बहुत दिनों से मन में इच्छा थी की हमारे आसपास की उन कर्मठ और संघर्ष रत महिलाओं की मिडिया ,या कही और चर्चा न हुआ हो हमारे आसपास की चाहे वो अपने ही परिवार की नानी ,दादी ,या पड़ोस की नानी , दादी ,बुआ ,मौसी ,चाची,, ताई ,मामी ,अपनी सास ननद हो ?जिन्होंने आम िंदगी से हटकर संघर्ष किया हो जीवन के लिए उन्हें हम सामने लाये।
उसी श्रंखला में आज की एक कड़ी है
कर्मठ महिला
गुलाब माँ
मातृत्व दिवस के अवसर पर उन्हें नमन
आज वो जिन्दा होती तो करीब 120 साल की होती
13 बच्चों की माँ बनाकर छोड़ गया और न जाने कहाँ चला गया था उसका पति ?गाव में बीमारी फैली कुछ बच्चे उसी चपेट में आये कुछ ने पहले ही जन्म के कुछ घण्टो कुछ दिनों के बाद आखिरी साँस ले ली थी।
कुल 3 बचे थे दो बेटी और एक बेटा बड़ी बेटी की शादी कर दी बेटा कुछ पढ़कर रेलवे में नोकरी पा गया ,छोटी बेटी 12 साल की को लेकर शहर आ गई ।
13 वर्ष लगते उसकी भी शादी कर दी
गुजारे के लिए शहर के प्रतिष्ठित वकील के घर खाना बनाने का काम करने लगी और उन्होंने अपने बड़े से मकान में एक कमरा
दे दिया रहने को।
छोटी बेटी उसी शहर में ब्याही थी 6 महीने बीतते ही उसके पति की मृत्यु हो गई बाद में पता चला पहले से उसको कोई गंभीर बीमारी थी जिसका पता सबको था ।खूबसूरत विधवा बहू को अपने घर में कैसे रखे ?माँ के पास भेज दी गई ,जहाँ रहती वहां विधवा बेटी के साथ रहना असहय था
तब मेरे दादाजी जो कभी कभी गाँव से आते कचहरी के काम से उन्हें सजातीय लीगों से पता चला की अपने समाज में एक महिला की ऐसी स्थिति है तब हमारे बाड़े में उनको रहने को कमर दिया ।साथ ही विधवा बेटी की पढाई भी जरी रखी उन्हें टीचर ट्रेनिग करवाई उस जमाने में 7वि
कक्षा के बाद ही टेनिंग होती थी और फिर वो सरकारी स्कूल में शिक्षिका बन गई जब तक उनकी माँ उन वकील साहब के घर खाना बनाने का काम करती रही ।
आज वो बहनजी भी होती तो 84 साल के लगभग उनकी उम्र होती अपना कार्यकाल ईमानदारी से पूरा करके राष्ट्रपति द्वारा प्रदत्त श्रेष्ठ शिक्षिका का अवार्ड भी पाया ।
बाल विधवा बेटी के साथ और अगर बेटी बहुत ही सुंदर हो तो दोनों माँ बेटी का जीवन कितना कष्टमय रहा है वो मैंने देखा है।
उस समय तो मेरी उम्र बहुत कुछ नही समझ पति थी ,आज जब सोचती हूँ चलचित्र की भांति उनका जीवन मेरी आँखों के सामने आ जाता है।
कई सालो बाद "गुलाब माँ ;"हाँ यही नाम था उनका,
उनके पति को भी याद आई और पता ठिकाना ढूंढते ढूंढते आ गए अधकार जताने पर स्वाभिमानी गुलाब माँ ने उनको घर में न घुसने दिया और मोहल्ले के लोगो ने भी उनका साथ दिया।जब भी वो आते झगड़ा करते ,मुझे धुंधला सी याद है धोती कुरता और सर पर काली टोपी रहती।जिस दिन वो आते गुलाब माँ के घर अशांति पसर जाती माँ बेटी के बीच भी लड़ाई होती ।
पर गुलाब माँ उन्हें एक पैसा नही देती जिसके लिए वो आते ।
गुलाब माँ अपने उसूलो की पक्की थी ।पथरीले जीवन पर चलते चलते वो भी सख्त हो गई थी।
उनकी कला बेमिसाल थी ।जितने भी अख़बार के कागज के टुकड़े होते उन्हें उन्हें एकत्र करती उनकी लुगदी बनाती ।उस लुगदी से टोकनिया,
गुड़िया बनाती ।और जितना भी बाड़े में में वेस्ट मटेरियल मिलता ,हलवाई के घर से आये जलेबी सेव के कागज की पुड़िया के कागज ,तो लुगदी में डाल देती और उनमें बंधा हुआ धागा लपेट कर रख लेती ।उस धागे से गोदड़ी सिलती, गुड़िया के कपड़े सिलती ,अपना लहंगा (घाघरा ही पहनती)सिलती
अपना ब्लाउज(पोल्का)जिसमे पीच्छे सिर्फ डोरियाँ होती वो खुद ही बनाती और सूती ओढ़नी
पहनती। उनकी बनाई करीब 50 साल पुराणी ये गुड़िया आज भी मेरे पास है इसमें जो भी सामान उपयोग हुआ
उसमे एक पैसा भी भी नहीं लगा है।
अपनी खटिया खुद ही रस्सी से बुनती। अपने छोटे से घर जिसमे वो करीब ४५ साल रही कंचन बनकर रखा अपनी मेहनत से। उनका बनाया खाना सिमित साधनों वाला आज भी भुलाया नहीं जाता।
और भी बहुत सी बाटे है जो समय समय पर याद आती रहती है.
आज जब हम सर्वसाधनो से युक्त घरों में रहते है छोटी छोटी बातो में असन्तोषी हो जाते है तब गुलाब माँ बहुत याद आती है और जीवन को संबल मिलता है।
उसी श्रंखला में आज की एक कड़ी है
कर्मठ महिला
गुलाब माँ
मातृत्व दिवस के अवसर पर उन्हें नमन
आज वो जिन्दा होती तो करीब 120 साल की होती
13 बच्चों की माँ बनाकर छोड़ गया और न जाने कहाँ चला गया था उसका पति ?गाव में बीमारी फैली कुछ बच्चे उसी चपेट में आये कुछ ने पहले ही जन्म के कुछ घण्टो कुछ दिनों के बाद आखिरी साँस ले ली थी।
कुल 3 बचे थे दो बेटी और एक बेटा बड़ी बेटी की शादी कर दी बेटा कुछ पढ़कर रेलवे में नोकरी पा गया ,छोटी बेटी 12 साल की को लेकर शहर आ गई ।
13 वर्ष लगते उसकी भी शादी कर दी
गुजारे के लिए शहर के प्रतिष्ठित वकील के घर खाना बनाने का काम करने लगी और उन्होंने अपने बड़े से मकान में एक कमरा
दे दिया रहने को।
छोटी बेटी उसी शहर में ब्याही थी 6 महीने बीतते ही उसके पति की मृत्यु हो गई बाद में पता चला पहले से उसको कोई गंभीर बीमारी थी जिसका पता सबको था ।खूबसूरत विधवा बहू को अपने घर में कैसे रखे ?माँ के पास भेज दी गई ,जहाँ रहती वहां विधवा बेटी के साथ रहना असहय था
तब मेरे दादाजी जो कभी कभी गाँव से आते कचहरी के काम से उन्हें सजातीय लीगों से पता चला की अपने समाज में एक महिला की ऐसी स्थिति है तब हमारे बाड़े में उनको रहने को कमर दिया ।साथ ही विधवा बेटी की पढाई भी जरी रखी उन्हें टीचर ट्रेनिग करवाई उस जमाने में 7वि
कक्षा के बाद ही टेनिंग होती थी और फिर वो सरकारी स्कूल में शिक्षिका बन गई जब तक उनकी माँ उन वकील साहब के घर खाना बनाने का काम करती रही ।
आज वो बहनजी भी होती तो 84 साल के लगभग उनकी उम्र होती अपना कार्यकाल ईमानदारी से पूरा करके राष्ट्रपति द्वारा प्रदत्त श्रेष्ठ शिक्षिका का अवार्ड भी पाया ।
बाल विधवा बेटी के साथ और अगर बेटी बहुत ही सुंदर हो तो दोनों माँ बेटी का जीवन कितना कष्टमय रहा है वो मैंने देखा है।
उस समय तो मेरी उम्र बहुत कुछ नही समझ पति थी ,आज जब सोचती हूँ चलचित्र की भांति उनका जीवन मेरी आँखों के सामने आ जाता है।
कई सालो बाद "गुलाब माँ ;"हाँ यही नाम था उनका,
उनके पति को भी याद आई और पता ठिकाना ढूंढते ढूंढते आ गए अधकार जताने पर स्वाभिमानी गुलाब माँ ने उनको घर में न घुसने दिया और मोहल्ले के लोगो ने भी उनका साथ दिया।जब भी वो आते झगड़ा करते ,मुझे धुंधला सी याद है धोती कुरता और सर पर काली टोपी रहती।जिस दिन वो आते गुलाब माँ के घर अशांति पसर जाती माँ बेटी के बीच भी लड़ाई होती ।
पर गुलाब माँ उन्हें एक पैसा नही देती जिसके लिए वो आते ।
गुलाब माँ अपने उसूलो की पक्की थी ।पथरीले जीवन पर चलते चलते वो भी सख्त हो गई थी।
उनकी कला बेमिसाल थी ।जितने भी अख़बार के कागज के टुकड़े होते उन्हें उन्हें एकत्र करती उनकी लुगदी बनाती ।उस लुगदी से टोकनिया,
गुड़िया बनाती ।और जितना भी बाड़े में में वेस्ट मटेरियल मिलता ,हलवाई के घर से आये जलेबी सेव के कागज की पुड़िया के कागज ,तो लुगदी में डाल देती और उनमें बंधा हुआ धागा लपेट कर रख लेती ।उस धागे से गोदड़ी सिलती, गुड़िया के कपड़े सिलती ,अपना लहंगा (घाघरा ही पहनती)सिलती
अपना ब्लाउज(पोल्का)जिसमे पीच्छे सिर्फ डोरियाँ होती वो खुद ही बनाती और सूती ओढ़नी
पहनती। उनकी बनाई करीब 50 साल पुराणी ये गुड़िया आज भी मेरे पास है इसमें जो भी सामान उपयोग हुआ
उसमे एक पैसा भी भी नहीं लगा है।
अपनी खटिया खुद ही रस्सी से बुनती। अपने छोटे से घर जिसमे वो करीब ४५ साल रही कंचन बनकर रखा अपनी मेहनत से। उनका बनाया खाना सिमित साधनों वाला आज भी भुलाया नहीं जाता।
और भी बहुत सी बाटे है जो समय समय पर याद आती रहती है.
आज जब हम सर्वसाधनो से युक्त घरों में रहते है छोटी छोटी बातो में असन्तोषी हो जाते है तब गुलाब माँ बहुत याद आती है और जीवन को संबल मिलता है।