दुकानों की,
लम्बी कतार के बीच
मेरा मकान
कहीं खो गया है |
जाना पहचाना था
सबका
आज अजनबी हो गया है |
गगन चुम्बी इमारतों
की नीरवता
के समक्ष
खंडहर भी वाचाल
हो गया है |
सुना है ?
आलीशान फ़्लैट के
मालिक होकर भी
दो गज
"ज़मीन" की
तमन्ना रखते हो ?
Wednesday, July 06, 2011
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