Tuesday, April 16, 2013

गुजरात दर्शन

गुजरात दर्शन
द्वारकाधीश मंदिर ,बेट द्वारका और भुज (कच्छ )यात्रा ।
इस यात्रा से मोदीजी का कोई सम्बन्ध नहीं है ।
गु 
बेट द्वारका जाते हुए बिच में दारुका ज्योतिर्लिग मन्दिर अवम शिवजी की बड़ी मूर्ति 
गोपी तालाब 

रुक्मिणी मन्दिर के बाहर  का द्रश्य 
द्वारकाधीश मंदिर 
ध्वजा जी 
आइये अब चलते है कच्छ मेंभुज के पास एक गाँव है भुजोड़ी, जहाँ पर  विश्व प्रसिद्ध कच्छ की उत्क्रष्ट शालें

बनती है लगभग हर घर में लूम लगे है और गाँव गाँव लगते ही नहीं एक भाई के घर हम गये ये उनके घर का प्रवेश है

ये है सुन्दर शाले ,दरी ,गलीचे कुशन  कवर इत्यादि 
कुछ प्रबन्धन सस्थान से आई लड़कियां प्रशिक्षण लेने 

श्रीमती इंदिरा गाँधी ने इस गाँव के लोगो की इस कला को जीवित रखने के लिए यहाँ के लोगो को एकत्र किया था 
क्या आप कह सकते है ये गाँव का  घर है Add caption
ये भी 
शालो के मेरी  साथ बहन कामना औ उनके पति 
लूम 

डिजाइन बनाने के लिए रंग बिरंगे उन और फ्रेम 
गाँव की झोपडी 
ऊँट गाड़ी 

यह संक्षिप्त है विस्तार से ,और अगले पड़ाव गुजरात का ही अगले भाग में |

Wednesday, April 10, 2013

निमाड़ का गणगौर उत्सव भाग 2

गणगौर की बिदाई ,गणगौर गीत भाग 2

गणगौर की बिदाई परसों है अभी से बिदाई के क्षणों की कल्पना कर सभी लोग भावनाओ में बह रहे है किन्तु अगले साल फिर नई उमंगो के साथ गणगौर को घर लाने की आकांक्षा में गणगौर की विदाई की तैयारी शुरू हो गई है लापसी ,दही भात , मीठा इमली का पानी ,पूड़ी, मेथी दाने का साग ,और पूरण पोली, पीली चुनरी , साफा
सब कुछ है तैयार |



रणुबाई
के श्रंगार का वर्णन और मायके से विदाई


|

अरघ देने के लिए कन्याओ द्वारा लाये गये पूल और पत्तिया पाती खेलना कहते है |

मौली राजा (जब सारी टोकरिया भर जाती है और जो कस्तूरी और गेहू बच  जाते है उन्हें एक स्थान पर रखकर सींचा जाता है )




  सामूहिक पूजा के बाद गाँव कि सारी महिलाये अपने दिन भर के खेती के काम निबटाती है क्योकि यह समय गेंहू कि कटाई का होता है |किसी के खेत में कटाई हो रही है तो किसी के गेहू खलिहान में रखे जा रहे है |कड़ी मेहनत के बावजूद रात को बाड़ी जहाँ जवारे बोये जाते है पूरे गाँव कि एक ही बाड़ी होती है वहां आकार गणगौर के गीत ,सामूहिक नृत्य बिना कोई खर्च के, बिना कोई तामझाम के देवी के गीत जिसमे श्रंगार ,दैनिक जीवन के कार्य का वर्णन होता है, कुछ पारम्परिक गीत जो सदियों से गाये जाते है ,कुछ और मनोरंजन के लिए तुकबंदी कर के रचे जाते है और पीढ़ी दर पीढ़ी चलते रहते है |ऐसा ही ये एक श्रंगार गीत जिसमे रणुबाई चाँद, तारो, सूरज से अपने श्रंगार के लिए उनके गुणों का वर्णन कर अपने धनियेर  (पति ) से उनकी मांग करती है |
सिर्फ तालियों कि ताल और लय पर उनकी सारी भक्ति और उत्साह देखते ही बनता है |



शुक्र को तारो रे ईश्वर उंगी रह्यो |
कि
तेकी मख टिकी घड़ाव ||
अर्थ
-एक दिन रनु अपने पति से हट पकड जाती और कहती है -हे पतिदेव !वः आकाश में सबसे तेजस्वी शुक्र का तारा चमक रहा है ?उसकी मुझे बिंदी घडवा दो |
ध्रुव कि बदलाई रे ईश्वर तुली रही
तेकी मख तबोल रंगाव \
अर्थ
-और यह जो ध्रुव कि ओर (उत्तर में )बरसने योग्य बदली छाई हुई है उसकी मुझे चुनर रंगवा दो |
सरग कि बिजलई रे ईश्वर चमकी रही
तेकी मख मगजी लगाव
अर्थ -और सुनो स्वर्ग में कडकने वाली बिजली कि उसमे मगजी लगवा देना |
नव लाख तारा ,रे ईश्वर चमकी रह्य
तेकी मख अंगिया सिलाओ
चाँद
और सूरज रे ईश्वर चमकी रह्या |
कि तेखी मख बदन घड़ाव
अर्थ -साथ ही आकाश में चमकने वाले लाखों तारो कि मुझे कंचुकी सिलवाओ जिसके अग्र भाग में चाँद और सूरज जड़े हो| बासुकी नाग रे ईश्वर देखि रह्यो
कि तेकी मख येणी गुन्थाव
बड़ी
हट वालाई रे गोरल -गोरड़ी
अर्थ
-हे पतिदेव !जो ,वो जो इठलाता हुआ काले वर्ण का वासुकी नाग दिख रहा है , उसकी मुझे वेणी गुथवा दो | इस पर ,मुस्कुराते हुए उसके पति कहते है कि - "हे गोरवर्णरनु !तू बड़ी हट वाली है |" इस तरह अनेक गीत गाये जाते है और महिलाये अपने समर्द्ध परिवार कि कामना करती हुई रनु बाई कि बिदाई कि तैयारी करती है |क़ल गणगौर कि बिदाई का दिन है |
गणगौर देवी कि आराधना का पर्व है बेटी को ही देवी रूप में पूजते है और बेटी जब ९ दिन मायके रहकर जाती है तो उसका ससुराल जाने का मन नही है|अपने पिता से हठ करती है पिताजी आपके बाग में आम और इमली है मै सखियों के संग खाना और बाग में खेलना चाहती हूँ अभी मुझे ससुराल मत भेजो |,पिताजी कहते है -बेटी तुम्हारे ससुर ,जेठ ,देवर काले सफेद और घोड़े पार लेने आये थे तब उन्हें मैंने आदरपूर्वक लौटा दिया है पर ये lजो कुवंर लाडला अपनी छैल बछेरी लेकर आया है वो तुम्हे साथ लिए बिना नहीं जायेगा |
समझा बुझाकर विदा देते है
और साथ ही उपदेश भी देते है |माँ का उपदेश जहन ममता से भीगा होता है ,वहां पिता का उपदेश भी प्यार और गांभीर्य से खाली नहीं होता है |गीत का भावार्थ इस तरह है -बेटी जब अपनी सखियों। के साथ खेलने कि जिद करती है तो पिता समझाते है |बेटी !तुम खेलने के लिए जरुर जाओ पार स्रष्टी रूपी लम्बा बाजार देखकर दौड़ कर नहीं चलना क्योकि उसमे उलझकर गिरने का भय रहता है |पराये पुरुष से कभी हंस कर बात मत करना |कही पानी देख कर ही वस्त्र धोने नहीं लगना , क्योकि इससे साध्य के लिए ही साधन का उपयोग करने कि द्रढ़ता का लोप हो जाता है |कर्ण वस्त्र धोने के लिए पानी है ,पानी के लिए वस्त्र धोना नहीं |
गीत
पिताजी कि गोद बठी रनुबाई बिनय |
कहो तो पिताजी हम रमवा हो जावा
जावो बेटी रनुबाई रमवा जाओ
लंबो बाजार देखि दौड़ी मत चलजो
उच्चो व्ट्लो देखि जाई मत बठ्जो
परायो
पुरुष देखि हंसी मत बोलजो
नीर देखि चीर मत धोवजो
पाठो देखि बेटी ,आड़ी मत घसजो
परायो बालो देखि हाय मत करजो
संपत
देखि बेटी चढ़ी मत चलजो
विपद देखि बेटी रडी मत बठ्जो
जाओ
बेटी राज करजो
इस तरह रणु बाई अपने लश्कर के साथ ९ दिन तक अपने मायके में रहती है और अपने भक्तो पर आशीष कि वर्षा कर विदा लेती है सारे गाँव  की विपदाओं से रक्षा करती है और ढोल बाजे के साथ लहलहाते जवारो का बहती नदी में विसर्जन कर दिया जाता है और अगली चैत्र में फिर से आने का भावपूर्ण निमंत्रण दिया जाता है |
देवी गणगौर कि भावपूर्ण बिदाई |


 
बिदाई के पहले ज्वारो से गले मिलना हे देवी हमसे कुछ भूल हो तो क्षमा करे और और आपदाओ से रक्षा करे | 


 




Sunday, April 07, 2013

माटी .......

   माटी ....... 
माटी   याने जीवन ,धरती ,हमारा मूल ,कुदरत ,
माटी ,याने इंसानियत  ,विनम्रता ,धरती से जुडाव ।
हम सबको ,इन्सान व अन्य जीवों  को जोडती ,जोडती एक कड़ी ।
और सबसे अहम- जीवन के पश्चात् हमारा घर ...



और इसी माटी  को लेकर हमारेहर प्रदेश के  संतो ने जिनमे सूफी संतो की बहुलता है उनके कहे उद्गार आप तक पहुचने की एक छोटी सी कोशिश है मेरी ,जो की "लोकनाद टीम "का  संकलन है । 




अशी धरत्री ची माया ,
अरे तिले  नाही सीमा  ,
दुनिया चे सर्वे पोटं ,
तिच्या मधी झाले जमा ॥ 
-बहिणाबाई 
धरती की माया असीम है ,अपार  है  । 
दुनिया के हर उदर के लिए उसके भीतर पर्याप्त भंडार है । 

बहिणाबाई चौधरी (१ ८ ८ ० -१ ९ ५ १ )
जलगाँव के ,महाराष्ट्र  के किसान परिवार की बहिणाबाई का धरती से खेती से खास जुडाव था । 
उनकी कविता में अक्सर गृहस्थ जीवन और खेती के रुपको. द्वारा  जिन्दगी के गहन मसलो.  पर 
सटीक अभिव्यक्ति  दिखती है ।वे लेवा ओवी  मराठी रूप में रचनाये करती थी । साक्षर न  होने की वजह से उनकी कई कृतियों को उनके बेटे  ने लिखित रूप दिया | 




Saturday, April 06, 2013

"निमाड़ का गणगौर उत्सव "भाग 1

"निमाड़ का गणगौर उत्सव "भाग 1

 लो जी फिर गणगौर फिर आ गई है ,सज गई है नई उमंग से साथ और अपनी परम्पराओं के साथ फिर जीवन का संचार कर आतुर है  चैत्र माह में रंग भरने को ....



ऋतू में परिवर्तन हो रहा है जो की  प्रकृति का अपना नियम है वासन्ती बयार अब विदा ले चुकी है होली का खुमार भी अपने रंग छोड़कर उतर चुका है दिन गर्म होना शुरू हो गये है |अभी अभी फूलो की बहार है, चम्पा अपने शबाब पर है, मोगरा खिलने को व्याकुल है जूही, रात की रानी अपनी खुशबू बिखेरने को बेताब है |वही नीम के पेड़ पर भी नई  नै कोपले आने लगी है वातावरण में महुआ की खुशबू तैर गई है ऐसे मादक मोसम में "गणगौर का उत्सव "बरबस याद आ ही जाता है होठो पर गणगौर गीत अपने आप ही आ जाते है |तन मन थिरकने लगते है आज कितने भी आधुनिक उत्सव शहरी समाज ने अपना लिए हो किन्तु ग्रामीण उत्सवो का आज भी वही अंदाज है जो प्रकृति के साथ अपने को आत्मसात करके ग्रामीण लोग मनाते है निश्चय ही उन पर भी शहरी प्रभाव पड़ा है फिर भी उनकी इस संस्कृति  में ही उनकी ख़ुशी है |
पिछले वर्ष ही मैंने यह पोस्ट लिखी थी गणगौर पर इस साल नए पाठक और पढ़ सके अत: फिर से पोस्ट कर रही हूँ |
"निमाड़ का गणगौर उत्सव "

चैत्र की नवरात्री उत्तर भारत , के साथ सभी प्रेदेशो में कई रूप में मनाई जाती है |साथ ही राजस्थान कि गणगौर भी इसी समय मनाई जाती है जो कि सर्व विदित है |मध्य प्रदेश के ग्रामीण और अब शहरों में भी विशेषकर निमाड़ में गणगौर का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है कुछ कुछ बंगाल कि दुर्गा पूजा जैसा ही उत्साह होता है गाँवो में अपनी साल भर कि फसल कि कमाई से बचा कर रखा पैसा गणगौर पर्व पर श्रद्धा से खर्च करते है निमाड़ के किसान |चूँकि खेतिहर लोगो से जुड़ा है यह त्यौहार तो इसमें लोक संस्कृती कि प्रधानता है |

चैत्र वदी १० से चैत्र सुदी ३ तक के ९ दिनों के गणगौर उत्सव निमाड़ (मध्य प्रदेश )कि विशेषता है |इस अवसर पर सारा प्रदेश गीतमय हो जाता है और शिव -पारवती ,ब्रह्मा -सावित्री ,विष्णु -लक्ष्मी तथा चंद्रमा -रोहिणी कि वंदना के गीत गए जाते है |इनमे सबसे अधिक गीत रनुदेवी और उनके पति (धनियेर )सूर्य के के संवाद रूप में कहे गये है |
रणुबाई ही निमाड़ी लोकगीतों कि अधिष्टात्री देवी है |इसके एक गीत में सौराष्ट्र देश से आने का संकेत रनुदेवी कि पहिचान के लिए महत्वपूर्ण है |एक गीत में रनु बाई को रानी कहा गया है अन्यत्र रणुबाई के मंदिर का वर्णन है जिसमे रणुबाई बिराजती है और अपने भक्तो के लिए द्वार खोल देती है |
रनुदेवी सूर्य कि पत्नी राज्ञी का ही अपभ्रंश भाषा और लोकभाषा में घिसा हुआ रूप है |जैसे यग्य से जरान -जन्न जाना और उससे 'जन 'बनता है ;जैसा कि यज्ञोपवित शब्द से निकले हुए जनेऊ शब्द में पाया जाता है उसी प्रकार रण्नी -रानी
और अंत में" रनु "रूप बना |वस्तुतः राज्ञी देवी कि पूजा गुजरात -सौराष्ट्र में प्रचलित थी उसकी १४वि शताब्दी तक कि मुर्तिया पाई गई गई hai |
गणगौर को नारी जीवन का सुमधुर गीति काव्य कहा जाता है निमाड़ में |९ दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार में एक भी ऐसा कार्य नहीं जो बिना गीत के हो, स्त्रियों द्वारा सामूहिक रूप से जब इस त्यौहार को मनाया जाता है तो कुछ ऐसा लगता है मानो ऋतुराज बसंत कि अगवानी कि जारही हो |
अमराइयो में कोयल कि कूक ,पलाश के फूलो कि लाली और होली कि उतरती खुमारी के साथ जब यह त्यौहार शुरू होता है ,तो गीतों कि गूँज से सारा गाँव सरोबर हो उठता है |
इसमें होली कि राख से चुने हुए कंकरों में गीतों के स्वर के साथ गौरी कि प्रतिष्ठा कर छोटी छोटी टोकनियो में मिटटी भरकर उनमे गेंहू बोने के रूप में मानो नारी के हाथो फसल कि प्राण प्रतिष्ठा कि जाती है और फिर उसे प्रतिदिन सींचते हुए नित्य आरती और उसकी उपासना कि जाती है -
अरघ सिंचन के समय गाने वाला निमाड़ी गीत -
म्हारा हरिया ज्वारा हो कि
गहुआ
लहलहे मोठा हीरा भाई वर बोया जाग
,
कि लाड़ी बहू सींच लिया

रानी सिंची जाण्य हो कि ज्वारा पेलापड्या |
उनकी सरस क्थोलाई हो ,हीरा भाई ढकी लिया
अर्थ -मेरे हरे जवारे के रूप में गेंहू लहलहा रहे है हीरा भाई के घर जाग बोया है और उनकी बहुए उन्हें सींच रही है वाह सींच कर निवर्त हुई है कि जवारे पीले पड़ने लगे है उनके सहस्त्रो अंकुरों को बहन ने स्नेह से ढँक लिया है |
मेरे हरे भरे ज्वारो के रूप में गेंहू लहलहा रहे है |
ये जवारे जीवन की सम्रद्धि के प्रतीक है |
हरे पीले जवारे ........
धनियेर राजा और रनु बाई कि इन बोलती मूर्तियों को रथ कहते है|
इन रथो में पीले जवारे रखकर नदी किनारे देवी को पानी पिलाने ले जाते है ,पूरा गाव एकत्र होकर सबकी मंगल कामना
हेतु देवी से लोकगीतों द्वारा विनती करते है |




आओ हम सब देवी का पूजन करे

इस गीत में देवी पूजा के लिए स्त्रियों के सामूहिक आव्हान के साथ ही साथ पूजन करने वाली कि भी महत्वाकांक्षाओ एवम देवी के संतानदाता स्वरूप का वर्णन है \इसमें धन ,धान्य एवम संतान से सम्पन्न आदर्श ग्रहस्थी का अत्यंत ही सजीव चित्रण है -
डूब का डंडला अकाव का फूल
रानी मोठी बहू अर्घ देवाय |
अर्घ दई वर पाविया
मोठा भाई सो भरतार
अतुलि पातुली लाओ रे गंगाजल पाणी ,|
नहावन कर रनु बाई राणी | रनु बाई रणुबाई खोलो किवाड़ |
पूजन
वळी उभी द्वार |
पूजन वाली काई मांग |
धूत
पूत अव्हात मांग |
हटियालो
बालों मांग |
जतिओयालो
भाई मांग |
बहू को रान्ध्यो मांग |
बेटी को परोस्यो मांग | तोंग्ल्या बुड्न्तो गोबर मांग |
पोय्च्या
बुड्न्तो गोरस मांग |
धणी
को राज मांग |
सोंना
सी सरवर गौर पूजा हो रना देव |

माय बेटी गौर पूजा हो रना देव |
ननद भोजाई गौर पूजा हो रना देव |
देरानीजेठानी गौर पूजा हो रना देव |
सासु
बहू गौर पूजा ही रना देव |
अडोसन पड़ोसन गौर पूजा हो रना देव |
पड़ोसन पर तुट्यो गरबो भान हो रना देव | कसी पट तुट्यो गरबो भान हो रना देव |
दूध
केरी दवनी मझ्घेर हो रना देव |
पूत
करो पालनों प्टसल हो रना देव |

स्वामी सुत सुख लड़ी सेज हो रना देव |
असी पट तुट्यो गरबो भान हो रना देव |

आरती - करंड कस्तूरी भरिया ,छाबा फूलडा जी
तुम
भेजो हो धनियेर रनूबाई ,
जो
हम करसा आरतीजी
थारी
आरती आदर दिसां देव दमोदर भेटंसा जी |
अर्थ
-

इस करंड भर कस्तूरी और छाबड़ी भर फूल लेकर हम देवी कि आरती कर रहे है
हे भाई तुम अपनी पत्नी को इस आरती में सम्मिलित होने को भेज दो |
हम रनु कि आरती को सम्मान देगे और दामोदर -स्वरूप भगवान से भेंट करेगे|
क्रमशः

Wednesday, April 03, 2013

आज के समाज की मेरुदंड

महिलाओ की योग्यता को ,उनके मेहनताने को हमेशा पुरुषों की अपेक्षा हर क्षेत्र में कमतर आंका जाता है |

और अगर कही वो पुरुषो से ज्यादा कमाती है तो उसे गर्व का नही तानो का पुरस्कार मिलता है ।आज हर क्षेत्र में उसने अपनी योग्यता मेहनत से लगन से मुकाम हासिल किया है, जिसमे कई सुर्खियों में है और कितनी ही महिलाये चुपचाप सृजन   कर समाज में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही है | इसमें कई छोटे छोटे गाँव से आकर  बड़े शहरों के घरो में काम करके अपने बच्चों का पालन पोषण कर रही है बच्चे गाँव में रहकरअपने ने दादा दादी ,नाना नानी के पास प ढ़ते है और कम खर्चे में पढाई हो जाती है ।इसमे  ज्यादातर महिलाये ऐसी होती है जिनके आदमियों की कोई नियमित कमाई नहीं होती ,या जो अपनी पत्नी बच्चों को ,घरबार छोड़कर चले गये होते है और जो विधवा है एक कमरे में दो तीन महिलाये साथ में रहकर कम खर्चे में अपना गुजारा करती है ॥

बहुत सालो पहले पुरुष शहर आते थे कमाने | आज भी आते है ।

ऐसी महिलाये शहरी घरो की ,कामकाजी महिलाओं की मेरुदंड है और उनके इस मेहनत का प्रतिसाद है |

आदमी कहने लगे है- हमे काम नहीं मिलता महिलाओं को काम जल्दी मिल जाता है और   इसका फायदा उन्होंने उठाना शुरू कर दिया की उन्हें भी अपने साथ शहर ले आये बराबरी के लिए .....