिन ठीक चलता रहा पर मौसी को लगने लगा की साथ निभने वाली नहीं है। तब उन्होंने अपनी गृहस्थी गाँव में बसा ली।
दादा की पेंशन बहुत थोड़ी पर उनका सिद्धांत की बेटो से एक पैसा नहीं लेंगी ,गाँव के उजड़ घर (क्योकि गांव में कुछ साल पहले आग लगी थी)को ठीक किया जो कुछ खेती थी उसमे अपने बल से मेहनत की काम करवाती खुद खेतों में भी जाती। पक्के घर से आकर कच्चे घर और गांव का जीवन एक चुनौती जिसे उन्होंने परिवार के सामने खुद ही रखी और खुद ही उसे पूरा किया। आज ३० साल हो गए गांव में रहते हुए ,गांव के घर को उसी रूप में रखकर मेंटेन किया है। खेतों में खूब फसल पक्ति है। गेहूं ,सब तरह की डाले , कपास उस क्षेत्र में उसे सफेद सोना कहते है। राय मेथी मिर्ची धनिया मूंगफली टिल सब सारा अनाज मसले साफ करके अपने ३ बेटे एक बेटी को पैक करके भेजती है..
शहर जाने के पगले सरकारी योजना के तहत उन्होंने सिलाई डिप्लोमा लिया था तो घर का साडी सिलाई खुद ही करती ,और उस समय जब परिवार नियोजन करना गांव में आपरेशन करवाना टेडी खीर थी पैर जन्होंे कई महिलाओं को साथ लेकर इस योजना का लाभ लिया।
साथ ही गांव के बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित करना ,उन्हें संस्कार सीखना महिलाओं को पूजा पाठ
सिखाना धार्मिक किताबें पढ़ना ,जबकि वो खुद सिर्फ कैशा ५ तक पढ़ी थी।
गांव की बहुत सी रूढ़वादी बातो से , हटकर उनका वैज्ञानिक स्वरूप सामने लाना।
आज ८५ साल की अवस्था में भी उनकी दिचर्य में कोई फर्क नहीं
सुबह ५ बजे से लेकर रत ८ बजे तक काम करते रहना। घर में पलने वाले जानवर गाय बैल की देख भल से लेकर अख़बार पढ़ना साफ सफाई ,खेती वाले घरों में अनेक काम होता है भले ही नौकर करटे हो उनके साथ बराबरी से काम करना।
हम अभी १५ दिन रहे तो हमे भी दोपहर में सोने नहीं देती कहती
हमारे गांव में दोपहर का सोना वर्जित है ,
कुछ फोटो दे रही हूँ ,
गाय का दूध निकलती मखन बनती घी बनती और आँखों के रोग में काम में लती जिसको भी जरुरत हो
इतनी उम्र में कोई चश्मा नहीं ,जितनी देर में मई कुर्सी से उठती वो कई फिट चली जाती।
मितव्ययता ,सादगी ,उनके जीवन का आधार है।
मौसी इसी तरह अपने कई बसंत देखे और हम उनका कुछ अंश सीखे।
उन्हें सादर प्रणाम।
वैसे तो ये मेरी दादी लगती है पर माँ के मायके के गांव के पास ही इनका मायका भी है तो बचपन से हम इनको मौसी ही कहते है ,
कितने ही लोगो के जीवन में संघर्ष आये और उन्होंने अपनी जीवन यात्रा पूरी की पर मौसी ने अपने अपने जीवन के ५५ वर्ष बाद अपनी संघर्ष यात्रा शुरू की ,वैसे उसके पहले भी उनका जीवन कोई आसान नहीं था।
गांव में ब्याही फिर पति की नौकरी शहर में कचहरी में लगी तो परिवार के सरे बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी उनपर थी अपनी सिमित आय में अपनी कार्य कुशलता और मेहनत से सब कुछ निभाया सब बच्चे पढ़े और अच्छे पदों तक पहुंचे उनकी शादिया न हुई उनके होने दो बेटे दूसरे शहर में और इस इस मकान में मंझला बेटा बहू ,कुछ दिन ठीक चलता रहा पर मौसी को लगने लगा की साथ निभने वाली नहीं है। तब उन्होंने अपनी गृहस्थी गाँव में बसा ली।
दादा की पेंशन बहुत थोड़ी पर उनका सिद्धांत की बेटो से एक पैसा नहीं लेंगी ,गाँव के उजड़ घर (क्योकि गांव में कुछ साल पहले आग लगी थी)को ठीक किया जो कुछ खेती थी उसमे अपने बल से मेहनत की काम करवाती खुद खेतों में भी जाती। पक्के घर से आकर कच्चे घर और गांव का जीवन एक चुनौती जिसे उन्होंने परिवार के सामने खुद ही रखी और खुद ही उसे पूरा किया। आज ३० साल हो गए गांव में रहते हुए ,गांव के घर को उसी रूप में रखकर मेंटेन किया है। खेतों में खूब फसल पक्ति है। गेहूं ,सब तरह की डाले , कपास उस क्षेत्र में उसे सफेद सोना कहते है। राय मेथी मिर्ची धनिया मूंगफली टिल सब सारा अनाज मसले साफ करके अपने ३ बेटे एक बेटी को पैक करके भेजती है..
शहर जाने के पगले सरकारी योजना के तहत उन्होंने सिलाई डिप्लोमा लिया था तो घर का साडी सिलाई खुद ही करती ,और उस समय जब परिवार नियोजन करना गांव में आपरेशन करवाना टेडी खीर थी पैर जन्होंे कई महिलाओं को साथ लेकर इस योजना का लाभ लिया।
साथ ही गांव के बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित करना ,उन्हें संस्कार सीखना महिलाओं को पूजा पाठ
सिखाना धार्मिक किताबें पढ़ना ,जबकि वो खुद सिर्फ कैशा ५ तक पढ़ी थी।
गांव की बहुत सी रूढ़वादी बातो से , हटकर उनका वैज्ञानिक स्वरूप सामने लाना।
आज ८५ साल की अवस्था में भी उनकी दिचर्य में कोई फर्क नहीं
सुबह ५ बजे से लेकर रत ८ बजे तक काम करते रहना। घर में पलने वाले जानवर गाय बैल की देख भल से लेकर अख़बार पढ़ना साफ सफाई ,खेती वाले घरों में अनेक काम होता है भले ही नौकर करटे हो उनके साथ बराबरी से काम करना।
हम अभी १५ दिन रहे तो हमे भी दोपहर में सोने नहीं देती कहती
हमारे गांव में दोपहर का सोना वर्जित है ,
कुछ फोटो दे रही हूँ ,
गाय का दूध निकलती मखन बनती घी बनती और आँखों के रोग में काम में लती जिसको भी जरुरत हो
इतनी उम्र में कोई चश्मा नहीं ,जितनी देर में मई कुर्सी से उठती वो कई फिट चली जाती।
मितव्ययता ,सादगी ,उनके जीवन का आधार है।
मौसी इसी तरह अपने कई बसंत देखे और हम उनका कुछ अंश सीखे।
उन्हें सादर प्रणाम।